साध संगत जी सतगुरु अर्जन देव जी महाराज जी ने इस संसार सागर से पार उतरने के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना की, प्रभु की कृपा के साथ मनुष्य इस पावन ग्रंथ को पढ़कर इस भवसागर से पार हो जाता है ।
श्री गुरु जी ने हरि नाम के बिना और संतों की महिमा के बिना इसमें कोई और बानी नहीं लिखी है इसमें लिखा है कि इसको पढ़कर, सुनकर जो फल चाहे प्राप्त कर सकता है उनका धन जन्म है जिन्होंने अपने हाथों से लिख कर और प्रेम धारण कर अपना जन्म सफल कर लिया है जो मनुष्य एक मन स्थिर होकर सुनते हैं वह तर जाते हैं और फिर दोबारा जन्म नहीं लेते सुंदर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी भोग पाने के लिए तैयार हो गए और सचेत होकर बड़े उत्साह से तैयारियां की, बहुत कड़ा प्रसाद तैयार किया गया और बड़ा इकठ हुआ और गुरु जी ने फरमा दिया कि अब ग्रंथ साहिब संपूर्ण हो गया है बड़े उत्साह से आकर दर्शन करें तो सभी स्त्रियां पुरुष प्रसन्न हुए और हर कहीं हरि राग की ध्वनियां गूंजने लगी तो सभी संगत हाथ में कुछ ना कुछ उपहार लिए अच्छे वस्त्र पहने हाथ में फल लिए सतगुरु के दर्शन करने आ रहे थे तो यह देख कर कलयुग ने देखा कि मुझे भी जाना चाहिए तो उसने देखा कि सतगुरु अकेले बैठे हुए हैं तो इस तरह वचन हुए : कलयुग ने सतगुरु की कीर्ति की और कहा कि हे मुक्तिदाता आपने बहुत सुंदर ग्रंथ रचा है, मुक्ति का साधन तैयार किया है अब मेरा समय चल रहा है मेरे समय में पाप बहुत हो रहा है और समय ऐसे ही आगे बढ़ रहा है मूर्ख और निर्दई लोग धर्म के राह को छोड़कर अधर्म अपना रहे हैं उन्हें मुक्ति का कोई ज्ञान नहीं लेकिन आपने सुंदर ग्रंथ की रचना कर मुक्ति का रास्ता बता दिया है आपने हर जगह अपनी सिख संगतों को धर्म का प्रचार दिखाया है और उन्हें धर्म का प्रचार करने के लिए प्रेरित किया है अब आप मुझे यह बता दे कि मैं कहां जाकर रहूं मुझे इतना बताने की कृपा करें क्योंकि आपने मेरे लिए पैर रखने की जगह भी नहीं छोड़ी है सभी जगह धर्म का प्रचार हो रहा है और जहां पर आपके नाम का उच्चारण होता है वहां पर मैं बलहीन हो जाता हूं मैं आपकी आज्ञा के बिना कुछ भी नहीं कर सकता मैं आपके धर्म के आगे बलहीन हूं अब आप ही मुझे बताएं कि मैं कहां निवास करूं कहां जाकर अपना ठिकाना बनाऊं तो गुरु जी ने वचन किए कि यहां पर सतनाम का जाप होता हो वहां पर पैर ना रखना वहां पर मत जाना तो सतगुरु कहने लगे कि जब संगत में अरदास हो रही हो और कड़ा प्रसाद की देग वर्त रही हो और संगत में शोर मच जाए और परशाद व्रत रहा हो तब तक आप संगत में वासा रखें तो सतगुरु के मुख से यह वचन सुनकर कलयुग बहुत खुश हुआ तो उसकेबाद गुरु जी बैठ गए सभी संगत देख रही थी और उनके मन प्रेम में पड़े हुए थे और संगत में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी बहुत ही शोभ रहे हैं संगत फूलों के हार चढ़ा रही है और सतगुरु को पहना रही है बहुत सी संगत चड़ावा लेकर आई हुई थी और गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे भेट कर रही थी तो सतगुरु जी ने अपने फूलों के हार उतारकर गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे रख दिए और सभी खुशियां मना रहे थे तो जब कड़ा प्रसाद का समय हुआ तो कलयुग ने प्रवेश किया और हर तरफ़ शोर मच गया, सतगुरु ने अपनी दृष्टि से देखा कि कलयुग प्रवेश कर गया है और उस समय कलयुग ने एक दंगा फसाद किया था तो सभी संगत ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के आगे अपना शीश झुकाया और माथा टेक कर चले गए तो उस समय सद्गुरु के पास जो कुछ भी था सब संगत में बांट दिया जिसको वस्त्र चाहिए थे उसको वस्त्र दिए और जो राग ध्वनियां छेड़ रहे थे उनको धन देकर खुश किया इस तरह गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी समाप्त किया और उसकी महानता के बारे में बताया तब सतगुरु ने श्रेष्ठ मत वाले भाई गुरदास जी को साथ लेकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को श्री दरबार साहिब जी में स्थापित किया और कहा कि यहां पर इसकी सदा ही पूजा होवेगी इस तरह सतगुरु फिर अपने घर चले गए तो माता गंगा जी ने गुरु जी को प्रणाम किया सद्गुरु सुबह के समय दरबार साहिब चले जाया करते थे तो सतगुरु हर सुबह दरबार साहिब में बैठा करते थे और भाई गुरदास जी उनके साथ हुआ करते थे भाई गुरदास जी पाठ सुनाया करते थे और सतगुरु बड़े प्रेम से वाणी को सुनते थे और वहां सतनाम का जाप करते थे तो साध संगत जी आसपास यह बात फैल गई थी कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना हो गई है तो सभी बड़ी खुशी धारण कर सद्गुरु के दर्शन करने आया करते और सतगुरु के आगे नतमस्तक होते और बहुत उपहार और फल लेकर सतगुरु के आगे अर्पण करते, तो एक मंगलवाड़ी सिख था जिसका नाम भाई बनो था उसने सारी कथा सुनी वे संगत लेकर आया करता था और उसने कहा कि ऐसा ग्रंथ तैयार किया है कि सारे वेदों को रिडककर मक्खन तैयार किया है तो संगत ने प्रेम धारण कर कथा सुनी और बहुत मात्रा में संगत मौजूद थी तो वह कहने लगे कि आप महान हो कि आपने जहाज जैसे गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना की है आप मुंह मांगी मुराद दे देते हो और अपनी संगत को खुश करते हो मुक्ति का तरीका आपने बता दिया है आपने सतनाम के महा जाप का आरंभ किया है आप हमारी भी विनती सुनो कुछ दिनों के लिए गुरु ग्रंथ साहिब जी हमें दे दो और सभी सिख संगत को यह प्यारा लगता है और सभी संगत श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के दर्शन करना चाहती है हमने घर से चलने से पहले ही यह सोचा था कृपया हमारी मुराद पूरी करें तो श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी ने अपने हृदय में विचार किया कि इन्होंने बहुत बड़ी मांग की है हम इसे कैसे पूरा कर दें जबकि हमारे पास भी एक ही है अगर हम नहीं देते तो सिखों का मान कम होता है और अगर इस तरह का दूसरा लिखा जाए तो देना और लेना आसान हो जाता है और अब हमारे पास एक ही तैयार है किस तरह सेवक को कहें, एक तरफ तो वह आगू है और बहुत संगत इसके साथ आई है और उसका सम्मान करती है अगर हम इसको नहीं देते हैं तो इसका मान कम होता है और सतगुरु बहुत देर तक चुप बैठे रहे और सतगुरु ने कहा कि हे भाई बनो ! तूने बहुत बड़ी मुराद मांगी है तेरा इतना प्रेम देखकर तुझे कहना मुश्किल है हमारे पास भी एक ही है तो सतगुरु ने कहा कि आप एक रात के लिए ले जा सकते हैं लेकिन उसके अगली सुबह इसे यहीं पर स्थापित करना है उसे दूसरी रात वहीं पर नहीं रखना यही उचित है तो सतगुरु ने भाई बनो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी लेकर जाने की आज्ञा दे दी तो वह जब अमृतसर से श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को लेकर प्रस्थान करने लगा, तो वह सोचने लगा कि किस तरह इसी तरह का दूसरा लिखा जाए और वह यह भी सोचने लगा कि 1 दिन में यह हो पाना संभव नहीं है और वह रुक कर इस सोच में पड़ गया कि किस तरह लिखा जाए तो उसने विचार किया कि यहीं से लिखना शुरु कर देता हूं तो वह रास्ते में रुक रुक कर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को दूसरे पन्नों पर उतारता गया ऐसे ही उसने आधा ग्रंथ साहिब लिख लिया तो जब वापस आने लगे तो वापस आते समय कुछ कुछ दूरी पर रुक कर बाकी का श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी भी लिख लिया इस तरह सारा ग्रंथ साहिब दूसरी तरफ भी लिख लिया, दूसरा भी तैयार कर लिया और कुछ शब्द अपनी तरफ से भी लिख दिए तो जब दोनों ग्रंथ साहिब जी सत गुरु के आगे भेंट किए तो सतगुरु ने कहा कि जो ग्रंथ तुमने लिखा है और जो शब्द उसमें तुमने अपनी तरफ से लिखे है उसको वहीं रहने दो उसको इस भीड़ में ना डालो, सम्मत सोला सौ इकाट्ठ और भादो सुदी एकम जानो तो गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना को लेकर देश विदेश में संगत दर्शन करने आती थी और प्रेम धारण कर बानी सरवन करती थी, भाई बनो सिख संगत ने गुरुजी के पास बैठकर दीवान लगाया श्री हरगोबिंद साहिब जी पास बैठे थे मानो चांद शोभा पा रहा हो और फिर सतगुरु ने वचन किए कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी जहाज के समान है जो मनुष्य इसमें अपना चित लगाकर इसको पड़ेंगे वह सेहजे ही इस भवसागर को पार कर जाएंगे श्री गुरु जी का जो शरीर है वह हर समय हमारे साथ नहीं हो सकता उसके दर्शन नहीं किए जा सकते लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को श्री गुरु जी का हिरदा जानो और अपने अंग संग मानो जो भी इसको श्रद्धा धारण कर पड़ेगा वह मुक्ति प्राप्त करेगा और जमों का डर उसे नहीं रहेगा वह मनुष्यं शुभ गति पाएगा और जब कोई सिख शरीर छोड़कर जाएगा तब वह शुभ गति हासिल करेगा और परलोक जाने वाला सिख शुभ गति पाएगा और खुशी हासिल करेगा अंत समय जमों को नहीं देखेंगा बल्कि अपने आगे हमें पाएगा जो इसे मन लगाकर पडेगा और अमल करेगा, जब सतगुरु जी राम सर बैठे हुए थे तो भाई बन्नो श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी को लेकर आया तब सतगुरु ने ये वचन अपनी सिख संगत को कहे थे साध संगत जी इसी के साथ आज के प्रसंग की समाप्ति होती है जी, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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