साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जब सतगुरु नानक के घर उनके पुत्र बाबा श्री चंद जी ने जन्म लिया तो जन्म के पश्चात सतगुरु नानक बहुत खुश हुए थे और उन्होंने बाबा श्री चंद जी को लेकर कुछ वचन किए थे आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी जब भारतवर्ष के आकाश पर जुर्म के काले बादल छाए हुए थे भाई-भाई का दुश्मन बन चुका था हर कोई एक दूसरे के खून का प्यासा हो गया था बादशाह न्याय छोड़कर मजबी जुनून में अंधे हो गए थे तो ऐसे समय में संसार में रोशनी प्रदान करने के लिए शिव स्वरूप बाबा श्री चंद साहिब ने सतगुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी के घर सुल्तानपुर लोधी जिला कपूरथला पंजाब में लगभग 1495 में जन्म लिया, साध संगत जी जब बाबा श्री चंद जी का जन्म हुआ तब कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिससे कि यह साबित हो गया कि ये कोई आम बालक नहीं है क्योंकि अवतार के समय बालक के शरीर पर सुंदर आभा थी, कान में मांस की मुद्रा और शरीर पर विभूति भी कुदरती ही थी तो उस समय पूरे नगर में बालक के जन्म की खबर जल्दी ही फैल गई सभी जगह लोगों को पता लग गया कि माता सुलखनी जी और सतगुरु नानक देव जी के घर पुत्र का जन्म हुआ है सभी जगह यह खबर फैल गई कि जयराम के घर बीबी नानकी के घर उनके भतीजे ने जन्म लिया है तो साध संगत जी उस समय जो कोई भी बालक को देखता था वह यही कहता था कि यह तो साक्षात भगवान शिव का अवतार है और कहते थे की बालक के रूहानी चेहरे को देखकर तन मन शीतल हो जाता है सचमुच ही यह छोटा सा भगवान स्वरूप बालक सुल्तानपुर की धरती पर आ गया है साध संगत जी जैसे जैसे बालक के जन्म की खबर फैलती गई उसके बाद सभी लोगों ने भाई जय राम जी के घर मेला लगा दिया बहुत भीड़ बालक को देखने के लिए इकट्ठी हो गई, लोगों की दर्शन करने की बारी नहीं आ रही थी साध संगत जी सतगुरु नानक के पिता मेहता कालू जी अपने घर पैदा हुए पोते की खुशी को लेकर गरीबों और भिखारियों को दान दे रहे थे तो ये देखकर रिश्तेदार पटवारी और परिजन सोच रहे थे कि आज यह इतने खुले दिल से इतना क्यों दे रहे हैं लेकिन सब ये भी जानते थे कि बालक भोला भंडारी है जिसका दिया पूरा संसार खाता है और वह आज अपने दादा को अपनी शक्ति से दे रहा है दादी माता तृप्ता जी अपने पोते का मुंह बार-बार चूम रही थी और भुआ नानकी जी की आत्मा गुलाब के फूल की तरह खिली हुई थी वह बार-बार अपनी मां से कह रही थी कि मां तूं बहुत भाग्यशाली हो जहां पर मेरे भाई नानक और इस शिव रूप बालक ने जन्म लिया है तो माता सुलखनी जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था तो तुरंत ही ये खुशखबरी पाकर नाना मूलचंद और नानी चंदू रानी भी वहां पर पहुंच गए और उन्होंने भी दिल खोलकर दान किया तो उसके बाद पंडित हरदयाल जी को बुलाकर बच्चे का नाम श्री चंद रखा गया तो साध संगत जी सतगुरु नानक बहुत खुश थे और सतगुरु नानक ने बेबे नानकी जी से कहा इस बालक का चंद्रमा जितना प्रकाश होगा यह अत्यंत तेजस्वी होगा हमने गृहस्थ जीवन को प्राथमिकता दी है और यह ब्रह्मचारी रहते हुए जप, तप और त्याग के सभी कार्य कर दुनिया में उदासी संप्रदाय को चमकाएगा तो साध संगत जी सुल्तानपुर में सतगुरु नानक देव जी बहन नानकी जी के पास रहते थे इसलिए बाबा श्री चंद जी का जन्म सुल्तानपुर लोधी में हुआ साध संगत जी सतगुरु की बहन नानकी जी के घर कोई संतान नहीं थी तो दयालु सतगुरु नानक ने अपनी पहली उदासी पर जाने से पहले श्री चंद जी महाराज जी को अपनी बहन की झोली में डाल दिया और सतगुरु नानक के छोटे पुत्र बाबा लख्मी दास जी महाराज अक्सर अपनी माता जी के साथ रहा करते थे तो जब बाबा श्री चंद जी महाराज 4 साल के थे तो एक साधु ने उनके घर के सामने आवाज दी की माता भिक्षा दो ! हमें भिक्षा दो ! तो माता सुलखनी जी और बेबे नानकी जी घर के कार्यों में मस्त थे इसलिए उन्हें बाहर खड़े साधु के बारे में पता नहीं चल पाया लेकिन बाबा श्री चंद जी वहीं पास में खेल रहे थे तो जब बाबा श्री चंद जी ने उस साधु को भिक्षा मांगते हुए देखा तो वे उस संत को देख कर मुस्कुराए और उन्हें वहीं रुकने के लिए हाथ दिखाकर अंदर की ओर चले गए तो जब उस संत ने उस सुंदर बालक को देखा तो उनका मन उनकी तरफ खींचता हुआ चला गया और वह अंदर जाते हुए बालक को देख रहे थे संत को ऐसा लगा कि उस बालक के हाथ का इशारा पाकर उसके पैर जमीन में वही अटक गए हो, आगे बढ़ने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ी, वह बालक के दर्शन पाना चाहता था और उसका दिल उस बालक से मिलने के लिए बेकरार हो रहा था वह उस बालक के दर्शन करने के लिए तत्पर था और वह अंदर ही अंदर यह सोच रहा था कि हे ईश्वर ! मैंने इतना तेज और नूरानी चेहरे वाला बालक कभी नहीं देखा यह तो साक्षात शिव रूपी बालक है वह संत बाहर सोच विचार कर ही रहे थे कि बालक अंदर से बाहर आता हुआ और मुट्ठी में कुछ पकड़ा हुआ दिखाई दिया साधु का मन बालक को देखकर प्रसन्न हो रहा था और उसने तुरंत अपनी भिक्षा का कटोरा बालक के सामने आगे बढ़ा दिया तो बालक ने जब मुट्ठी खोली तो उस साधु का कटोरा हीरे और जवाहरातों से भर गया तो साधू यह सब देख कर हैरान हो गया और उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई और यह देखकर वह बोले कि हे मेरे छोटे से प्रभु मेरे मन को मोह लेने वाले प्यारे शिव शंकर भोले भंडारी मैं तुम पर कुर्बान जाऊं मैं तो एक साधु हूं भिक्षु हूं मुझे हीरे जवाहरातों की क्या जरूरत और वह कहने लगा कि दाता आटे की दीक्षा दो तो साध संगत जी वह साधु बाबा श्री चंद जी से बात कर ही रहा था तो माता सुलखनी जी और भूआ नानकी जी बाहर आ गए और वह भी बाबा श्री चंद जी का ये चमत्कार देखकर हैरान हो गए फिर भूआ बेबे नानकी जी ने बाबा श्री चंद जी को गोद में उठाया और वह बोले कि मुझे बताओ कि ये तुम कहां से लाए हो तो बाबा जी ने अपने नन्हे-नन्हे हाथों से एक बोरी की तरफ इशारा किया परंतु उसमें चने भरे हुए थे और बाबा जी के हाथों में जितने चने आए थे केवल वही हीरो में बदले थे इसके पश्चात माता सुलखनी और बेबे नानकी जी ने साधु से विनती की कि जो बालक ने आपको दिया है कृपया करके उसे स्वीकार करें तो संत ने बाबाजी के सामने शीश झुकाया और यह कहकर चल दिए कि "सबना जिया का इको दाता सो में विसरे न जाएं" साध संगत जी बाबा श्री चंद जी का जीवन लगभग 150 सालों का रहा उन्होंने अपने जीवन में बहुत चमत्कार किए इतना चमत्कारी और तेजस्वी होने के बाद भी श्री गुरु नानक देव जी ने उन्हें अपनी गद्दी ना देकर भाई लहना जी को गुरु क्यों बनाया इसको लेकर हमारे मन में यह प्रशन जरूर आया होगा साध संगत जी यह पूरे गुरु की लीला है गुरु जो भी करता है वह उस करतार के हुक्म से ही करता है उसके भाने में रहकर ही करता है उसका किया हुआ परमात्मा का किया हुआ ही कहलाता है ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.