साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जब मुल्तानी मल नाम का एक सेठ सतगुरु के पास आता है और कहता है हे सच्चे पातशाह ! मुझे माया का रूप देखना है मुझे माया को जानना है और वह सतगुरु नानक के सामने माया को देखने के लिए जिद करने लगता है तब सतगुरु उसे रावी दरिया में स्नान करने के लिए कहते हैं उसके बाद उसके साथ क्या होता है आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी लाहौर शहर में एक मुल्तानी मल नाम का सेठ, जवान उम्र का था जो साधु संत महात्माओं की सेवा किया करता था उनकी संगत किया करता था वह जब भी किसी महापुरुष से मिलता तो उनसे सवाल करता कि मुझे माया के संबंध में कुछ बताएं कि माया का स्वरूप कैसा होता है तो एक बार श्री गुरु नानक साहिब लाहौर में पहुंचे और दरिया रावी के किनारे पर जाकर बैठ गए तो अपने संत स्वभाव के कारण मुल्तानी मल सतगुरु के चरणों में जा पहुंचा और जो प्रशन उसके हृदय में बहुत देर से घूम रहा था बहुत देर से बना हुआ था और जिसका उत्तर उसे बहुत सारे महापुरुषों ने अपने अपने तरीके से दिया था और उन उतरों को पाकर उसकी तसल्ली नहीं हुई थी तो उसने वही प्रशन सतगुरु नानक को किया की माया का स्वरूप क्या है और वह सतगुरु नानक से कहने लगा कि हे साहिब ! मुझे माया का स्वरूप दिखाएं की माया का स्वरूप कैसा होता है तो यह सुनकर सतगुरु कहने लगे कि तू माया का स्वरूप क्यों देखना चाहता है जिसे देख कर तू उस करतार को ही भूल बैठे और अपने सगे संबंधियों और अपने आपको भी भूल बैठे क्योंकि माया का स्वरूप ही भूलना है तो उसने सतगुरु के आगे माया का स्वरूप देखने की बहुत जिद की तो उसकी ऐसी जिद के कारण सतगुरु ने कहा कि ठीक है भाई अगर तूं माया का स्वरूप देखना ही चाहता है तो जो सामने रावी नदी है इसमें स्नान कर कर मेरे पास आओ मैं तुमको माया का स्वरूप दिखा देता हूं यह सुनकर मुल्तानी मल ने सतगुरु की आज्ञा पाकर अपने कपड़े रावी नदी के किनारे रख दिए और नदी में स्नान किया तो स्नान करते समय एक मछ ने उसको निगल लिया जिसका बहुत बड़ा आकार था जब उसको मछ ने पकड़ा तब उसकी उम्र 21 साल की थी और उसके घर में उसके माता-पिता और उसकी घरवाली और एक उसका बेटा था जो लाहौर में रहते थे तो उस मछ ने उसको पकड़कर मुल्तान में जा छोड़ा और मुल्तान में दरिया रावी के किनारे एकादशी के पूर्व को मुख रख कर लोग स्नान करने के लिए आए हुए थे तो उनमें से एक सेठ जिस की औलाद नहीं थी वह भी अपनी पत्नी के साथ दरिया के किनारे घूम रहा था तो उस समय उस मगरमच्छ ने मुल्तानी मल को 21 साल की उम्र की बजाय एक नव जन्मे बच्चे में परिवर्तित कर दरिया के किनारे रख दिया और उस पर उस सेठ की और उसकी पत्नी की नजर पड़ गई जिन्होंने इस को परमात्मा की दात समझ कर अपनी गोद में ले लिया और फिर उसका नामकरण किया और उसका नाम भी मुल्तानी मल रखा और उसकी जन्म तारीख सरकारी दरबार में लिखा दी और भाईचारे में खुशियां बांटी लेकिन वह बार-बार सोच रहा था कि मैं तो लाहौर का रहने वाला था यहां पर कैसे आ गया लाहौर में मेरे मां-बाप मेरी स्त्री और मेरा पुत्र था तो मुल्तान वाले परिवार को जब उसने यह बात बताई तो उन्होंने इसको कहा कि या तो तुझे पिछले जन्म की स्मृति है और या फिर कोई सपना आया है तो जब वह उनके घर मुल्तान में बड़ा हुआ तो इसकी शादी कर दी और इसके घर एक बेटे ने जन्म लिया तो उसके पिता ने दुकान का सारा कामकाज उस पर छोड़ दिया जो भी लेनदेन था सब इस पर छोड़ दिया तो वह अपना कार्य मन लगाकर करता तो एक बार एक महात्मा जिसका नाम हरिदास था उसने एक रुपए की एक वासली ली जो कि लोग अपनी कमर के साथ बंदा करते थे और उसमें कुछ पैसे रखा करते थे तो वह महात्मा उस वानसली को लेकर मुल्तानी मल के पास छोड़ गया लेकिन ग्राहकों की भीड़ होने के कारण मुल्तानी मल उसको खाते में दर्ज करना भूल गया तो जब मुल्तानी मल की उम्र उतनी पूरी हो गई जितनी उसकी लाहौर में थी भाव 21 वर्ष का हो गया तो एकादशी के दिन माता पिता स्त्री और अपने बच्चे के समेत रावी दरिया के किनारे स्नान करने गया तब उसने दरिया में प्रवेश किया ही था कि उस मगरमच्छ ने फिर उसको साबुत ही निगल लिया और वापिस ले जाकर लाहौर छोड़ दिया तो जो कपड़ों के पास नौकर था वह उसको पूछता है कि यह कपड़े किसके हैं इस शहर का नाम क्या है तब नौकर ने कहा कि मालिक आपको क्या हो गया है यह कपड़े आपके ही हैं और मैं आपका नौकर हूं और ये वहीं शहर है जहां के आप वस्नीक हो तो यह सुनकर मुल्तानी मल कहता है कि मैं तो मुल्तान का रहने वाला हूं तो नौकर ने घर वालों को बुलाया और वही माला लोटा और कपड़े पड़े हुए हैं और मुल्तानी राम सबको देखकर भ्रम में पड़ गया और वह पूछता है कि मैं कौन हूं तब वह कहते हैं कि तू पागल है जो पूछ रहा है कि कपड़े किसके हैं तो ये सुनकर मुल्तानी राम ने कहा कि लाहौर तो मैंने कभी देखा भी नहीं मैं तो मुल्तान का रहने वाला हूं तो लोग उसको पकड़ कर उसके मित्र के घर ले आए तो उसके माता-पिता भी रास्ते में मिले और सभी ये देख कर हैरान हुए की ये क्या हो गया तो लाहौर वाली माता ने पूछा कि नहा कर जल्दी आ गया, सुख तो है पहले जब तू जाता था तब तो देर लगा कर आता था तो घरवाली ने पूछा कि आप आज दरिया में गए ही नहीं जो इतनी जल्दी आ गए हो तो ये सुनकर मुल्तानी राम पूछने लगा कि आप कौन हो तो उसकी मां ने कहा कि मैं तुम्हारी मां हूं यह तुम्हारी पत्नी और तुम्हारा बच्चा है तो मुल्तानी राम कहने लगा कि मैं तो मुल्तान का रहने वाला हूं और यह कहकर वह रोने लग गया तो उसकी ऐसी दशा देखकर बहुत लोगों ने उसे समझाया कि तू लाहौर का रहने वाला है और यही तेरा परिवार है तो दूसरी तरफ मुल्तान में माता-पिता विर्लाप करने लगे कि हमारे पुत्र की मृत्यु हो गई है और उसकी पत्नी ने विधवा का वेश धारण कर लिया और संत हरिदास जो वासली उसके पास छोड़ गए थे वह लेने आए तो उन्होंने पूछा कि मुल्तानी राम कहां है तो पिता ने कहा कि वह तो मर गया तो संतो ने अपनी अमानत पूछी तो उसे देखा गया लेकिन उनकी अमानत नहीं मिली तो संतो के साथ सेठ का झगड़ा हो गया और सेठ ने कहा कि एक तो मेरा पुत्र मर गया है और दूसरा तू मुझ से पैसे मांग रहा है तो यह सुनकर संतो ने कहा कि मैंने जिंदगी में कभी झूठ नहीं बोला है तो आखिर संतो ने उस पर मुकदमा कर दिया और वह केस लाहौर में बड़े सूबे के पास जा पहुंचा तो संत हरिदास मुकदमे में हाजिर होने के लिए लाहौर पहुंचे तो उन्होने अनारकली बाजार के पास वाली दुकान पर मुल्तानी राम बैठा देखा और उसे देख कर संत बहुत प्रसन्न हुए और कहने लगे कि तू तो मर गया था यहां पर कैसे आया और वह कहने लगा कि यह विचार कर तो मैं भी हैरान हूं और मुल्तान को याद कर बहुत दिनों तक रोता भी रहा लेकिन सभी लोगों ने मुझे समझाया और यह निश्चय करवा दिया कि मैं लाहौर का रहने वाला हूं और वह संत हरिदास जी से कहने लगा कि अब आप ही बताएं कि मैं लाहौर का रहने वाला हूं या फिर मुल्तान का तो ये सुनकर संतों ने कहा कि तू मुल्तान का रहने वाला है और हमने तुझे ₹100 की वांसाली दी थी क्या तुम्हें याद है कि वह कहां पर है तो ये सुनकर मुल्तानी राम ने कहा कि वह तो दुकान के मेज के नीचे पड़ी हुई है तो संतो ने चिट्ठी लिखवाई और मुल्तान जाकर दिखाई तो उसने उनकी अमानत उनको देकर खिमां मांगी और वह संत उसको साथ लेकर लाहौर पहुंचे, लाहौर पहुंचकर मुल्तानी राम ने सब को पहचाना और उनसे मेल मिलाप किया लेकिन उसको इस बात का ज्ञान नहीं हो रहा था कि मैं किसका संबंधी हूं, दिन के समय वह लाहौर वालों की तरफ और रात के समय वह मुल्तान वालों की तरफ हुआ करता आखिर दोनों परिवारों का झगड़ा हुआ और मुकदमा शुरू हुआ और सबूत पेश किए गए तब एक ही जन्म तारीख और विवाह का भी एक ही दिन निकला तो इससे हैरान होकर बादशाह ने ज्योतिष बुलाए लेकिन इसका भेद नहीं पाया गया तो आखिरकार बादशाह ने कहा कि मुझसे यह फैसला नहीं होगा आप अपना फैसला खुद कर लेंगे तो दोनों परिवारों की फिर से लड़ाई हो गई तो मुल्तानी मल ने दुखी होकर सतगुरु नानक को याद किया तब गुरु साहिब ने वहां आकर झगड़े को खत्म किया सभी के नेत्र बंद करवा कर नाम की धुन लगाई तो जब नेत्र खुले तो एक मुल्तानी मल लाहौर वालों की तरफ और एक मुल्तान वालों की तरफ खड़ा हो गया भाव दो मुल्तानी मल हो गए इस तरह झगड़ा खत्म हो गया तो दूसरे दिन लाहौर वाला मुल्तानी मल सतगुरु नानक देव जी के चरणों में हाजिर हुआ और पूछने लगा कि महाराज जी ये सब क्या हुआ है तब सतगुरु जी कहने लगे कि कुछ नहीं हुआ है तुझे सिर्फ माया की झलक दिखाई है तू कहीं पर भी नहीं गया था यहीं पर बैठा है और निरंकार की माया ने तुझे एक घड़ी में सब कुछ दिखा दिया है इसलिए परमेश्वर की माया ऐसी चमत्कारी है जिसने सभी जीवो को भ्रम में डाला हुआ है "माया मोह मेरे प्रभ कीना, आपे भ्रम भुलाए, एह माया जित हर विसरे मोह उपजे भाव दूजा लाया" जिसके कारण हरि वाहेगुरु भूल जाए वह माया है भाव जो परमात्मा को भुलाकर अपनी तरफ खींच ले या जोड़ ले वही माया है फिर चाहे वह पुत्र, स्त्री संबंधी घर बार आदि है सब माया का ही स्वरूप है और यहां पर सतगुरु कबीर जी फरमाते हैं कि जिस जीव के पेट लगा है तो यह समझो कि उसे माया ही लगी हुई है क्योंकि माया परमेश्वर को भुलाने वाली शक्ति का ही नाम है और सतगुरु फरमाते हैं कि हे परमेश्वर ! वाहेगुरु आप मेरे ऊपर कृपा करने वाले हो ऐसी कृपा करो कि मैं आपके गुणों को गाता रहूं और सतगुरु जी फरमान करते हैं कि हे प्रभु जी दास की यही विनती है कि आठों पहर साध संगत में मिला रहूं तो साध संगत जी आज के प प्रसंग की यहीं पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों कि क्षमा बक्शे जी ।
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By Sant Vachan
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