साध संगत जी, होली के त्यौहार और भगत प्रल्हाद में एक गहरा संबंध है और भक्त प्रह्लाद की भक्ति को लेकर गुरु ग्रंथ साहिब में भी वर्णन किया गया है साध संगत जी कहते हैं कि हिरणकश्यप को यह वरदान मिला हुआ था कि ना तो उसे कोई मनुष्य मार सकता है और ना ही कोई पशु उसे मार सकता है न ही वह दिन में मर सकता है और ना ही वह रात में मर सकता है और ना घर में मर सकता है ना ही घर के बाहर मर सकता है ना उसे कोई अस्तर मार सकता है और ना ही उसे कोई शस्त्र मार सकता है तो ऐसे बलिदान को पाकर वह बहुत घमंडी हो गया था ।
तो इसीलिए भक्त प्रह्लाद को गुरमुख माना जाता है और उनके पिता को मनमुख कहा जाता है मन्मुख वह है जो मन के रास्ते पर चले, मन के पीछे लगे जैसा मन कहे वैसा करें मन के अधीन होकर रहे, साध संगत जी हम होली क्यों मनाते हैं सिखों के तीसरे गुरु सतगुरु अमरदास जी ने वाणी में इसके बारे में क्या लिखा है आइए बड़े ही प्रेम और प्यार से जानने की कोशिश करते हैं, सतगुरु श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंग 1133 में लिखते हैं हे भाई ! प्रह्लाद अपने गुरु की शिक्षा पर चलकर अपने गुरु की आज्ञा का पालन कर भक्ति की राह पर चलता है और बालक परलाद किसी भी शारीरिक कष्ट से नहीं डरता हे भाई ! प्रह्लाद अपने शिक्षकों को रोज कहता है मेरी तख्ती पर हरि का नाम लिख दो, प्रभु का नाम लिख दो जो मनुष्य माया के जाल में रहते हैं वह इस जंजाल में फंसे रहते हैं भक्त प्रल्हाद अपने गुरु से कहते हैं कि मेरा गुरु मेरी रक्षा कर रहा है सारे सुख देने वाला परमात्मा हर समय मेरे अंग संग है मेरे साथ मौजूद है मेरी संभाल कर रहा है यानी वे हमेशा मेरे साथ बना रहता है भगत प्रह्लाद को उसकी मां समझाती है कि मेरे प्यारे पुत्र तू परमात्मा का नाम छोड़ दे और अपनी जान बचा ले तो भक्त प्रह्लाद जी कहते हैं कि हे मां सुन ! मैं परमात्मा का नाम लेना नहीं छोडूंगा और जाप करना मेरे गुरु ने मुझे सिखाया है तो सभी ने राजा हिरणकश्याप को बताया कि आपका पुत्र प्रह्लाद सभी बच्चों को बिगाड़ रहा है उन्हें खराब कर रहा है तो राजा हिरणकश्यप ने कहा कि अगर वह नहीं मानता है तो उसे खत्म कर दिया जाए लेकिन उसकी संभाल के लिए वह कुल मालिक खुद हाजिर हो गया उसकी संभाल के लिए उसके अंग संग हो गया हे भाई ! हिरणकश्यप बड़े अहंकार में आकर अपने हाथ में तलवार लेकर परलाद पर टूट पड़ा और कहने लगा कि कहां है तेरा हरि जो तुझे बचा लेगा तो इतना कहने की देर थी कि परमात्मा भयानक रूप धारण कर नरसिंह अवतार में आकर खंभे को फाड़ कर बाहर निकल आया और उसने हिरणकश्यप को अपने नाखूनों से चीर डाला और प्रह्लाद को बचा लिया तो साध संगत जी सतगुरु फरमान करते है कि हे भाई ! परमात्मा सदा आपने भक्तों के काम सवार्ता है देख उसने प्रह्लाद की 21 कुल का भी उद्धार कर दिया हे भाई ! परमात्मा अपने भक्तों को गुरु शब्द से जोड़कर उनके अंदर आत्मिक मौत लेकर आने वाले अहंकार को समाप्त कर देता है और हरि नाम से जोड़ कर उनको संसार समुंदर से पार कर देता है हे भाई ! परमात्मा हर युग में अपने भक्तों की इज्जत रखता आया है देखो हिरणकश्यप का पुत्र प्रह्लाद पूजा पाठ कुछ भी नहीं जानता था अर्थात क्योंकि वह आयु में बहुत छोटा था इसलिए उसने कुछ भी नहीं सीखा था बस उसे एक ही रट लगी रहती थी वह थी हरि का नाम प्रभु का नाम परंतु फिर भी परमात्मा ने उसको गुरु के शब्द से जोड़कर अपने चरणों में मिला लिया हे भाई ! परमात्मा अपने संत जनों को दुख देता है अर्थात उन्हें दुख देकर उनकी परीक्षा लेता है और फिर खुद ही संत जनों का रखवाला बनता है हे भाई ! वह अपने भक्तजनों को चाहे जितनी ही कष्ट क्यों ना दे दे लेकीन उनको कोई तकलीफ नहीं होती, भाव उन्हें बाहर से कष्ट दिया जा सकता है परंतु अंदर से परमात्मा उन्हे निर्भय बना देता है हे भाई जो व्यक्ति दिन रात उस परमात्मा की भक्ति करते है उन्होंने अपने गुरु के शब्द से अपने अंदर से अहंकार को खत्म कर दिया है यानी कि वह तेर मेर में नहीं पड़ते और जो मनुष्य हरि नाम मे लीन रहते हैं उसकी बंदगी में रहते है जिनके मन में सदा प्रभु बसा रहता है उनका जीवन सदा ही पवित्र बना रहता है उस पर उस मालिक की कृपा होती रहती है हे भाई भक्त प्रल्हाद तेर मेर पैदा करने वाली पढ़ाई नहीं पड़ते, वह परमात्मा का नाम नहीं छोड़ता वह किसी के डर से डरता नहीं वह अंदर से निर्भय होता है हे भाई ! परमात्मा अपने संत जनों का रखवाला स्वयं है अपनी हद से बढ़कर मूर्ख हिरणकश्यप ने अपने काल को खुद बुला लिया है हे भाई ! भक्त और परमात्मा की इज्जत सम्मान है हे भाई ! अगर भक्तों के समान को अगर कोई ठेस पहुंचाता है तो वह परमात्मा अपने भक्तों की रक्षा कर कर अपना सम्मान स्वयं रखता है वह अपने भक्तों की महानता को नष्ट नहीं होने देता, हे नानक ! परमात्मा ने नरसिंह अवतार लेकर हिरणकश्यप को अपने नाखूनों से चीर दिया, ताकत में अंधे हो चुके हिरणकश्यप ने परमात्मा के भेद को नहीं जाना अर्थात वह यह नहीं समझ पाया कि परमात्मा और उसके भक्तों का सम्मान एक ही है और परमात्मा अपने भक्तों का सम्मान खुद रखता है यह भेद ना समझने के कारण हिरणकश्यप को अपनी जान गंवानी पड़ी, भक्त नामदेव जी ने भी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी 1165 में भक्त प्रह्लाद का वर्णन किया है और यह बताया है कि जब भक्त प्रह्लाद के पिता हिरणकश्यप ने उसे बहुत समझाया लेकिन जब उसने एक ना सुनी तो उसे मारने के लिए उसके पिता ने बहुत सारी नाकामयाब कोशिशे की जैसे कि उसे पहाड़ से नीचे फेंक देना और अग्नि में जिंदा जलाने की कोशिश करना, होली के त्योहार पर होलिका दहन की परंपरा तभी से चली आ रही है कहा जाता है कि जब भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए हिरणकश्यप की सभी कोशिशें फेल हो गई थी तो फिर उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि हे बहन ! तुम्हें तो वरदान है कि तुम आग में नहीं जल सकती तो तुम परहलाद को अपनी गोदी में लेकर अग्नि में बैठ जाओ ताकि इसको सजा दी जा सके साध संगत जी बहन ने अपने भाई के हुक्म का पालन किया तो वह भगत प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई तो भक्त प्रह्लाद जी को तो कुछ नहीं हुआ परंतु होलिका जलने लगी और यह इसलिए हुआ क्योंकि उसने वरदान का गलत इस्तेमाल किया था तो उसके बाद परमात्मा खुद नरसिंह अवतार में आया है जो कि ना तो मनुष्य है और ना ही कोई जानवर और उस समय परमात्मा महल में आप खंभा तोड़कर प्रकट हुए तो उस समय ना तो दिन था और ना ही रात और उसको अपने घर की चौखट में ले गए और कहा कि अब न तो तूं अंदर है और ना ही बाहर तो साध संगत जी नरसिंह अवतार में परमात्मा ने इनके शव को अपने नाखूनों से पाड़ा और उस समय ना ही अस्त्र था और ना ही शास्त्र इस प्रकार गुरमुख की जीत हुई और अभिमान का अंत हुआ तभी से होली पर होलिका दहन के नाम की परंपरा चली आ रही है, साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते है, आज के प्रसंग की यही पर समाप्ति होती है, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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