साध संगत जी आज की साखी भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के जीवन से संबंधित है कि कैसे भाई मरदाना जी ने और भाई बालाजी ने सतगुरु नानक का साथ दिया और जीवन भर सतगुरु की सेवा की, साध संगत जी आज की इस साखी में हम जानेंगे कि कैसे भाई मरदाना जी की मृत्यु हुई और कैसे सतगुरु नानक ने उनकी संभाल की थी तो आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जैसे कि आप जानते हैं कि भाई मरदाना जी ने जीवन भर सतगुरु नानक का साथ दिया और उनकी सेवा में रहे उन्होंने कभी भी सतगुरु नानक का साथ नहीं छोड़ा, जीवन भर वह सतगुरु के साथ करतार के नाम का प्रचार करते रहे, भाई मरदाना जी सतगुरु नानक के बहुत नजदीक थे साध संगत जी हमने इतिहास में भाई मरदाना जी और भाई बालाजी के बारे में बहुत साखियां सुनी होगी की कैसे भाई मरदाना जी सतगुरु के साथ हमेशा रहते थे और हमने कुछ साखियां ऐसी भी सुनी होंगी जिनमें भाई मरदाना जी द्वारा बार-बार भूख का लगना उनमें दर्ज है लेकिन साध संगत जी यहां पर यह विचार करने की जरूरत है कि जब सतगुरु नानक करतार के प्रचार के लिए भाई मरदाना जी के साथ चल पढ़ते थे तो कई कई दिनों तक सद्गुरु अन्न और जल के बिना ही चलते रहते थे और भाई मरदाना जी उनके साथ होते थे साध संगत जी सतगुरु नानक तो खुद करतार का रूप हुए हैं वह तो अन्न और जल के बिना उसके नाम के प्रचार के लिए कई कई दिन तक रह लेते थे लेकिन भाई मरदाना जी यह सहन नहीं करते थे साध संगत जी यहां पर यह जानने की जरूरत है कि भाई मरदाना जी भी सतगुरु के साथ दो तीन दिन तक ऐसे ही भूखे चलते थे तो अगर भाई मरदाना जी ने तीसरे या चौथे दिन सतगुरु नानक से अपनी भूख की बात कर भी दी तो इसमें कौन सी बड़ी बात है, साध संगत जी भूखे रहकर सतगुरु नानक और भाई मरदाना जी केवल संसार के कल्याण के लिए इतनी इतनी यात्रा करते रहे केवल हम लोगों को उपदेश देने के लिए सतगुरु ने इतनी लंबी यात्रा भाई मरदाना जी के साथ की और करतार के नाम का प्रचार किया लेकिन हममें से कुछ अभ्यासी सज्जन सवाल करते हैं कि भाई मरदाना जी और भाई बाला जी कहां गए उनका क्या हुआ ! साध संगत जी यह जानने से पहले आइए भाई मरदाना जी के जीवन पर एक दृष्टि डालते हैं भाई मरदाना जी के बारे में जानने की कोशिश करते हैं कि भाई मरदाना जी का जन्म कहां पर हुआ और उनकी मृत्यु कैसी हुई और कैसे वह सतगुरु नानक के सेवक बने साध संगत जी, जैसे कि हम जानते है कि जीवन की हर घड़ी में हमें साथ की जरूरत होती है इस संसार में कोई साथी क्षणभर रहता है और कोई जीवन भर, हमारी खुशियों को बांटने वाले तो हमें बहुत मिल जाएंगे लेकिन हमारा सच्चा साथी वही होता है जो हमारी दुख की घड़ी में हमारे साथ होता है और उस साथी का महत्व खूनी रिश्तो से भी ज्यादा अधिक होता है और ऐसे ही थे हमारे भाई मरदाना जी भाई मरदाना जी का जन्म सतगुरु नानक के ही गांव तलवंडी में हुआ था साध संगत जी कहा जाता है कि भाई मरदाना जी के माता पिता के घर जो पुत्र जन्म लेता था वह कुछ दिनों के बाद अकाल को प्राप्त हो जाता था इसलिए जब भाई मरदाना जी का जन्म हुआ तो भाई मरदाना जी की माता ने उनका नाम मर-जाना रख दिया जिसका अर्थ है कि वह व्यक्ति जो मर जाएगा जब भाई मरदाना जी के माता जी मृत्यु को अपने पुत्र की और आते हुए देख रहे थे तो वह जोर जोर से रो रहे थे तो जब सतगुरु नानक ने बाल अवस्था में भाई मरदाना जी की माता जी से पूछा कि आप क्यों रो रहे हो तो उन्होंने बताया कि मेरा पुत्र कुछ ही दिनों का मेहमान है और उसके बाद वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा तो यह सुनकर सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी की माता को भरोसा दिया कि आज के बाद तुम्हारा पुत्र मर जाना नहीं मर्दाना कहलाएगा जिसका अर्थ है कि जो मरेगा नहीं भाव जिसकी अल्प आयु में मृत्यु नहीं होगी साध संगत जी भाई मरदाना जी सतगुरु नानक से 10 वर्ष बड़े थे और वह सतगुरु नानक के साथ एक ही गांव में बड़े हुए थे भाई मरदाना जी के दो पुत्र और एक बेटी थी भाई मरदाना जी को रबाब सतगुरु नानक ने ही दिया था जिसे वह बजाते थे और कबीर जी के दोहे सुनाते थे तो जब सतगुरु नानक ने समाज सुधार के लिए और करतार के प्रचार के लिए उदासी पर जाने का फैसला किया तो उन्होंने अपने साथी के रूप में भाई मर्दाना जी को चुना, फिर चाहे घोर अंधेरा हो, भयंकर तूफान हो, घने जंगल हो या मिलो बिना थके चलने वाली यात्रा हो, भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक का साथ नहीं छोड़ा, साध संगत जी इतिहासकारों का कहना है कि भाई मरदाना जी की मृत्यु बगदाद में हुई थी जब भाई मरदाना जी 1534 ईसवी में बगदाद में बीमार पड़ गए थे और सतगुरु नानक ने उस समय अपना सच्चा साथी हमेशा के लिए खो दिया था तो सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी की मृत्यु के पश्चात उनको भारी मन से बगदाद के रेलवे स्टेशन के पास दफन किया था साध संगत जी भाई मरदाना जी के शब्दों को श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में बहुत आदर पूर्वक सम्मान मिला है जिससे वह हमेशा के लिए अमर हो गए और दूसरी तरफ भाई बालाजी सतगुरु नानक के बचपन से ही मित्र थे और उनका जन्म 1466 ईस्वी को तलवंडी में ही हुआ था भाई बाला जी की जन्म साखियों के अनुसार वह भी सतगुरु नानक के उनकी उदासियों में साथी थे और उनकी मृत्यु 1544 में हुई थी लेकिन बहुत सारे इतिहासकारों को इस बात पर शंका है कि वाक्य में ही भाई बालाजी के नाम का व्यक्ति हुआ भी है या नहीं ? साध संगत जी भाई गुरदास जी जिन्होंने सतगुरु नानक के सभी अनुयायीओ का विवरण दिया है उन्होंने उस सूची में भाई बालाजी का नाम नहीं डाला और गोर करने की बात यह भी है कि उस सूची में राय भुल्ला का नाम भी नहीं है भाई बाला जी की जन्म साखियों पर भी बहुत सारे इतिहासकार प्रश्न उठाते रहे हैं इन सब के बावजूद भी ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला कि भाई बालाजी के अस्तित्व को नकार दिया जाए इसलिए सतगुरु नानक की जन्म साखियों में भाई बालाजी का नाम इज्जत से लिया जा रहा है और लिया जाएगा ।
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By Sant Vachan
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