साध संगत जी मोहम्मद साहब की जिंदगी का एक असूल था कि वह सब कुछ जरूरतमंदों में बांटकर और खाली होकर सोया करते थे उन्होंने कभी भी कुछ भी इकट्ठा नहीं किया ।
दिन भर जो भी उनके पास इकठ्ठा होता था वह सब बांट दिया करते थे और कल की फिकर उस खुदा पर छोड़ देते थे और मोहम्मद साहब कहते हैं कि मैंने कभी कल की फिकर नहीं की, सिर्फ खुदा पर भरोसा रखा और आप जी ने अंतिम समय कहा था की हे खुदा ! मेरा तो केवल तू ही आसरा है तेरे सिवाय मैंने किसी और पर भरोसा नहीं रखा साध संगत जी जिसे परमात्मा पर भरोसा हो जाता है उसे किसी और पर भरोसा रखने की जरूरत नहीं होती ।
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