साध संगत जी आज की साखी शुरू करने से पहले आज की शिक्षा है कि हे मेरे मन तू सदा राम का नाम जप तो ही तुझे आत्मिक सुख मिलेगा दिन रात उस सबसे बड़े मालिक के चरणों का ध्यान कर वह हरि ही सब जीवो को दांते देने वाला है और वे सब जगह व्यापक है इसलिए वह खुद ही भोगने वाला है इन शब्दों का अर्थ है कि ईश्वर ही देने वाला है और जिस व्यक्ति को वह देता है उसमें भी वही है अर्थात वही भोगने वाला भी है ।
साध संगत जी रुकनुद्दीन जब 150 लोगों का समूह लेकर काबा की ओर चल पड़ा वह अभी काबा से कुछ ही दूरी पर था तो सभी रुक कर कुछ विचार करने लगे और कहने लगे कि वह एक काफिर है और काफ़िर को कुत्तों के सामने डाल दो और जब तक वह मर नहीं जाए उसको पत्थर मारते रहो और कुछ कहने लगे कि काफ़िर को उबलते हुए तेल में डाल दो परंतु जैसे ही उन्होंने गुरुजी की तरफ बढ़ने के लिए पाव उठाए तो उन सभी के पाव वहीं पर रुक गए वह आगे नहीं बढ़ पाए, वे सभी चाहकर भी आगे नहीं बढ़ पा रहे थे सिर्फ रुकनुद्दीन ही आगे बढ़ पाए और बाकी सभी वहीं पर रुक गए क्योंकि उनके दिमाग और दिल बुरा सोच रहे थे और अगर वह आगे बढ़ते तो कुछ ना कुछ ऐसा करते जिसे की मर्यादा भंग हो जाती साध संगत जी रुकुनुदीन को भी अभी पूरी तरह सतगुरु पर विश्वास नहीं था परंतु सेवादार मुल्लाह की बातों में आकर उसके अंदर सतगुरु के प्रति आदर का भाव था तो वह अकेले ही सतगुरु के पास पहुंचे और जब वह सतगुरु के पास पहुंचे तो सतगुरु ईश्वर के ध्यान में लीन थे तो रुकनुद्दीन ने आदर सहित सतगुरु को प्रणाम किया और सतगुरु आसमान की तरफ देखकर बोले सत श्री अकाल ! रुकनुद्दीन यह सुनकर बहुत हैरान हुआ क्योंकि उसने ऐसे शब्द पहले नहीं सुने थे तो रुकुनुदीन ने सतगुरु से पूछा कि आप कौन से धर्म से है और आप कहां से आए है तो सतगुरु ने कहा कि मैं अल्लाह करतार का आदमी हूं और मेरा कोई धर्म नहीं है तो रुकुनुद्दीन कहने लगा कि अगर आप इंसान है तो आपका अवश्य ही कोई धर्म होगा क्योंकि अल्लाह ने धर्म इंसानों के लिए ही बनाए हैं तो कृपया आप सच बताएं कि आपका धर्म क्या है और कहां से आप आए हैं और यहां आने का आपका मकसद क्या है और रुकुनुदीन सतगुरु से कहने लगा कि गाना बजाना हमारे धर्म के खिलाफ है और आप यहां पर यह सब क्यों कर रहे हैं और वह सद्गुरु से कहने लगा कि मैंने मुला जीवन से यह भी सुना कि आपने काबा को अपने पैरों की तरफ घुमाया और वह कहने लगा कि आपने जो कुछ भी किया हमारे धर्म के खिलाफ है और 124000 नवि यह मान चुके हैं कि का काबा अल्लाह का स्थान है और सभी ये कहते हैं कि संगीत बजाना हराम है तो आपने ये सब यहां पर क्यों किया तो गुरु जी ने बड़े ही धैर्य पूर्वक रुकनुद्दीन की बातें सुनी और अरेबिक में गुरबाणी सुनाई जिसका अर्थ था कि रुकनुद्दीन तुम यहां के काजी हो तुम यहां के मुखिया हो, इस्लाम धर्म के चमकते चांद हो और मैं तुम्हें इसके लिए बधाई देता हूं परंतु जब बात सत्य और तरक की आती है तो तुम्हारा ज्ञान शून्य है तुम्हारा अहम तुम्हें और तुम्हारे साथियों को करतार से दूर कर रहा है हे रुकुनुद्दीन सभी तुम्हारा कहना मानते हैं और सभी तरह से तुझे पूजते हैं इसी बात का तुझे घमंड है और मेरा मक्का में आने का उद्देश्य यहां के लोगों से मिलना है ताकि हम सभी मिलकर एक सत्य को पहचाने और वह सत्य अल्लाह है, मस्जिदों में अल्लाह अल्लाह पुकारने से अल्लाह नहीं मिलेंगे और सतगुरु कहने लगे कि सबसे पहले अपने आप को पहचानो और जब अपने आप को पहचान जाओ तब दूसरे को जानने का प्रयास करो तो साध संगत जी ताजुद्दीन कहते हैं कि वह पूरा दिन रुकुनुदीन के सवालों और गुरु जी के जवाबों में बीत गया, रुकुनुद्दीन ने 360 प्रशन सतगुरु नानक से पूछे और हर सवाल के जवाब में रुकुनुद्दीन यही कहते गए कि हमारे धर्म गुरुओं ने हमें यही पढ़ाया है और गुरु जी ने समझाया कि धार्मिक नियमों के दास बनकर रहने में कुछ प्राप्त नहीं होगा और वह धार्मिक भजन जिसे इंसान ने बनाया है गौर करने की बात यह है कि गुरु जी ने अपने जीवन काल में जनेऊ प्रथा और कर्मकांड को भी सतगुरु त्याग चुके थे वह कहते है जो तुम कहते हो और जो तुम करते हो यहां तक कि धार्मिक ग्रंथ भी उस बात को मना नहीं करते तुम्हारे नबी संगीत का शौक रखते थे लेकिन इस पर पाबंदी तुम्हारे मुला और काजियों ने लगाई है गुरुजी ने रुकुनुद्दीन को एक कहानी के माध्यम से समझाया जिसका वर्णन इस्लामिक धार्मिक ग्रंथ में भी मिलता है एक दिन प्रोफेट्स साहिब को किसी जाति की तरफ से निमंत्रण मिला और जब वह वहां पर पहुंचे तो वहां पर लड़कियां लोक गीत गा रही थी परंतु जैसे ही उन्होंने प्रोफेट्स साहिब को देखा वह तुरंत ही चुप हो गई और भजन गाने लगी यह देखकर प्रोफेट्स साहिब बोले कि मुझे अच्छा लगा था जो आप पहले गा रही थी कृपया कर वह दुबारा गाओ, अल्लाह भला करेंगे वह प्रोफेट्स साहिब से आशीर्वाद मांग रही थी जो लोक संगीत गा रही थी और सत्गुरु कहने लगे मैं तो सिर्फ ईश्वर के नाम का भजन गा रहा हूं और तुम मेरे लिए फतवा निकालने की बात कर रहे हो यह कैसा न्याय है मुझे कुछ कहने से पहले तुम्हे वह पढ़ लेना चाहिए था जो प्रोफेट्स साहिब ने कहा है तो ऐसे गुरु जी के मुख्य से तर्क सुनकर रुकुनुदीन शांत हो गए और सतगुरु के सामने नतमस्तक हो गए और कहने लगे कि मैंने तो सुना था कि आप अल्लाह का रुप है कृपया मुझे शक्ति दें ताकि मैं आपको पहचान पाऊं तो गुरु जी ने अपने पास नतमस्तक हुए रुकुनुद्दीन को उठाया और कहा सत करतार ! सत करतार ! तुम्हारी हाजरी अल्लाह के दरबार में कबूल हुई है परंतु ध्यान रहे कि जो साथी तुम्हारे साथ आए हैं उन्होंने मेरे लिए सजा सोच रखी है और वह सोच रहें है कि तुम मुझे सजा दोगे लेकिन जब वह विपरीत देखेंगे तो वह तुम्हारे खिलाफ हो जाएंगे और शायद वह तुम पर हमला भी कर दे, तुमने मेरे खिलाफ फतवा जारी किया लेकिन अब तुम नतमस्तक हो मैं तुम्हारा स्नेह कबूल करता हूं परंतु तुम्हें अपनी जान के बारे में भी सोचना चाहिए साध संगत जी असल में सतगुरु रुकुनुद्दीन की परीक्षा ले रहे थे जैसे कोई सिटी खरीदने से पहले बजा कर देखता है कि वे सही है भी या नहीं परंतु गुरु जी की गुरु वाणी सुनकर उसका दिमाग बिल्कुल साफ हो गया था तो जब रुकुनुद्दीन ने अपने साथियों की तरफ देखा जो गुस्से की आग में जल रहे थे परंतु गुरु जी की गुरबाणी सुनकर काजी का व्यक्तित्व ऐसा हो गया था जो किसी को ड्राय ना परंतु वे खुद भी डर से मुक्त हो, फिर वह सतगुरु के सामने हाथ जोड़कर बोले हजरत कृपया उनके अंदर से भी यह भ्रम दूर करें, मेरे दो प्रश्नों का उत्तर देने की कृपया करें तो ये सुनकर गुरुजी बोले की में हजारों किलोमीटर इसी उद्देश्य से आया हूं ताकि मैं तुम्हारे सभी प्रशन दूर कर सकूं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दे सकूं, पूछो जो तुमने मुझसे पूछना है बेझिझक पूछो, तो रुकुनुद्दीन ने ये सुनकर कहा कि मेरा पहला प्रश्न है की हमारे प्रोफेट्स साहिब ने फरमाया है कि तीन में से अगर एक टेढ़ी हो जाए तो उसे काट देना चाहिए और उन्होंने यह भी कहा है कि अगर सिर के बाल गर्दन को आने लगे तो उन्हें भी काट देना चाहिए और आपने इनमें से कोई भी बात नहीं मानी है ऐसा क्यों ? तो सतगुरु ने फरमाया कि मैं तुम्हें वही समझा रहा हूं हमें वही करना चाहिए जो उस अल्लाह उस करतार ने हमारे लिए सोचा है आपका उद्देश्य अल्लाह को पाने का होना चाहिए और गुरु जी ने कहा कि हजरत मैं नहीं जानता कि अल्लाह हमसे क्या चाहता है आप कृपया कर मुझे समझाएं गुरुजी मुस्कुराए और बोले कि कुरान में लिखा है अल्लाह के शब्द तुम्हारे काम आएंगे तो ये सुनकर रुकुनुद्दीन ने कहा कि क्या कुरान में इन प्रश्नों का जवाब दिया है तो सतगुरु ने कहा कि बिल्कुल साफ साफ दिया हुआ है तो रुकुनुद्दीन ने कहा कि मैं कुरान को दिल से पढ़ता हूं और रोज पढ़ता हूं लेकिन मुझे उसकी गहराई आज तक समझ नहीं आई कृपया कर मुझे बताएं कि इस प्रश्न का जवाब क्या है गुरुजी बोले सुरा अलबकरा 196 तो ये सुनकर रुकनुद्दीन ने अपने साथियों से कहा कि भाइयों तुम अभी यह सोच कर परेशान हो रहे थे कि इन भारतीयों ने अपने बाल बिना कटवाए यहां की यात्रा की है और हम सब भी जानते हैं कि जो इन बातों को नहीं मानता वह अल्लाह के खिलाफ है लेकीन अयात 196 में यह साफ-साफ लिखा है अपनी हज यात्रा पूरी करने के लिए अपने बालों को मत कटवाए हज यात्रा के दौरान बाल कटवाना मना है कुरान के बाद गुरु जी के मुख से रुकुनुद्दीन के प्रश्नों का जवाब सुनने के बाद सभी गुरु जी से बहुत प्रभावित हुई ये देख कर लोगों का गुस्सा शांत हुआ और रुकुनुद्दीन को भी साहस मिला उसके बाद वह बोला कि हजरत हम एक और अंधेरे में है उस पर भी प्रकाश डालें यह माना जाता है कि काभा अल्लाह का घर है लेकिन आपने उसकी और पैर किए उसका अपमान किया है आपने ऐसा क्यों किया, तो यह सुनकर गुरु जी बोले कि रुकनुद्दीन कुरान ये नहीं कहती है कि अल्लाह का कोई घर है, प्रोफेट्स साहब ने साफ-साफ फरमाया था कि अल्लाह किसी घर या इमारत में नही रहता, ईश्वर तुम्हारे इतने करीब है जितनी कि हमारी जुगुलार बीन होती है यानि गले की वह नस जो इंसान को जीवित रखने के लिए बहुत आवश्यक होती है तो ये सुनकर रुकनुद्दीन सतगुरु के रंग में रंग गए और सत्गुरु के शिष्य बन गए साध संगत जी आज के प्रसंग की यही पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुए अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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