साध संगत जी आज की साखी सतगुरु तेग बहादुर जी की है जब सतगुरु अमृतसर साहिब जिसे दरबार साहब भी कहा जाता है वहां पर गए थे तो वहां पर सद्गुरु को सम्मान प्राप्त नहीं हुआ बल्कि निरादर प्राप्त हुआ था उसके बाद क्या हुआ था आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं, साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले आज की शिक्षा है कि हे भाई ! मुबारक हो वह कागज और कलम यानी उस कागज और कलम पर प्रभु का आशीर्वाद है हे भाई मुबारक हो वह दवात और स्याही और मुबारक हो वह लिखने वाला जिसने प्रभु का सच्चा नाम लिखवाया यानी जिसने प्रभु का गुणगान लिखवाया और सतगुरु फरमान करते हैं कि हे प्रभु तू स्वयं तख्ती है और स्वयं ही कलम है और उस तख्ती पर अपना गुणगान भी स्वयं ही कर रहा है हे नानक प्रभु के गुणगान करने वाले और कराने वाला उस प्रभु को ही कहना चाहिए और कोई दूसरा कैसे हो सकता है साध संगत जी इस से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो कुछ भी हो रहा है वह ईश्वर की रजामंदी से ही हो रहा है उसकी मर्जी से ही हो रहा है ।
साध संगत जी सतगुरु की एक भक्त थी जिसका नाम था बीबी हारो उस ने सतगुरु को अपने घर विश्राम करने के लिए कहा तो उसका निमंत्रण पाकर सतगुरु ने कुछ दिन उस कुटिया में गुजारे तो भाई मक्खन शाह जी सतगुरु की मौजूदगी सुन माई हारों की कुटिया में आ गए तो जब भाई मक्खन शाह कुटिया में आया और उसने सतगुरु से मुलाकात की तो उसने कहा कि गुरु जी मैंने आपको कहा था कि आप मेरे साथ दरबार साहब चलें क्योंकि मेरी वजह से ही आपका निरादर हुआ है मैं आपके निरादर का दोषी हूं तो सतगुरु ने कहा कि मुझे पता था कि यहां पर यह सब कुछ होने वाला है इसलिए मैं यहां नहीं आना चाहता था यहां पर सभी लोग ईर्ष्या में जी रहे हैं और वह यह सोच रहे हैं कि हम सभी यहां पर आकर उन सबको दरबार साहब से बेदखल कर देंगे परंतु वह नादान यह नहीं जानते कि हम तो सिर्फ दर्शनों के अभिलाषी थे तो ये सुनकर भाई मक्खन शाह ने कहा कि गुरु जी अब तो आपने अपनी आंखों से देख लिया कि यहां पर क्या अनर्थ हो रहा है हे गुरु जी इस पवित्र धरती का उद्धार कीजिए और उन दुष्टों से इस धरती को मुक्त करवाने की कृपा करें जिस प्रकार बकाला में स्वयं घोषित नकली गुरु लोगों को लूट रहे थे उसी प्रकार यहां पर भी वैसी ही हालत है यह सभी दुष्ट भोले भाले लोगों को लूट रहे हैं अपनी मनमानी कर रहे हैं कृपया कर आप मुझे आज्ञा दें मैं इस पवित्र धरती से इन पाखंडियों का नाम और निशान मिटा दूंगा और सच्चे पातशाह की पातशाही कायम कर दूंगा तो साध संगत जी सतगुरु मक्खन शाह की भावना को समझते थे तो यह सुनकर सतगुरु ने वचन किए कि अगर हम इनसे बलपूर्वक स्थान और संपत्ति ले लेंगे तो हममें और इन लोगों के बीच में क्या अंतर रहेगा तो मक्खन शाह ने गुरुजी के तर्क को सुना और अपना मन मार कर रह गया तो साध संगत जी जब अमृतसर की संगत को गुरु तेग बहादुर जी के साथ बुरे व्यवहार का पता चला तो वह सभी सतगुरु से क्षमा मांगने और उनके दर्शन के लिए गांव बल्ला पहुंचे और जब वह सतगुरु के पास पहुंचे तो उन्होंने सतगुरु के आगे बिनती की कि गुरु साहिब हम आपके साथ किए गए व्यवहार के लिए बहुत शर्मिंदा है आप हमारे साथ चलिए हम आपकी सेवा करना चाहते हैं तो अमृतसर से आई हुई संगत में बहुत सारी महिलाएं भी थी तो गुरुजी ने उनका आग्रह अस्वीकार कर दिया और सतगुरु ने वचन किए कि "मांईया रब रजाइया" अर्थात माताओं को सभी को तृप्त करने के लिए पैदा किया गया है तो अमृतसर की संगत के द्वारा पश्चाताप करने पर भी सतगुरु वापस अमृतसर नहीं गए और उसके बाद तरनतारन नगर के लिए निकल गए गुरुजी ने वहां पर पवित्र स्थान में स्नान किया और वहां बने कुशत निवारण आश्रम में अपने हाथों से वहां पर सेवा की और उस संस्था को आर्थिक सहायता प्रदान की साध संगत जी आपको बता दें कि विश्व का सबसे बड़ा कुशत सतगुरु तेग बहादुर जी के दादाजी यानी कि पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जुन देव जी महाराज जी ने ही शुरू किया था तो ऐसे कुष्ठ रोगियों की सेवा करने के पश्चात गुरु साहिब गोविंदवाला में जा पहुंचे तो वहां पर रह रहे गुरु वंश के लोगों ने गुरु साहिब का बहुत सम्मान किया वहां पर श्री गुरु अमर दास जी की बेटी बीबी भानी जी की याद में एक कुआं बना है उस कुएं पर सतगुरु ने पुष्प माला चढ़ाकर उनको श्रद्धांजलि दी उसके पश्चात सतगुरु खडूर साहब से होते हुए वापस बकाला पहुंच गए गुरु तेग बहादुर जी को अमृतसर से बटाला आए हुए 2 माह बीत गए थे तभी उन्हें किरतपुर साहिब से माता कृष्णा देवी गुरु हरकृष्ण जी की माता का संदेश प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने लिखा था कि आपसे आग्रह है कि आप वापस किरतपुर पधारे और वहीं कहीं पुनर निवास का प्रबंध करें साध संगत जी सतगुरु पूरी तरह से सिख पंथ को समर्पित हो गए थे अब गुरु तेग बहादुर जी बकाला को अलविदा कहे किरतपुर साहिब परस्थान कर गए तो रास्ते में सतगुरु ने देखा कि कुछ लोग पालकी को उठा कर ला रहे हैं तो सतगुरु ने अपनी सेवकों से पूछा कि इस पालकी में कौन है तो उन्होंने कहा कि गुरु साहिब पालकी में श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़ है जो की धीर्मल से बल पूर्वक प्राप्त की गई थी तो गुरु साहब ने फिर अपने शांत स्वभाव का उदाहरण दिया और कहा कि हमें बलपूर्वक लाई गई बीड़ नहीं चाहिए तो गुरु साहब ने लाई गई उस बीड़ को एक मल्ला के माध्यम से वापस धीरमल के पास वापस पहुंचा दिया साध संगत जी गुरु तेग बहादुर साहिब जी का किरतपुर साहिब में माता कृष्ण जी और उनके बड़े भाई बाबा सूरजमल जी के पुत्रों ने उनका स्वागत किया गुरुजी ने वहां की संगत को गुरु वाणी का ज्ञान दिया और कुछ दिनों के बाद गुरुजी ने अपने मुख्य उद्देश्य पर ध्यान केंद्रित किया और किसी उचित स्थान की खोज पर निकल पड़े गुरुजी भविष्य में होने वाली राजनीतिक उथल-पुथल की संभावना के कारण जानते थे कि सिखों को एक ऐसा केंद्र मिले जो सभी की दृष्टि में उत्तम हो इसी खोज में गुरु जी ने मखोवल जगह को चुना यह गांव प्राकृतिक दृष्टि से पर्वतों की तलहटी पर बसा एक सुंदर गांव था जो की नदियों की आड़ से सुरक्षित मालूम होता था उन दिनों स्थानीय राजा नरेश दीपचंद का देहांत हो गया था तो रानी चंपा देवी जी ने गुरु जी को राजा की अंदेश की क्रिया में शामिल होने का निमंत्रण दिया और रानी ने सतगुरु को उसी नगर में रहने का आग्रह किया तो गुरुजी ने उस रानी के सामने उस क्षेत्र की जमीन खरीदने का प्रस्ताव रखा तो रानी ने गुरु साहिब से कहा कि हे गुरु जी हम आपको जमीन उपहार में देना चाहते हैं उसे बेचना नहीं परंतु सतगुरु ने रानी से कहा कि हम भूमि को बिना दाम दिए नहीं लेंगे तो इस पर रानी ने ₹500 लेकर मकोवल नाम का पट्टा गुरु जी की माता नानकी जी के नाम कर दिया तो मखोवल गांव में मधुमक्खियों के छत्ते पाए जाते थे और वहां से ही शहद का निर्यात होता था तो कुछ समय के पश्चात गुरु तेग बहादुर जी ने चक नानकी नामक स्थान की आधारशिला भाई गुर्दत्ता जी से रखवाई जोकि बाबा बुड्ढा जी के पौत्र थे चक नानकी स्थान का नक्शा सतगुरु ने स्वयं तैयार किया तो जैसे ही आसपास के लोगों को इस बात का पता चला कि सतगुरु नए नगर का निर्माण कर रहे हैं तो लोगों ने कार सेवा देनी शुरू कर दी यानी बिना वेतन के काम करना शुरू कर दिया तो सतगुरु ने नगर के लिए योजनाएं तैयार की जिसके अंतर्गत चक नानकी को एक व्यापारिक केंद्र बना दिया गया और एक मंडी क्षेत्र निर्धारित किया गया और नगर की सुरक्षा के लिए एक किले का निर्माण किया गया तो वहीं पर एक पीर मूसा रोपड़ी रहता था और उसने लोगों को पूछा कि इन भवनों का निर्माण कौन करवा रहा है तो उनमें से एक ने बोला कि पीर जी इन भवनों का निर्माण हमारे गुरुजी तेग बहादुर जी करवा रहे हैं जो श्री गुरु नानक देव जी के नौवें उत्तराधिकारी हैं तो यह सुनकर उस पीर ने कहा कि यह कैसे फ़कीर है यह तो दुनिया धार मालूम होते है क्योंकि जो अध्यात्म की राह पकड़ते हैं वह सांसारिक झमेलों में नहीं पड़ते तो कार्यकर्ताओं ने यह घटना सतगुरु तेग बहादुर जी को बताई और कहा कि गुरु जी आज एक पीर आया था और वह बोल रहा था कि सांसारिक झमेलों में गुरु, पीर, संत नहीं पड़ते तो यह सुनकर गुरु जी ने कहा कि पीर जी से कहो कि वह आए और मुझसे विचार विमर्श करें तो पीर सैयद मूसा रोपड़ी संदेश पाकर सतगुरु से मिलने आए और आकर गुरु जी से कहने लगे कि आप तो एक फकीर है फिर भी आपका दिल किन चीजों में खोया है सांसारिक झमेलों और मोह माया में पड़ा है और कहा कि यह शानदार भवन निर्माण किसी फकीर को शोभा नहीं देते यह आपको परमात्मा से दूर करेगा तो गुरु जी ने उत्तर देते हुए कहा कि यह भवन इत्यादि स्वार्थ के लिए नहीं है यह तो सांसारिक लोगों के कल्याण के लिए है और सतगुरु ने कहा कि माया उसी को सताती है जो इसे अपना समझता है यदि इनका उपयोग कल्याण के लिए किया जाए तो कल्याण जरूर होगा तो गुरु जी का उपदेश सुनकर वह संतुष्ट होकर लौट गए तो साध संगत जी आज के परसंग की यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
0 Comments
Please do not enter any spam link in the comment box.