साध संगत जी आज की साखी विवाह में लिए जाने वाले आनंद कार्जो पर आधारित है की विवाह में चार फेरे ही क्यों लिए जाते है और इनके पीछे हमारे सतगुरु का क्या उपदेश है आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी विवाह में आनंद कार्ज की रसम सतगुरु अमर दास जी महाराज जी के समय से चलती आ रही है जब भी किसी सिख की शादी होती है तो इस रसम के अनुसार वह श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को हाजिर नाजिर मानकर अपनी पत्नी के साथ 4 फेरे लेता है आनंद कारज सिख शादी का समारोह है जिसका अर्थ है आनंद पूर्वक मिलाप और चार लावा आनंद कारज का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है साध संगत जी हर एक लावा एक शब्द है जिसे हिंदी में वचन कहा जाता है इन चार लावों को सतगुरु रामदास जी ने अपनी शादी से पहले लिखा था जो सिक्खों के चौथे गुरु हैं और गुरु अमर दास जी के दामाद है और आनंद कारज तभी माने जाते हैं जब उन्हें गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में किया जाए और इस तरह से 4 शब्दों के साथ चार फेरे संपन्न होते हैं साध संगत जी सिख धर्म के अनुसार आनंद कारज दो आत्माओं का मिलन है और यह नियम धरती पर नहीं बल्कि वाहेगुरु के तरफ से बनाया जाता है सिख धर्म में आनंद कारज के आधार पर ही विवाह को प्रमाणित किया जाता है और दहेज प्रथा का सिख धर्म में कोई भी स्थान नहीं है और गुरबाणी में इसे अच्छा नहीं माना गया है साध संगत जी हमारे समाज में ऐसी बहुत सारी रस्में हैं जिनका आज तक भी पालन किया जाता है उनमें से कुछ रस्में लोगों द्वारा इसलिए निभाई जाती है क्योंकि उनके पूर्वज भी उन रस्मों को करते आए हैं लेकिन साध संगत जी हर कर्म के पीछे कोई ना कोई कारण तो जरूर छिपा होता है मनुष्य के हर कर्म के पीछे कोई कारण अवश्य होता है, हमारे सातगुरों ने हमें ज्ञान का रास्ता दिखाया है हमें इस दुनिया के प्रति और अपने प्रति जागरूक किया है और हमारे हर एक प्रश्न का जवाब गुरबाणी में व्याख्या सहित दिया हुआ है सतगुरु ने आनंद कारज की रस्म से हमें यह उपदेश देने की कोशिश की है कि पति पत्नी का रिश्ता कितना उत्तम और पवित्र रिश्ता है क्योंकि पति पत्नी का रिश्ता केवल शारीरिक संबंध जुड़ जाने से ही पूर्ण नहीं होता बल्कि दो आत्माओं का मिलाप होता है आत्माओं के इस मिलाप को सद्गुरु ने आनंद कारज की रसम कहकर बयान किया है साध संगत जी बहुत सारी साखियों में हमें यह सुनने को मिला है कि वह परमात्मा हमारा पति है और हम आत्माएं उसकी पत्नियां हैं जोकि वर्षों से बिछड़ी हुई है और अपने पति परमात्मा की खोज में है साध संगत जी सतगुरु कहते हैं कि यह दुनिया तो झूठी है और यहां पर किए जाने वाला हर कार्य भी उसका हिस्सा है हम देखते हैं कि हर रोज इस दुनिया में कितनी विवाह शादियां होती है कितने संबंध जुडते हैं लेकिन असल विवाह तो वह है जिस दिन आत्मा का परमात्मा से मिलाप हो जाए वही असल विवाह है और जिसका परमात्मा से विवाह हो गया उसको फिर कुछ और करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जिस कार्य के लिए वह जीव इस धरती पर आया था उसने उस कार्य को पूरा किया तन मन से उस कार्य को पूरा करने की कोशिश की और अपने गुरु की कृपा पाकर अपने गुरु से नाम की शिक्षा लेकर अभ्यास किया और परमात्मा से मिलाप किया और फिर जिसका परमात्मा से मिलाप हो गया फिर वह जन्म मरण के चक्कर से छूट गया फिर दोबारा उसका इस संसार में जन्म नहीं होता और यहां पर सतगुरु हमें यह भी समझाते हैं कि पता नहीं हमें यहां पर कितनी देर हो चुकी है कितनी बार हम जन्म ले चुके हैं और कितनी बार हमारी मृत्यु हो चुकी है कितनी बार हम यहां पर आए हैं और कितने विवाह हमने कर लिए हैं इसकी हमें कोई खबर नहीं है बार-बार हम जन्म लेते हैं और अपने कार्य को बिना पूर्ण किए मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं यह सब युगों युगों से चला आ रहा है जब तक उस परमात्मा से विवाह नहीं हो जाता तब तक यहां पर आना जाना लगा रहेगा, हम बार बार जन्म लेंगे विवाह करेंगे और बच्चे पैदा करेंगे और मृत्यु को प्राप्त होते रहेंगे और फिर एक दिन एहसास होगा कि हम यह सब युगो युगो से करते आ रहे हैं और तब जाकर उस परमात्मा की अनुभूति होगी और अंदर सच्ची तड़प पैदा होगी और वही तड़प हमें उसके पास लेकर जाएगी और हमारा उससे मिलाप करवा देगी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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