साध संगत जी आज की साखी एक गुरसिख बीबी की है जो कि हर रोज सतगुरु की वाणी का पाठ किया करती और ध्यान लगाया करती लेकिन उसके कोई औलाद नहीं थी तो वह पुत्र प्राप्ति के लिए सतगुरु नानक के आगे फरियाद किया करती तो जब सतगुरु की कृपा हुई तो उसे पुत्र प्राप्त हुआ और वह सतगुरु से किए वादे को निभाने के लिए जब गुरु घर जा रही थी तो रास्ते में पठान ने उसके साथ गलत करने का प्रयास किया तो उस समय सतगुरु ने उसकी संभाल कैसे की आईए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी गुरुद्वारा पंजा साहिब में संगत की रौनक हर समय बनी रहती है लेकिन गर्मियों के समय में और भी संगतें वहां पर इकट्ठी होती है तो एक बीबी जिसके घर पुत्र नहीं था और वह बे औलाद थी तो उसने सतगुरु नानक का ध्यान कर सुखना सुखी ली कि इस बार मेरे लड़का हो और फिर मैं पूर्णमासी को गुरु घर पहुंचकर कीर्तन में शामिल होयूंगी तो सतगुरु ने उसकी फरियाद सुन ली और उसके घर पुत्र ने जन्म लिया तो उस के बाद बाद उस के अंदर प्रेम की लहर उठी और सोचती रही कि मैं अपने पुत्र को पंजा साहिब में माथा डेकने के लिए लेकर चलूं तो जब पूर्णमासी आई तो वह रेलगाड़ी में बैठकर गुरु घर की तरफ जा रही थी तो उसने पंजा साहिब के स्टेशन पर उतरना था तो उसका ध्यान ना रहा और गाड़ी आगे निकल गई तो अगले स्टेशन पर जाकर उसने पूछा कि यह पंजा साहिब का स्टेशन है या फिर वह आगे आने वाला है तो लोगों ने कहा कि बहन वे तो पीछे रह गया है तो जब वह स्टेशन पर उतरी तो उसने स्टेशन मास्टर को पूछा कि अब पंजा साहिब को गाड़ी कब जाएगी और उसने अपनी सारी बात बताई कि मुझे पूर्णमासी की रात कीर्तन में शामिल होना है तो साध संगत जी वह स्टेशन मास्टर एक गुरसिख भाई था तो उसने देखा कि बीबी कीर्तन में शामिल होने के लिए बहुत उत्साहित है सतगुरु नानक के चरणों में हाजरी लगाने के लिए कीर्तन में शामिल होने के लिए अरदास विनती कर रही है कि मुझ अनजान को बख्श लें तो स्टेशन मास्टर ने एक टांगे वाले को कहा कि भाई इस बीबी को पंजा साहिब पहुंचा दें और कहा कि मैं तुझे किराए के अलावा इनाम भी दूंगा तो स्टेशन मास्टर को इस बात की खबर थी कि टांगे वाले हर रोज हमारी विनती करते रहते हैं और हमारा डर वह भी रखते हैं तो टांगेवाली ने अच्छा जी कहकर दोनों मां और पुत्र को टांगे में बिठा लिया वह समय शाम का था उसका मन बेईमान हो गया तो उसने तांगा एक तरफ खड़ा कर कर देखा कि कोई आने जाने वाला नहीं है तो उस पठान ने उस बीबी के बच्चे को जबरदस्ती खो लिया और जब वह उस बच्चे को पत्थर पर पटकने लगा तो वह बीबी दौड़कर अपने बच्चे की तरफ आई तो उस टांगेवाले ने उस बीबी को पकड़कर टांगे के साथ बांध दिया तो जब वह बच्चे को दोबारा मारने लगा उसने बच्चे को अभी पकड़ा ही था कि उस बीवी ने अपने नेत्र बंद किए और सतगुरु नानक के आगे अरदास की कि हे महाराज ! मेरे बच्चे की रक्षा करें और मेरा धर्म बचा ले तो सतगुरु की ऐसी कृपा हुई कि जब उस पठान ने पत्थर को हाथ डाला तो एक जहरीले सांप ने उसे डंक मार दिया और वह मर गया तो उस बीबी की अरदास कबूल हो गई तो एक फौजी ट्रक सिख ड्राइवर लेकर आ रहा था और उसने पंजा साहिब से निकलकर रावलपिंडी जाना था तो उसने गाड़ी की रोशनी से दूर से देखा कि तांगे के साथ किसी बीबी को बांधा गया है तो उसने पास जाकर गाड़ी रोक ली और पूरी बात उनसे पूछी तो उसने सारा हाल जाना और उसने देखा कि पठान की मृत्यु हुई पड़ी है और बच्चा रो रहा है और कुछ दूरी पर सांप भी है लेकिन जैसे ही वह फौजी बैटरी को लेकर आगे बढ़ा तो वह सांप दूर हो गया तो उसने बच्चे को संभाला और उस बीबी को उस टांगे से खोल दिया और खोल कर उन्हें अपने ट्रक में बिठा लिया और पंजा साहिब के लिए चल पड़े तो जब वह वहां पर पहुंच गए तो जब सारी वारदात भरी संगत में बताई गई तो सभी संगत ने सतगुरु नानक देव जी की जय जय कार की तो साध संगत जी इस प्रकार जिसके मन में यह भावना है कि मेरा परमेश्वर के अलावा और कोई नहीं है उसके अलावा मेरा कोई सहारा नहीं, उसकी सहायता के लिए परमेश्वर आप ही आता है "वीर्थी कदे न होवई जन की अरदास, नानक जोर गोविंद का पूर्ण गुणतास" जन बनना ही कठिन है लेकिन अरदास सुनने वाला परमेश्वर सदैव ही आया है अपने सच्चे भगत की अरदास सुन तुरंत वह कुल मालिक जमीन पर आ जाता है "अब राखो दास पाठ की लाज, जैसी राखी लाज भगत परहलाद की, हरनाक्ष फारे कर आज, फुन द्रोपति लाज रखी हरि प्रभ जी" शीनत वस्त्र दीन बोह साज" हे भाई ! परमात्मा हम जीवो द्वारा किए गए मंद कर्मों का कोई ख्याल नहीं करता वह अपने प्रेम वाले सभाव को याद रखता है प्रभु जी हमारे हिसाब किताब की पड़ताल नहीं करते और केवल अपने प्रेम वाले स्वभाव का ख्याल करते हैं हमें कुकर्मों से बचा कर रखते हैं और अपना हाथ देकर हमारी रक्षा करते हैं हमें गुरु मिला देते है जिसको पूरा गुरु मिल गया उसके विकारों के रास्ते में गुरु ने बन लगा दिया है और इस तरह उसके अंदर सभी आत्मिक आनंद पैदा हो जाते हैं सतगुरु कहते है कि मेरा सच्चा स्वामी सदा ही दयालु है जिस परमात्मा ने हमारे अंदर जान डाल कर इस शरीर को पैदा किया है जो हर समय हमें खुराक और पोशाक दे रहा है जिसने इस देह को रचा है वह परमात्मा संसार समुंदर के विकारों की लहरों से अपने सेवक की इज्जत आप बचाता है सतगुरु फरमा रहे हैं कि मैं उस परमात्मा से सदा ही सदके जाता हूं हे भाई ! ऐसे सभी विचार छोड़ दे कि संसार समुंदर से पार जाने के लिए तू बहुत समझदार है तू अपने मन को प्रभु की सेवा में लगा कर उसकी सेवा कर और जो मनुष्य गुरु के दर पर अपने आप को पूरी तरह से खत्म कर देता है वही मनचित फल प्राप्त करता है हे भाई ! अपने गुरु के उपदेश पर पूरा ध्यान रखा कर अपने गुरु के साथ मिलकर तू सदा ही सचेत रह तेरी हर एक आस पूरी हो जाएगी तेरी हर एक इच्छा पूरी हो जाएगी और अपने गुरु की तरफ से तू सारे खजाने हासिल कर लेगा तो साध संगत जी आज के प्रसंग कि यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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