Guru Nanak Sakhi । जब एक परिवार का इकलौता पुत्र मर गया तो गुरु जी ने क्या किया ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु तेग बहादुर जी की है जैसे कि आपने पिछली साखी में सुना कि कैसे सतगुरु ने पीर मूसा को सही रास्ता दिखाया था तो अगर आपने वे साखी नहीं सुनी है तो डिस्क्रिप्शन में उसका लिंक दिया हुआ है आप वहां पर जाकर वे साखी सुन सकते हैं तो साध संगत जी आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी, जब भाई मखन शाह जी सतगुरु से मिलने आए थे तो वह सतगुरु की सेवा में हाजिर हो गए थे तो उनको वहां पर सतगुरु की सेवा में बहुत समय हो गया था तो उन्होंने सतगुरु से अपने व्यवसाय को देखने की इजाजत ली और वहां से सतगुरु का आशीर्वाद लेकर चले गए तो उसके बाद लोगों को जैसे ही पता चला कि बाबा बकाले वाले श्री गुरु तेग बहादुर जी एक नया नगर चक नानकी बनवा रहे हैं तो आसपास के लोगों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और लोग हर रोज सतगुरु के पास गुरुवाणी सुनने आने लगे और नगर निर्माण के लिए अपनी आमदनी का दसवां हिस्सा देने लगे तो ऐसे धीरे-धीरे सतगुरु का नाम और यस चारों तरफ फैल गया तो अभी चक नानकी नगर बस ही रहा था कि कुछ मसंद बनारस से सतगुरु से मिलने पहुंचे और कहने लगे कि गुरु साहब आप हम पर कृपा करें आप पूर्व दिशा गंगा किनारे के नगरों में अपने चरण डालें वहां की संगत आपके दर्शनों की अभिलाषी है और उन्होंने सतगुरु से कहा कि बहुत लंबे समय से कोई गुरुजन वहां पर प्रचार करने नहीं पहुंचा और सतगुरु को यह भी संदेश मिल रहे थे कि औरंगजेब ने हिंदू जनता का दमन करने के लिए कुछ कड़ी नीतियों की घोषणा की है जिस कारण जन साधारण का जीना मुश्किल हो गया था और बहुत सी जगहों पर बगावत के सुर सुनाई देने लगे थे तो ऐसे समय में सतगुरु ने लोगों में जागरूकता लाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में प्रचार करने का मन बनाया साध संगत जी उन दिनों सतगुरु चक नानकी नगर का निर्माण करवा रहे थे लेकिन सतगुरु ने सबसे पहले राजनीतिक पीड़ितों की मदद करनी ठानी और सतगुरु का मानना था कि अगर समय रहते जनता का मनोबल नहीं बढ़ाया गया तो दुष्ट अत्याचारी शासक क्रूरता पर उतर आएंगे इससे पहले शासक ऐसा करें तब तक लोगों में इकट्ठ कर कर उनमें एकता का बल भर दिया जाए साध संगत जी चक नानकी नगर का निर्माण भी आवश्यक था और सतगुरु नहीं चाहते थे कि उसमें कोई विघ्न पड़े तो सतगुरु ने वह काम अपने परम सेवकों को सौंप दिया और उन सेवकों में भाई भागू जी, भाई रामे जी, भाई साधू मुल्तानी इत्यादि थे, सतगुरु अपने महल अपनी पत्नी माता गुजरी जी के साथ और अपनी माता नानकी तथा साला कृपाल चंद जी के साथ निकले सबसे पहले आप कीरतपुर साहिब के निकट घनोली गांव में ठहरे वहां पर कुछ दिन पहले ही लोग बाढ़ के कारण तंगी और गरीबी में जी रहे थे वहां पर सतगुरु ने लोगों को आर्थिक मदद दी और रोपड़ नगर से होते हुए गुरु साहिब बल्लूवाल पहुंचे, साध संगत जी वहां पर पहुंचकर सतगुरु को प्यास लगी और सतगुरु ने लोगों को पानी के लिए कहा तो वहां के स्थानीय लोगों ने कहा कि गुरु साहिब यहां का पानी खारा है हम अभी पास के गांव में से मीठा पानी मंगवा लेते है तो यह सुनकर गुरु साहिब बोले कि कोई बात नहीं आप ऐसे ही खारा पानी मुझे दे तो साध संगतजी जिस तरह गुरु जी की आज्ञा का पालन हुआ और सतगुरु को खारे कुएं का पानी दिया गया तो सतगुरु ने जल ग्रहण किया और कहा कि यह पानी भी मीठा है सतगुरु की बात परवान चढ़ी और वहां पर खारे पानी के सभी कुए मीठे पानी में बदल गए इसके बाद सतगुरु आगे बढ़ते हुए नौलखा और टहलपुर होकर सैफाबाद पहुंचे जिस स्थान को आज बहादुरगढ़ कहा जाता है और यह स्थान पटियाला में स्तिथ है साध संगत जी गुरु जी बहादुरगढ़ में एक सुंदर बाग के बाहर ठहरे थे जिस बाघ का नाम पंचवती था तो नवाब सैफ साहिब अपने महल से सतगुरु को वहां पर मिलने आया और सतगुरु से प्रार्थना कर बोला कि गुरु साहिब कृपा कर आप हमारे महल में चलें जिससे हमारे परिवार के लोग भी आपके दर्शन कर पाए वह नवाब इसलिए सतगुरु को अपने महल में बुलाना चाहता था कि बुर्के या पर्दे में रहने वाली स्त्रियां भी सतगुरु के दर्शन कर पाए तो गुरुजी ने नवाब सैफ खान की प्रार्थना स्वीकार की और नवाब के कहने पर उसके महल में ठहरे तो उसके महल के सामने ही एक सुंदर मस्जिद थी गुरुजी उस मस्जिद के चबूतरे पर बैठ कर लोगों को गुरबाणी सुनाने लगे तो एक दिन नवाब सैफ खान ने सतगुरु से पूछा कि गुरुवर मुझे कैसे अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए तो गुरु साहिब ने सैफ खान को गुरबाणी सुनाई जिसका अर्थ था कि हे काफिल यानी कि अचेत मनुष्य तूं पापों से बचा रहे और इन पापों से बचने के वास्ते उस परमात्मा की शरण में चला जा जो गरीबों पर दया करने वाला है और सारे डर दूर करने वाला है हे अचेत मनुष्य उस परमात्मा का नाम अपने हृदय में प्रोए रख जिसके गुण वेद, कुरान और धार्मिक पुस्तकें गा रही हैं हे अचेत मनुष्य पापों से मुक्त करने वाला नाम इस जगत में परमात्मा ही है तूं उस परमात्मा को सिमर सिमर कर सभी पाप दूर कर ले हे काफिल मनुष्य तू फिर मानव शरीर नहीं पा सकेगा तो फिर तू इसे क्यों व्यर्थ गंवा रहा है यही समय है मुक्ति प्राप्ति का मुक्ति प्राप्त करने का तूं इसका कोई इलाज कर ले तूं तरस रूप परमात्मा के गुण गा के इस संसार समुंदर से पार हो जा तो साध संगत जी इस प्रकार सतगुरु नवाब सैफ खान के अतिथि रहकर उसके बाद सतगुरु गांव लेहल में पहुंचे जो स्थान इन दिनों पटियाला में स्थित है उन दिनों वहां पर एक तालाब था और सतगुरु ने तालाब के पास एक वृक्ष के नीचे अपना डेरा लगाया तो जैसे ही लोगों को पता चला कि गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी सतगुरु तेग बहादुर जी वहां पर आए हैं तो वहां पर दीन और दुखियों की भीड़ लग गई, वहां पर सभी ने अपनी-अपनी समस्याएं सतगुरु को बताई और सतगुरु ने उनका निवारण किया तो वहां पर एक महिला ने दुखी होकर अपने बच्चे को सतगुरु के आगे लिटा दिया और कहा कि हे गुरुवर इसकी रक्षा करें यह दिन-ब-दिन सूखता ही जा रहा है और उसने कहा कि सतगुरु पहले ही इस बीमारी से इस गांव में बहुत सारे बच्चे मारे जा चुके हैं परंतु इस रोग का कोई उपचार नहीं मिल पा रहा मेरे बच्चे को बचाओ गुरुदेव ! मेरे बच्चे को बचा लो ! तो सतगुरु ने मां की पुकार सुनी और उस बच्चे को पास के तालाब में स्नान करवाया और उसके बाद बच्चा बिल्कुल ठीक हो गया आज उस स्थान पर गुरुद्वारा दुखनिवारण साहिब है जो पटियाला शहर में स्थित है श्री गुरु तेग बहादुर जी नगर नगर लोगों से मिलते हुए और अपने अभियान जन संपर्क अभियान को आगे बढ़ाते हुए मगरपुर नामक गांव में पहुंचे तो गुरु जी के पहुंचते ही वहां पर भक्त जनों की भीड़ इकट्ठी होने लगी गुरु जी सभी भक्तों की पुकार सुनते और उन्हें अपने हाथों से दान अथवा आशीर्वाद देते तभी वहां पर एक महिला आई और सतगुरु से पुकार करने लगी कि हे सच्चे पातशाह ! सतगुरु नानक के नौवें रूप मेरी आपसे यही विनती है कि मेरे विवाह के पश्चात भी मेरे घर कोई संतान नहीं है मेरी झोली संतान सुख से खाली है मेरी झोली भरो महाराज ! मेरी झोली भरो ! उसकी करुणामई पुकार से सतगुरु का मन पसीज गया और आपने उस बीबी से कहा कि, माता अब आप घर जाओ उस प्रभु की कृपा से आपको पुत्र की प्राप्ति होगी और तुम्हारी श्रद्धा को फल लगेगा इसके पश्चात सतगुरु अपनी आगे की यात्रा के लिए जन कल्याण के लिए आगे चल पड़े, साध संगत जी आज के प्रसंग कि यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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