आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

हम सब अपने-अपने ढंग से परमात्मा की भक्ति करने की कोशिश करते हैं, लेकिन सफल वही होता है जो गुरु के उपदेश पर चलता है जैसा गुरु कहता है वैसा करता है ।

हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक पुण्य करें ताकि हमारे पाप नष्ट हो जाएं और हमारा ईश्वर से मिलाप हो जाए, हम जप-तप, पूजा-पाठ, तीर्थ-व्रत, दान-पुण्य, ग्रंथों-शास्त्रों आदि जैसे बाहरमुखी साधनों द्वारा 'प्रभु-प्राप्ति' का यत्न करते हैं, लेकिन संतजन सावधान करते हैं कि पुण्य, पुण्यों के खाते में और पाप, पापों के खाते में जमा हो जाते हैं, इनके भुगतान के लिए जीव को बार-बार जन्म लेना पड़ता है, दोनों प्रकार के कर्म बंधनकारी हैं कर्म, कर्म का नाश नहीं कर सकता, कर्म का नाश परमात्मा की 'सच्ची-भक्ति' यानी 'नाम-भक्ति' ही करती है ।

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