Guru Nanak Sakhi । सतगुरु नानक के पुत्र बाबा श्री चंद जी ने 20 मील हाथ ऊंचा क्यों किया ?

 

साध संगत जी आज की शिक्षा उन लोगों के लिए है जो बुरे काम करते हैं और धन का लालच करते है धन का लोभ रखते है ऐसे लोगों को सतगुरु फरमान करते है की हे मन ! तूं किस मति में लग गया है हे अभागे मन तूं परमात्मा का नाम भूलकर अन्य स्वादों में मस्त हो रहा है तूं परमात्मा का नाम लें, नहीं तो समय बीत जायेगा और तूं फिर पछताएगा अवगुण छोड़ और गुण हासिल करने का यतन कर अगर पाप ही करते रहोगे तो पछताना पड़ेगा इस अंग में गुरु जी हम लोगों को लोभ, निंदा और झूठ को त्यागने के लिए कह रहे हैं ।

साध संगत जी पिछली साखी में आपने देखा कि कैसे बाबाजी ने एक फ़कीर को मालामाल कर दिया अगर आपने वह साखी नहीं सुनी है तो उस साखी की वीडियो का लिंक डिस्क्रिप्शन में दिया हुआ है आप वहां जाकर ये साखी सुन सकते हैं साध संगत जी आइए आगे देखते हैं कि आगे क्या हुआ था, एक बार सत्गुर नानक के छोटे पुत्र लख्मी दास जी शिकार करने के लिऐ गए, वहीं पर उन्होंने एक हिरण का शिकार किया और उसके बाद हिरण के मृत शरीर को लेकर अपने निवास स्थान की और चले गए तो संयोगवश बाबा श्री लक्ष्मी चंद जी मृत्य हिरण को लेकर वापस आए और उस समय बाबा श्री चंद जी विचलित हुए, उनको देखकर बाबा श्री चंद जी बोले शिकार करना अच्छा नहीं है और बाबा लक्ष्मी चंद जी को समझाते हुए बाबा जी ने फ़रमाया कि शिकार करना उचित नहीं है क्योंकि इसमें बहुत निर्दोष जीवों के प्राण चले जाते है आपने निर्दोष को मारकर पाप किया है इसका लेखा आपको देना पड़ेगा तो बाबा लक्ष्मी दास जी बोले की भाई साहब जी हम तो नानक साहिब जी के पुत्र है तो क्या हमें भी लेखा देना पड़ेगा तो बाबा जी ने कहा कि हमें तुम्हें सभी को हर एक चीज़ का हिसाब देना पड़ेगा चाहे हम किसी की भी संतान हो क्योंकि परमात्मा की दरगाह पर निपटारा कर्मों पर होता है यानी कर्मों के अनुसार फल मिलते हैं और वहां पर किसी का भी लिहाज नहीं किया जाता है फिर भले ही आप गुरु नानक के पुत्र ही क्यों ना हो यह सुनकर बाबा लख्मी दास जी वे सुध हो गए तो उन्होंने अपने हाथों में जल लिया और उसको मृतक हिरण पर छिड़क कर उसको दोबारा जीवित कर दिया और घोड़े पर अपनी बीवी अपने पुत्र धर्मचंद को उठाया और जाते हुए बाबा लख्मी दास जी बाबा जी से बोले कि भाई साहब आप हम पर दया करना अब हम अपना लेखा देकर आयेंगे तो कहते हैं कि वह संपूर्ण परिवार आकाश की ओर घोड़े पर सवार आगे बढ़ने लगा तो ये देखकर बाबा श्री चंद जी सोचने लग गए कि अगर यह मोक्ष प्राप्त कर लेगा तो हमारा वंश समाप्त हो जाएगा और फिर हमारा वंश आगे कैसे बढ़ेगा इसी सोच में घोड़ा 4 योजन ऊपर जा चुका था तो बाबा श्री चंद जी ने 4 योजन यानी कि 20 मील बाजू को ऊपर करके बालक बाबा धर्म चंद को निचे ले आए उसी दिन से बाबा धर्म चंद को पालने का फर्ज लागू हो गया, बाल ब्रह्मचारी महा त्यागी बाबाश्री चंद जी एक मासूम बच्चे के घोर जंजाल में उलज गए, मां के बिना छोटा बालक दूध न मिलने पर रोने लगा तो ये बात इतिहास बताता है कि महाराज जी ने अपने पैर का अंगूठा उसके मुंह में डाल दिया और बाबा जी की शक्ति से अंगूठे से दूध निकलने लगा, इस प्रकार बालक का पालन पोषण होने लगा, तो कई बार बाबा जी ध्यान मे होते थे, तो बाबा धर्म चंद जी अक्सर अपने ताया के कंधों पर स्वार हो जाते थे कभी जटाएं खींचते कभी कानों की मुद्राएं खींचते और बालक की इन हरकतों के कारण महाराज जी की समाधि खुल जाया करती बाबा जी के एक शिष्य हुआ करते थे जिनका नाम कमलिया था अपने भतीजे की हरकतों को देखकर बाबा श्री चंद बाबा कमलिया से कहते थे अकाल पुरख कितना बेयंत है कभी हम आपके कंधे पर चढ़ते थे लेकीन आज हमारे कंधों पर चढ़ने वाला आ गया है एक हाथ दो और एक हाथ लो ऐसा सुंदर मुकद्दर है इस प्रकार बाबा जी ने बड़े लाड प्यार से अपने भतीजे की परवरिश की, समय पर भोजन करवाना, स्नान करना, वस्त्र बदलना और फिर रात्रि में उसके साथ ही सोना ये सब देखकर बाबा श्री चंद जी सोचते थे हे प्रभू ये आपकी अद्भुत लीला ही है जो आपने अपनें तपस्वी और त्यागी को भी ऐसी जिमेवारी सौंप दी, जो कि एक ग्रस्त जीवन से भी कई गुणा ज्यादा है, माता-पिता दोनों का फर्ज मुझे अकेले ही निभाना पड़ रहा है बच्चे को दूध पिलाना, इस्नान करवाना, वस्त्र आदि बदलना, बच्चे को प्यार करना, लाड प्यार करना, बच्चे की मुंह मांगी वस्तु देना यह सब मुझे करना पड़ रहा है हे मालिक आप धन्य है इस प्रकार बाबा श्री चंद जी ने श्री बालक को सत परिश्रम से बड़ा किया ताकि उनका बेदी वंश दुनियां मे विद्येमान रहे, असल मे सोचा जाय तो ये बाबा श्री चंद जी का बेदी कुल पर बहुत बडा उपकार है, जब बाबा धर्म चंद जी बड़े हुए तो बाबा श्री चंद जी ने उन्हे अपना शिष्य बनाया और बेदी वंश को दुनियां मे परफुलित किया, बाबा धर्म चंद जी की शादी हुई और उनके दो पुत्र हुए एक पुत्र का नाम मानक चंद और दुसरे का नाम मेहर चंद जी रखा गया अभी भी डेरा नानक चक में बाजार में एक तरफ मानक चंद जी और दुसरी और मेहर चंद जी कहा जाता है गुरु नानक चक गांव बटाला तहसील गुरदासपुर जिले में स्तिथ है इस स्थान को पहले कादराबाद जंगल के नाम से जाना जाता था क्योंकि इस स्थान पर घना जंगल था और गांव का नाम कादराबाद था इसी कारण बाबा श्री चंद जी महाराज ने घना जंगल होने के कारण इस स्थान को पसंद किया और अपना धुना जलाया बाबा जी यहां पर कई साल तक निवास करते रहे, यह स्थान डेरा बाबा नानक गुरदासपुर से 9 मील की दूरी पर है आज इस जगह पर बाबा श्री चंद जी का स्थान बना हुआ है हर साल लोग बाबा जी का जन्मदिन बड़ी धूम धाम से मनाते है और हर साल अमावस के दिन यहां पर भक्तों का समूह एकत्रित होता है इस स्थान का नाम पहले कादराबाद था फिर भगवान श्री चंद जी का परगना जो आज भी पन्नो में दर्ज है इन दोनो नामों को बदलकर बाबा श्री चंद जी महाराज ने अपने पिता जी के नाम पर नानक चक रख दिया आज कल इस स्थान पर उदासी मठ के महात्मा ही पूजा करते है बाबा जी के नाम पर 700 बीका ज़मीन है जो यहां के बादशाह ने बाबा धरम चंद के नाम अपने पट्टे द्वारा लिखाई थी, साध संगत जी इसी के साथ आज के प्रसंग की समाप्ति होती हैं, प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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