गुरु प्यारी साध संगत जी आज की साखी गुरुद्वारा रबाबसर साहिब जी के बारे में है आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ गुरुद्वारा रबाबसर साहिब जी पर आधारित आज का ये परसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी गुरुद्वारा रबाबसर साहिब सतगुरु नानक सच्चे पातशाह जी के पवित्र इतिहास से संबंधित एक पवित्र स्थान है जहां पर रब्बी रंग में रंगी हुई एक महान पवित्र आत्मा भाई फिरंदा जी इलाही संगीतकार के पास महान रबाब साज लेने के लिए सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को आप इस स्थान का पता बताकर यहां पर भेजा था "मरदाना अब खोजो जाई मोल लियो जो होयू, सुंदर हेर रबाब ल्याओ, सफला मोल ना कोयू" जिसका अर्थ है कि हे भाई मर्दाना अब जाकर आप रबाब की खोज करो और जिस भाव पर भी मिलता हो, ले लो और सतगुरु कहने लगे की मर्दाना अच्छी तरह देखकर सुंदर रबाब लेकर आओ और उसके मोल में किसी भी प्रकार का सरफा नहीं करना तो सतगुरु की आज्ञा पाकर भाई मरदाना जी रबाब लेने के लिए सुल्तानपुर में गए तो जब भाई मरदाना जी सुल्तानपुर में पहुंचे तो वहां के लोगों ने भाई मरदाना जी को कुराईये का डोम कहकर सत्कार ना दिया और उनका निरादर किया तो उनसे निरादर पाकर और अपमान भरे शब्द सुनकर भाई मरदाना जी सतगुरु नानक के पास वापस आ गए और उसके बाद सतगुरु ने कहा कि अब उस स्थान पर जाने की जरूरत नहीं है अब आप दूसरे स्थान पर जंगल में जाएं जहां पर दो नदियों के दरमियान त्रिवेणी नदी ब्यास सतलुज और काली बेई यहां पर एक राहक नामक गांव है साध संगत जी जहां पर आज मौजूदा समय में गांव परहाना गुरुद्वारा श्री रबाबसर साहिब मौजूद है उस गांव में फिरंदा नामक एक रबाबी है सतगुरु कहने लगे कि वहां जाकर उससे मिलो और उससे रबाब लेकर आओ और अगर वह रबाब ना दे तो उसे कहना कि हमने इस रबाब की मांग की है तो ये सुनकर भाई मरदाना जी ने कहा कि हे गुरु जी अगर मेरे पास पैसे होंगे तब ही मे रबाब लेकर आ पाऊंगा क्योंकि मुझे वापस दोबारा वहां ना जाना पड़े तो ये सुनकर सतगुरु कहने लगे कि बेबे नानकी जी के पास जितनी भी कीमत है उसे लेकर आप अभी चले जाएं और किसी प्रकार की देरी नहीं करनी जब बेबे नानकी जी के पास भाई मरदाना जी ने 7 रुपए ले लिए तो भाई मरदाना जी तुरंत उस गांव की तरफ चल पड़े वहां पर पहुंचकर जब भाई मरदाना जी ने भाई फिरंदा को खोजना शुरू किया और जब वह नहीं मिले तब भाई मरदाना जी उदास होकर वहां पर बैठ गए और भाई मरदाना जी ने सतगुरु के चरणों में अरदास की तो उसके बाद भाई मरदाना जी के पास एक आदमी आया और उसने भाई मरदाना जी से पूछा कि आपका नाम क्या है और आप कहां से आए हैं और आप किस को खोज रहे हैं कृपया मुझे बताएं तो भाई मरदाना जी उस आदमी के प्रेम भरे वचन सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और विचार कर वचन किए कि वतन राय भोये तलवंडी नाम जान मर्दाना एक फिरंदा एह रबाबी खोजो तिसे सुजाना, नानक बेदी भेज्यो टह टिंग लेन रबाब रजाई, खोज्यो सो बहू हाथ ना आवे याके मन विकुलाई जिसका अर्थ है कि मेरा गांव राय भोय की तलवंडी और मेरा नाम मर्दाना है और हे सूजवान मनुष्य यहां पर एक फिरंदा नामक रबाबी है मैं उसको खोज रहा हूं श्री गुरु नानक देव बेदी जी ने मुझे उसके पास से रबाब लेने के लिए भेजा है मैंने बहुत खोज की लेकिन वह रबाबी मुझे नहीं मिला इसलिए मैं उदास हूं तो ये सुनकर उस आदमी ने कहा कि मेरा नाम ही फिरंदा है और गुरु जी ने आपको मेरे पास ही भेजा है और वह कहने लगा कि मेरे पास से रबाब लेकर वहां जाएं जहां पर दया के घर सतगुरु जी का घर है इस संसार सागर के मनुष्यों को तारने के लिए प्रभु ने अवतार धारण किया है इस तरह मुख से वचन कर कर वह अनुपम सुंदर रबाब वहां से लेकर आए और उस सुंदर रबाब को देखकर भाई मरदाना जी बहुत प्रसन्न हुए और भाई मरदाना जी ने कहा कि इसका जो मोल है वह मुझे बताएं क्योंकि मैंने इस तरह की सुंदर रबाब आज तक नहीं देखी आपने जो भी मोल लेना है वह मुझे बता दें तो यह सुन कर भाई फिरंदा जी ने कहा इसका मोल कोई नहीं दे सकता और अब ये रबाब श्री गुरु नानक देव जी सच्चे पातशाह के आगे ही बजेगी और इसको किसी और के आगे नहीं बजाना तो दुनियादारी की गार्जों से बेपरवाह भाई फिरंदा जी ने पैसों के बदले रबाब देने के लिए इंकार कर दिया और सतगुरु नानक देव जी के दर्शनों की इच्छा प्रकट की तो भाई फिरंदा जी ने इस स्थान से चलकर भाई मरदाना जी के साथ सुल्तानपुर लोधी पहुंचकर सतगुरु नानक के दर्शन किए और दर्शन कर निहाल हुए और भेंट स्वरूप उन्होंने सतगुरु नानक के चरणों में रबाब भेंट की, हाथ बंद कह वचन फिरंदा आनंद कद सुनीजे, उदो पचावन एह रबाब, कर किरपा सिंद सुलीजे, दर्शन की लालस सी मुझको, हरक सरस दरसायो, सब विद जानो अंतरयामी, एह विद कहत सदायो, जब सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी से पूछा कि तू इतनी देर क्यों लगा कर आया है तब भाई मरदाना जी ने कहा कि हे सतगुरु जी आप अंतर्यामी हो और आप सब कुछ जानते हो तो जब भाई मरदाना जी फिर फिरंदा नामक रबाबी को विदा करने के लिए चले और थोड़ी दूरी में ही भाई फिरंदा आंखों से अदृश्य हो गए और यह देख कर भाई मरदाना जी बहुत हैरान हो गए और वह सतगुरु नानक के पास आ गए तो सतगुरु नानक ने पूछा कि उसको विदा कर आए हो तब भाई मरदाना जी ने कहा कीहे गुरु जी मेरे देखते ही देखते पता नहीं वह कहां अभेद हो गय मुझे दिखे नहीं मैं बहुत हैरान हुआ हूं और फिर भाई मरदाना जी ने गुरु जी से पूछा कि यह मनुष्य कौन था जिसका स्वभाव बहुत अच्छा था और जिसकी और मनुष्य जैसी गति नहीं थी हे सतगुरु जी यह सारी व्याख्या मुझे सुनाएं मुझे बताने की कृपालता करें तो ये सुनकर गुरुजी ने कहा कि हे भाई मर्दाना ये संत रूप देवताओं के रागियों में से प्रेम में रंगा हुआ हाथ मे रबाब लेकर दिन रात कीर्तन करता रहता है बहुत लंबे समय से इसकी रबाब हमें भेंट करने की चाहत थी जो उसने हमें दे दी है इसको आप बिना देरी किए बजाना शुरू करें तो गुरु जी की आज्ञा पाकर भाई मरदाना जी रबाब बजाना शुरू करने लगे तो गुरुजी ने कहा कि सुर अपने आप बन जाएगी आप रबाब बजाएं यह सुनकर भाई मरदाना जी ने रबाब बजानी शुरू कर दी और सुर भी अपने आप बन गई और रबाब में से आवाज निकली "तू ही निरंकारा निरंकार करतारा है, तू ही निरंकारा निरंकार करतारा है" तो ऐसे रबाब की आवाज सुनते ही सभी पशु पंछी मोहित हो गए और मीठा नाद सुनकर गुरु जी की अखंड समाधि लग गई और सतगुरु अभेद ही हो गए इस तरह 2 दिन बीत गए और पदम आसान होकर बहुत ही शोभ रहे हैं जैसे पापों का नाश करने वाली मुक्ति आप ही समाधि लगा कर बैठी हो तो साध संगत जी यह स्थान सुल्तानपुर लोधी से 13 किलोमीटर की दूरी पर है और इस पवित्र स्थान से सतगुरु नानक का संबंध जुड़ा हुआ है साध संगत जी आज के परसंग की यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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