एक बार एक सज्जन ने किसी सत्संगी से पूछा तुम बार बार सत्संग क्यों जाते हो,"तुमने पूरी जिंदगी सत्संग में गुजार दी,
तुमने ऐसा क्या पाया" सत्संगी ने मुस्कराते हुए कहा ,"मैंने क्या पाया है ये तो पता नहीं , लेकिन मैंने खोया जरूर है वह है मेरा क्रोध, वह है मेरा तनाव, वह है मेरा घमण्ड, वह है मेरा लालच, वह है मेरा स्वार्थ, वह है मेरी ईर्ष्या, वह है मेरी भटकती सांसारिक इच्छाएँ और मौत का डर....!
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