परमसंत कबीरदास जी कहते हैं कि
"भक्ति निसैनी मुक्ति की, सन्त चढ़े सब धाय, जिन जिन मन आलस किया ,जनम जनम पछिताय"
मुक्ति का मूल साधन भक्ति है, इसलिए साधुजन और ज्ञानीपुरुष इस मुक्ति रूपी सीढ़ी या साधन पर दौड़ कर चढ़ते हैं, भक्ति साधना करते हैं, किंतु जो लोग आलस करते हैं, भक्ति नहीं करते उन्हें जन्म जन्म पछताना पड़ता है, क्योंकि यह अवसर बार-बार नहीं आता ।
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