साध संगत जी आज की साखी सतगुरु अर्जन देव जी महाराज जी के समय की है जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश सिख रूप धारण कर गुरु घर सेवा करने आए और सतगुरु ने उन्हे कैसे पहचाना आइए बढ़े ही प्रेम और प्यार से आज का ये प्रसंग श्रवण करते हैं ।
सूही मोहल्ला पंजवा - "संता के कार्ज आप खोलिया हर कम करावन आया राम" धर्त सुहावी थाल सुहावा विच अमृत जल छाया राम" सुही रागनी के अंदर श्री गुरु अर्जन देव जी का ये मुख वाक उच्चारण किया हुआ है, साहिब श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जब स्रोवर अमृतसर साहिब की खुदवाई सिख संगतों की तरफ़ से करवा रहे थे तो खोदते खोदते उस पवित्र जगह पर पहुंचे जिसको आज हर की पौड़ी कहा जाता है, धरती का थल इतना करड़ा था कि सिख संगतों की तरफ़ से मिट्टी खोदी न जाए, मिट्टी खोदने वाले जो औजार थे वह मार मार कर सिख थक गए थे और कुछ संगत के हाथ मे शाले पड़ गए जब बहुत थक गए तो सतगुरु के पास आकर बिनती करने लगे कि वहां से मिट्टी खोदी नहीं जा रही तो यह सुनकर गुरु साहिब ने कहा कि अब रहने दो कल दीवान की समाप्ति के बाद खुदवाई शुरू करेंगे तो अगली सुबह सतगुरु का सुंदर दीवान सुशोभित हो रहा था श्री गुरु अर्जन देव जी लाची वेर के नीचे बैठकर सिख संगतों को उपदेश दे रहे थे अमृत सोरोवर के पास तीन बेरियां आज भी पुरातन इत्यास की शांक भर रही है उनमें से एक बेरी का नाम दुखभजनी बेरी है यहां पर बीबी भजनी का पिंगला पति स्वच्छ हुआ था दुसरी बेरी बाबा बुढ़ा साहिब जी की याद दरसा रही है यहां पर बाबा बूढ़ा जी बैठकर सेवा करवा रहे थे तीसरी बेरी यहां पर सत्गुरु अर्जन देव जी बैठ कर सेवा करवाया करते थे जिसका नाम लाची बेर है सत्गुरु जी सिखों को परमेश्वर की सिफत सलाह के वचन सुना रहे थे और उधर भगवान विष्णु जी ने सब देवताओं को साथ लेकर सिखों का रुप धारण कर और अपना कार्ज़ समझकर सेवा अरभ की, भगवान विष्णु जी ने हरि की पौड़ी वाली जगह आप खोदी और भगवान शिव जी ने मिट्टी की टोकरियां भरी और भगवान ब्रह्मा जी सभी देवताओं के साथ उसे बाहर फेंकते गए और साथ में सतनाम वाहेगुरू की धुन उच्चारण करने लगे, सतनाम की आवाज़ सुनकर मीठी रसीली धुन सुनकर सतगुरु जी का ध्यान, सतनाम वाहेगुरू कहने वालों की तरफ पड़ा तो सतगुरु जी ने कहा कि पता कराओ कि यह संगत कौन से इलाके से आई है और कहां पर सेवा कर रही है सिखों ने बहुत सारे सेवा करने वालों को पूछा लेकिन किसी ने भी कुछ नहीं बताया क्योंकि देवताओं के सामने यह एक धर्म संकट था क्योंकि अगर वह झूठ बोलते हैं कि हम कौन सी जगह से आए हैं तो झूठ बोलने का पाप होना था और अगर वह सच बोलते हैं तो गूंजा भेद प्रगट होता है, सो इस तरह से दोनों पक्ष झूठ बोलने से बच गए और रब्बी भेद भी परगट नहीं हुआ तो उस समय संगत ने सद्गुरु के पास जाकर कहा कि गुरु जी पता नहीं वह कहां से है और कौन सी संगत है जो सतनाम का जाप कर रही है और अपनी सेवा में लीन है हमने उनसे उनके बारे में पूछने के कई प्रयास किए है लेकिन वह कुछ बोलते ही नहीं तो गुरु जी ने अपने अंदर के नेत्रों से देखा तो पाया कि परमेश्वर खुद भगवान विष्णु जी के साथ और सभी देवताओं के साथ सेवा कर रहे हैं तो जब वे कार्रज समाप्त हो गया तो सिख इस बात से अनजान ना रहे कि यह कार्य किसने किया है तो सतगुरु ने उस वाहेगुरु के ध्यान में यह शब्द उच्चारण किया और बताया कि भाई वह किसी इलाके के सिख नहीं थे बल्कि वह तो इस सृष्टि के रोजी दाता थे सारी सृष्टि के रखवाली करने वाले, सारी सृष्टि की देखभाल करने वाले, गुरु नानक घर की सेवा करने के लिए और रुके हुए कार्य को नेपरे चढ़ाने के लिए मेरी दास की मदद करने के लिए आए हुए थे और संसार को यह ज्ञान देने के लिए कि संसार के सभी तीर्थों से उत्तम तीर्थ यह है यह परमात्मा का घर है यहां पर मनुष्य अपने हाथों से सेवा करकर अपना मनुष्य जन्म सफल कर पाए जैसे देवताओं ने किया है यह समझाने के लिए भगवान जी ने अपने हाथों से सेवा की तो सतगुरु अर्जन देव जी ने यह शब्द उच्चारण किया यह मुख्य वाक इसलिए भी और मुख्य वाको से महानता रखता है क्योंकि इसके साथ इतिहास जुड़ा हुआ है कि जब सतगुरु अर्जन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का स्वरूप भाई गुरदास जी को लेकर पूर्ण करवाया सम्मत सोला सो इकाठ विकर्मी भादरों सुवि एकम को पहला प्रकाश श्री हरमंदिर साहिब जी में करवाया और बाबा बुड्ढा साहिब जी को हेड ग्रंथि बनाया, हुकुम हुआ कि मुख वाक सुनाना करो तो पहले यही मुख वाक गाया गया था श्री गुरु अर्जन देव जी परमेश्वर का शुकराना करते हुऐ इस तरह उच्चारण करते हैं "संता के कार्ज आप ख्लोया हरि कम करावन आया राम, इसलिए श्री रामदास जी के काम करने के लिऐ श्री हरि परमेश्वर आप आया है और हर की पौड़ी का गढ़ तोड़ने में जो काम था वह हरि ने खुद आकर किया है इस दौर में भी गड़ निकालने का जो काम था वह प्रभु परमेश्वर ने आपा कर दिया है उसको करवाने के लिए परमेश्वर खुद देवताओं को अपने साथ लेकर आया "धर्त सुहावी थाल सुहावा विच अमृत जल छाया राम" चारों तरफ श्री अमृतसर साहिब जी की धरती शोभनीक हुई है श्री हरमंदिर साहिब जी का सरोवर भी शोभनिक हुआ है रम्मे हुए परमेश्वर की कृपा के साथ जल अमृत रूप हो कर स्तिथ हुआ है "अमृत जल छाया पूर्ण साज कराया सगल मनोरथ पूरे" इस तालाब में जल अमृत रूप हो कर स्तिथ हुआ है पूर्ण परमेश्वर ने आप हाज़िर होकर श्री हरमिंदर साहिब का साजना करवाया है और मेरी मन के सभी मनोरथ पूरे हो गए हैं भाव हरमंदिर साहिब की और सरोवर की सेवा संपूर्ण होवे, सो हो गई है " जय जय कार भया जग अंतर लाथे सगल वसूरे" श्री हरमिंदर साहिब और सरोवर की पूरी तैयारी होने के कारण इस कार्य की संपूर्णता में पूरे संसार में जय जयकार यस रुप ध्वनियां हो रही है और सभी वसुरे लेह गए है "जय जय कार भया जग अंतर पारभ्रम मेरो तारो तरण" जय जय कार भ्ये जग भीतर हुआ पारभ्रम रखवाला, जय जय कार यास जग अंदर मंदिर भाव जुगत सिवि रहता" साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते है, आज के प्रसंग की यही पर समाप्ति होती है, प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।
साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके ।
By Sant Vachan
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