साध संगत जी आज की साखी सतगुरु हरगोविंद जी की बाल लीला से संबंधित है जब सतगुरु की देखरेख करने वाले ब्राह्मण ने लालच में आकर जहर से भरा हुआ दही का कटोरा सतगुरु को पिलाने की कोशिश की तो उसके बाद सतगुरु के पालतू कुत्ते ने क्या करामात की थी आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।
साध संगत जी एक दिन प्रितिया बड़े सुख और आराम में बैठकर अपनी पत्नी के साथ अपनी बड़आयी कर रहा था कि गुरु अर्जन देव जी मेरी पदवी सिर पर धारण कर गुरु कहलाते हैं तो किस तरह मेरे सिख उनके आगे जाकर सिर झुकाएंगे और वह कहने लगा कि जो अच्छी मत वाले सिख है वह तो मुझे ही मानते है मेरी करामाते देखकर मेरे लिए भेट लेकर आते हैं मुझ से मुंह मांगी मुरादे पाते हैं और कहते हैं की जब हम पर मुश्किल आई थी तब मैं वहां पर सहाई हुआ था तो इस तरह सुनते हुए कर्मों गुस्से में आ गई और बोली कि आप क्यों अपनी बड़ाई कर रहे हो जो आपकी छाती में एक कांटा चुभा है वह तो आपसे अभी तक निकला नहीं अनेक यतन कर चुके हो लेकिन सब बेकार गए हैं इतने बड़े संकट को आप देखते नहीं वह दिन-ब-दिन बड़ा होता जाता है पहले आपने वचन किया था कि पुत्र पैदा नहीं होगा लेकिन आपका बचन झूठा निकला, कोई भी पूरा नहीं हुआ वह अब तक आनंद में है आपने कहा था की गुरुता हमारे पास आएगी लेकिन वह भी नहीं हुआ और आपने कहा था वह मर जाएगा वह वचन भी आपका झूठा निकला, तो यतन करके आपने दाई को भेजा था वह भी व्यर्थ गया उस दाई के प्राणों का ही नाश हो गया और बालक आनंद में रहा और फिर वह सांप के डर से भी जीवित रहा फिर प्रारब्ध के वेग से वह सांप भी मारा गया और फिर उसके बाद उस पर शीतला निकली थी तब आपने कहा था कि उसके प्राणों का नाश हो जाएगा लेकिन उसके सभी अंग सुंदर रहे हैं कुछ भी बिगाड़ नहीं हुआ है सब कुछ ठीक रहा है यह सब आप के वचन थे, कोई भी सच्चा नहीं हुआ सभी झूठे निकले हैं और वह कहने लगी कि जिसको आप मारना चाहते हो वह रोग रहित जी रहा है जिसकी चिंता मेरे मन में बसती है और जिसके कारण मेरी छाती छनी की तरह दिखती है जो अपने दुश्मन को मरा हुआ देखना चाहती है आप अपनी झूठी बड़आई अपने मुख से क्यों सुना रहे हो जिस करके सारी कुल दुखी हो जाएगी वह बात आपके चित में नहीं आती है तो यह सुनकर प्रीति ने बहुत धीरज देकर समझाया कि उनके पुत्र के प्राण बहुत उपाय करने से बचे हैं, माता गंगा जी ने श्री गुरु नानक देव जी के वचनों की बहुत बडआयी की है और बेअंत दान देकर मेरे वचनों को असफल कर दिया है और वह कहने लगा कि फिर भी मेरे वचन सुनो तुम जो उसके प्राण चाहती हो वह कार्य भी मैं करूंगा और उसके प्राण नहीं बचेंगे, पहले हमारे सारे यतन व्यर्थ गए हैं लेकिन अबकी बार ऐसा नहीं होगा अब उसके प्राण चले जाएंगे और वह यमदूतों के घर चला जाएगा और तुम्हें बहुत खुशी होगी, इस वंश का कांटा मैं अपने हाथों से उखाड़ दूंगा और सभी देश और विदेशों से अपनी पूजा करवा लूंगा यह गुरुता बेदी, त्रेहन और भल्लों मैं नहीं यह हम तीनो में रहेगी, श्री महादेव जी को इसकी चाहत नहीं है और गुरु अर्जन देव जी पुत्र के बिना होकर बहुत दुखी होंगे और उम्र बीतने के कारण तन नष्ट हो जाता है फिर हम स्थाई हो जाएंगे और गुरु होंगे और कोई दूसरा हमारे इलावा नहीं होगा और वह कहने लगा कि चिंता को छोड़ो खुश रहो और मेरे वचनों को सच्चा जानो मैं जहर देकर सबके सामने उसको मार दूंगा, श्री गुरु हरगोविंद जी को खिलाने वाला उनका ध्यान रखने वाला एक ब्राह्मण है उसको धन देकर मैं लालच दूंगा और उसे अपना काम करवा लूंगा तो ये सुनकर कर्मों ने सोचा की बालक मारा जाएगा, बहुत देर से छाती में चुबा हुआ कांटा निकल जाएगा और मन को शांति मिलेगी और वह अपनी महान चिंता को दूर कर अंदर प्रसन्न हो गई और उसने अंदर यह जान लिया कि श्री हरगोविंद जी को मारने का कार्य हो गया है तो ऐसे एक-दो दिन बीत गए और रात हुई तो उन्होंने मौका देख कर ब्राह्मण को बुलाया और उसका बहुत आदर सम्मान किया और उससे मीठे बोल बोल कर कहा कि आपका स्वभाव बहुत ही शुभ है हम रोज देखते हैं कि तूं बहुत सेवा करता है रात दिन सेवा के लिए इधर-उधर भागता रहता है और यह हमें बहुत अच्छा लगा है इसलिए तुम्हें अपने पास रखने का हमारा मन है तुम्हारा अच्छा गुजारा होयेगा और अच्छा जीवन बीतेगा और वह कहने लगे श्री गुरु अर्जुन देव जी तुम्हें बहुत कम तनख्वाह देते हैं लेकिन तू सेवा बहुत करता है तेरी किरत को वह नहीं जानते लेकिन हम इस भेद को जानते हैं तो ये सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि गुरु जी मैं गुजारा करना चाहता हूं जो कुछ भी वह कहते हैं वैसा ही करता हूं और किसी तरह की आलस नहीं करता जैसा हुक्म होता है वैसा ही करता हूं और वह कहने लगा कि मुझे कहीं और नौकरी नहीं मिली इसलिए मैं उनके पास गया था और बच्चे खिलाने का काम करता हूं और अपनी गोद में उसे खिलाता हूं और जब मैं उनके घर जाता हूं तब मैं उसे खिलाता हूं गोद में उठाए रखता हूं सारा दिन ऐसे ही खड़ा रहता हूं बच्चा मेरी गोद में होता है और मैं थक जाता हूं मुझे बैठने के लिए भी नहीं कहा जाता और वह कहने लगा कि बालक का बहुत मोटा शरीर है और उसका भार भी ज्यादा है मैं उसको गोद में लेकर खिलाता हूं वह किसी और के पास नहीं जाता है वह मेरे पास ही रहता है और मेरे पास रहकर ही उसको आनंद मिलता है मैं उसको गोद में उठाए रखता हूं और उसके साथ खेलता रहता हूं उसकी सेवा में लगा रहता हूं और मैं किसी और जगह नहीं जाता तो ये सुनकर प्रीति ने कहा कि मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है और वह तुम ही कर सकते हो अगर तुमने वह काम कर दिया तो जीवन भर सुख भोगोगे और आनंद में रहोगे और वह काम केवल तुम ही कर सकते हो और कोई दूसरा वह काम नहीं कर सकता तो यह सुनकर ब्राह्मण ने कहा कि ऐसा कौन सा काम है जिसे केवल मैं ही कर सकता हूं और आपने इस काम के लिए केवल मुझे ही चुना है कृपया मुझे बताएं कि ऐसा कौन सा काम है जो मैं ही कर सकता हूं मैं उस काम को अवश्य करूंगा, भला मैं उस काम के लिए कैसे मना कर सकता हूं अगर मुझे जीवन भर का सुख मिल रहा है और इतना धन मिल रहा है और वह कहने लगा कि यहां पर सभी अपना सुख चाहते हैं फिर चाहे वह गरीब हो या फिर राजा हो तो ये सुनकर प्रीति ने उस ब्राह्मण से कहा कि उस काम को बताने के लिए पहले तुम हाथ में जनेऊ लेकर मुझसे वचन करो ताकि मेरे और तुम्हारे कान सुने और कोई पांचवा इसको ना सुन सके और हमारे बीच जो बात होगी तुम उसको पूरा करने की पूरी कोशिश करोगे और इस बात की किसी को खबर नहीं होनी चाहिए ऐसे वचन मुझसे करो क्योंकि कसम खाने से शंका दूर हो जाती है ऐसे दोनों धिरों को धीरज आ जाता है और क कार्य भी सिद्ध हो जाता है और वह कहने लगा कि जनेयू को हाथ में पकड़ो और कुछ मत कहो तन मन और बल से मुझसे वचन कहो तो यह सुनकर ब्राह्मण ने हाथ में जनेऊ पकड़ कर कहा कि हमारे बीच जो गुप्त बात होगी वह मैं किसी और को नहीं कहूंगा और आप जो काम मुझे देने जा रहे हैं अगर वह मैं कर सका तो मैं जरूर करूंगा और यह बात किसी को मालूम नहीं होगी मुझे इसकी कसम है इसको और कोई नहीं सुनेगा तो ये सुनकर प्रीति को धीरज आया और उसने उस ब्राहमण से कहा कि श्री गुरु हरगोबिंद जी को जहर दो और मनचित धन प्राप्त करो यही मेरा कार्य है क्योंकि यह मेरे मार्ग में बड़ा कांटा है जो मुझे बहुत पीड़ा देता है और वह कहने लगा कि श्री गुरु अर्जन देव जी पुत्र के बिना रहें और गुरु गद्दी हमें प्राप्त होगी लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो गुरु गद्दी हमारे पास कभी नहीं आएगी और उसने उस ब्राह्मण से कहा कि मेरे पास से 500 चांदी के सिक्के अभी प्राप्त करें और सारी उम्र आनंद में व्यतीत करें तो ये सुनकर वह ब्राह्मण चुप हो गया तो प्रीति ने फिर कहा कि मुझे भी जनेयू की कसम है मैंने जो धन देने का वचन किया है वह मैं जरूर पूरा करूंगा अगर तुम्हें इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा तो तुम अपने तरीके से विश्वास हासिल कर सकते हो हम तुम्हें धन देने के लिए तैयार हैं और वह कहने लगा कि यह काम तुम्हारे लिए करना बहुत आसान है क्योंकि तुम हर समय उसके पास रहते हो और वह तुम्हारी गोदी में रहता है तुम उसको उठाए रखते हो तुम ये काम कर सकते हो तुम उस को जहर देकर मार दो और उनको कहो कि सूल प्रगट हुआ है ऐसे कोई भी नहीं जान पाएगा की जहर दी गई है सभी यही समझेंगे कि सूल प्रकट हुई है और उसी के कारण मृत्यु हो गई है तो ऐसे उस ब्राह्मण का मन, धन के लोभ के कारण उस काम को करने के लिए तैयार हो गया और वह कहने लगा की माता गंगा जी सुबह शाम उसकी खबर रखते हैं उसके बाद पूरी बात मेरे पर निर्भर होती है घर के अंदर जो भी सामान पड़ा होता है उसका ध्यान भी मैं ही रखता हूं सभी चीजें मुझ पर ही निर्भर है तो ये सुनकर प्रीति ने कहा की बुद्धि के बल से कोई ऐसा प्रयास करो की माता गंगा जी यह ना जान पाए कि जहर दिया गया है और जब कार्य सिद्ध हो जाए तब उसके पश्चात मेरे पास आ जाना तो ऐसे प्रीति ने ब्राह्मण को ऐसी बातें बता कर उसको इस कार्य को करने के लिए दृढ़ कर दिया और भी बातें उससे की और उसको इस कार्य को करने की युक्तियां बताई, दास क्या क्या बताए, पाप में कपट करने के लिए वह दोनों बड़े पापी थे तो उसके बाद वह ब्राह्मण उसी कार्य को सिद्ध करने के लिए प्रीति ने जो जहर उसको दी थी उसको लेकर वह अपने घर चला गया जो जहर प्रीति ने दी थी उसको पीसकर एक पूडी में डाल लिया और अपनी पगड़ी में उसको छुपा लिया और मन बनाया कि सुबह बालक को दे दूंगा तो ऐसे वह ब्राह्मण रात गुरु जी के घर ही सो गया और जब सुबह उठा तो उसने अपने इस कार्य को अंजाम देना चाहा सुबह उठकर वह ब्राह्मण श्री हरगोविंद जी को गोद में लेकर खिलाने लगा और उनको लेकर इधर-उधर टेहलने लगा तो ये देखकर माता गंगा जी बहुत प्रसन्न हुए तो उसके बाद दासी मीठा दही एक कटोरे में डालकर लेकर आई जिस कटोरे में श्री गुरु हरगोबिंद जी हर रोज दही खाया करते थे तो जब दासी दही का कटोरा लेकर आई तो उस ब्राह्मण ने वे दही का कटोरा उस दासी से ले लिया और सभी की आंख से बचकर वह छत पर चढ़ गया और उसने अपनी पगड़ी में से वह जहर की पूड़ी निकाली और उसको दही में मिला दिया उसकी छाती डर से कांप रहीं थी और वह इधर उधर देख रहा था अब जहर दही में दिखाई नहीं दे रहा था तो उसने श्री गुरु हरगोबिंद जी को ऊपर उठाकर दही का कटोरा उनके आगे किया लेकिन अंतर्यामी गुरु जी ने मुंह फेर लिया और उन्होंने पाया कि ब्राह्मण में कोई खोट है तो ब्राह्मण ने वह कटोरा फिर सतगुरु के आगे कर दिया और वह सतगुरु को दही खिलाने के लिए तरह-तरह की बातें करने लगा कहने लगा कि ये बहुत मीठा है इसलिए खाने में देर ना लगाएं तो श्री हरगोविंद जी ने जाना कि यह दुर्जन जबरदस्ती दही खिला रहा है और जबरदस्ती खिलाने की कोशिश कर रहा है तो उसके बाद सतगुरु ने दोनों हाथों से कटोरा पकड़ कर दूसरी तरफ कर दिया सतगुरु कटोरे की तरफ मुख नहीं करते थे जब भी वह ब्राह्मण दही का कटोरा सतगुरु के सामने करता था तो सद्गुरु मुख फेर लिया करते थे तो ऐसे ब्राह्मण ने सतगुरु को डांट लगाई और गुरु जी के दोनों हाथ अपने एक हाथ से बहुत जोर से पकड़ लिए और दूसरे हाथ से दही पकड़ लिया और बहुत जोर से दही के कटोरे को बाल गुरुजी के मुख को लगाया और अपनी लाल आंखें निकालकर गुरुजी को डरा रहा था तो उसके बाद श्री गुरु हरगोबिंद जी ने बल धारण कर जोर से चीख मारी, बहुत जोर से छोर किया और भारी आवाज से सतगुरु रोने लग गए तो उस पापी ब्राह्मण ने बलपूर्वक वे दही सतगुरु के मुख्य को लगा दिया और सतगुरु ने जोर से चीख मारी लेकिन वह ब्राह्मण सतगुरु के दोनों हाथ पकड़ कर सतगुरु का मुख्य दही की तरफ करता था और कहता था कि तुम्हें क्या होता है अगर तू दही नहीं पिएगा तो हायुआ आ जाएगा तुम्हें पकड़ लेगा और फिर छोड़ेगा नहीं और मैं फिर यहां से चला जाऊंगा तो ऐसे वह बहुत हेर फिर कर रहा था और प्रेम के साथ दही खिलाने की कोशिश भी कर रहा था कभी सतगुरु की गर्दन को पकड़कर दही के कटोरे को सतगुरु के मुख को लगा रहा था की सद्गुरु दही को पी ले और चित में अपने कार्य के सिद्धि के बारे में सोच रहा था और कह रहा था उसके बाद यह जितना मर्जी रो ले मुझे कोई डर नहीं और उसके हाथ कांप रहे थे वह डरा हुआ था और उसका सारा धीरज चला गया था और सोच रहा था कि किसी तरह यह दही इसके पेट में चला जाए फिर मेरा काम खत्म हो जाएगा और मेरी चोरी छिप जाएगी और मैं पकड़ा नहीं जाऊंगा जब सतगुरु जोर-जोर से चिल्ला रहे थे तो सतगुरु की आवाज दूर-दूर तक जा रही थी जहां पर माता गंगा जी बैठे हुए थे वहां पर भी सतगुरु की आवाज माता गंगा जी के कानों में पहुंची, बहुत दुख दायक आवाज़ थी जिसको सुना नहीं जा सकता था तो माता गंगा जी तुरंत सतगुरु अर्जन देव जी के पास पहुंच गए और कहने लगे कि श्री गुरु हरगोबिंद जी बहुत व्याकुल आवाज से रो रहे हैं बहुत ऊंची ऊंची आवाज कर रहे हैं वह किसी भारी संकट में है तो ये सुनकर सतगुरु ने कहा कि सुबह से ही ब्राह्मण ने उन्हें उठाया है और ऊपर छत पर लेकर गया हुआ है तो सतगुरु ने माता गंगा जी की चिंता को देखकर एक सेवक को छत पर भेजा और उससे कहा कि जल्दी जाकर देखो कि श्री हरगोविंद जी क्यों रो रहे हैं तो सतगुरु की आज्ञा पाकर वह सेवक ऊपर गया तो वहां पर उसने देखा कि ब्राह्मण ने सद्गुरु को उठाया हुआ है और जो उसने सतगुरु के दोनों हाथ बलपूर्वक पकड़े हुए थे वह छोड़ दिए थे तो उस सेवक ने ब्राह्मण से कहा कि हे ब्राह्मण ! बाल श्री हरगोविंद जी क्यों रो रहे हैं सतगुरु ने मुझे भेजा है कृपया मुझे बताएं की यह क्यों रो रहे हैं तो उसने कहा कि मैं इसे दही खिलाने की कोशिश कर रहा हूं और यह नहीं खा रहा इसलिए मैंने इसको डांट लगाई है अब तुम भी मेरे पास खड़े होकर देख लो तो जब वह उस सेवक से बात कर रहा था तो उससे अच्छी तरह से बोला नहीं जा रहा था चेहरे का रंग उड़ा हुआ था और वह अपना धीरज खो बैठा था तो उसने कटोरी को सतगुरु के मुख की तरफ किया तो बाल गुरु जी ने अपने दोनों हाथों से कटोरे को फिर से दूर कर दिया और मुंह फेर लिया तो ये सारा दृश्य देखकर सेवक ने सारी बात गुरुजी को बताई तो सतगुरु ने फिर उसको उस ब्राह्मण के पास भेजा और कहा कि जाओ अब उसे हमारे पास लेकर आओ की वे दही क्यों नहीं पी रहे हैं और वह क्यों रो रहे हैं जाओ उन्हें हमारे पास लेकर आओ उसको दही हम खिलाते हैं और देखते हैं कि वह कैसे रोता है तो वह सेवक सतगुरु की आज्ञा पाकर फिर उस ब्राह्मण के पास गया और उनको सतगुरु के सामने लेकर आया तो श्री गुरु अर्जुन देव जी के देखे बिना ही उस ब्राह्मण का धीरज जाता रहा, गुरु जी और माता गंगा जी ने सुपुत्र को देखा, सतगुरु के दोनों विशाल नेत्र झलक रहे थे और उन में जल भरा हुआ था और सतगुरु के मुख पर कुछ दही लगा हुआ था और सतगुरु बहुत जोर जोर से रो रहे थे जैसे कि कोई बहुत बड़ा कष्ट उन्हें हुआ हो तो सतगुरु पिताजी की बड़आयी देख रहे थे और मन को समझा रहे थे कि यह दुष्ट ब्राह्मण जहर दे रहा था तो माता गंगा जी के मन में कारण पकड़ में आया और उनके अंदर ये सोच चली कि कोई भारी कारण है क्योंकि इस तरह तो पहले कभी नहीं रोए तो अंतर्यामी सतगुरु अर्जुन देव जी ने उस ब्राह्मण से पूछा की बालक दही क्यों नहीं पी रहा है यह क्यों रो रहा है तो ब्राह्मण ने कहा कि मैं हर रोज इसे दही खिलाता हूं लेकिन पता नहीं आज यह दही क्यों नहीं पी रहा है जब मैं दही का कटोरा इनके मुंह को लगाने लगता हूं तो अपने दोनों हाथों से इसको दूर कर देते हैं और मुंह फेर लेते हैं मैंने इन को जबरदस्ती खिलाने की कोशिश भी की है लेकिन इन्होंने दही नहीं खाया और फिर मैंने डांट लगाई है इसलिए यह रो रहे हैं तो यह सुनकर सतगुरु अर्जन देव जी ने कहा की बालक की आज्ञा के अनुसार इन्हें दही खिलाए और सहजता पूर्वक खिलाएं तो यह सुनकर ब्राह्मण अंदर ही अंदर बहुत खुश हो गया और यह सोचने लग गया कि अब मुझे एक और मौका मिला है मैं बालक को दही खिला दूंगा और इनके सामने ही इसकी मृत्यु हो जाएगी और इन्हें लगेगा कि मृत्यु सूल के कारण हुई है क्योंकि सब कुछ इनके सामने ही हुआ है वे धीरज धारण कर वह दही के कटोरे को सतगुरु के मुख के सामने ले गया और सोचने लगा कि अब अगर इनकी मृत्यु भी हो जाएगी तो भी मुझे कोई डर नहीं रहेगा तो जब उसने वे दही का कटोरा सतगुरु की आज्ञा पाकर श्री हरगोविंद जी के मुख के सामने किया तो सतगुरु ने फिर से उसको दोनों हाथों से दूर कर दिया और अपना गुस्सा प्रकट किया तो जब सतगुरु ने ऐसा किया तो अंतर्यामी श्री गुरु अर्जन देव जी यह जानते थे कि ब्राह्मण ने इस दही में कुछ मिलाया है तो उसके बाद सतगुरु ने अपने प्यारे पुत्र को अपनी गोद में लिया और उनके अथ्रू साफ किए और प्यारे वचन किए तो सतगुरु ने ब्राह्मण के हाथों से दही का कटोरा ले लिया और फिर आप खिलाने लगे तो उस ब्राह्मण ने सतगुरु को कहा कि अब आप ही इसे खिलाएं और दही के कटोरे को इनके मुख के सामने करें तो जब सतगुरु ने वे दही का कटोरा श्री हरगोविंद जी के सामने किया तो श्री हरगोविंद जी ने आंखें नीचे कर ली और सतगुरु ने दही नहीं खाया तो ये देखकर वह ब्राह्मण बहुत हैरान हुआ और उसने यह जाना कि इनमें बड़ी करामात है दही में कुछ मिला हुआ जानकर दही नहीं खा रहे हैं और वह डरने लगा और सोचने लगा कि अब कोई ऐसी बात ना हो जाए कि हमारा कपट बाहर आ जाए और इसकी खबर सभी को हो जाए और वह डर के कारण अपने मन में बहुत सारे विचार कर रहा था तो वहां पर एक बोनी जाति का एक कुत्ता था जिसको पिस्ता कहते है जिस पलंग पर गुरु जी लेटे थे वह सदा ही उस पलंग के नीचे लेटा रहता था जब सतगुरु बाहर जाते थे तो गुरुजी के चरण कमलों के साथ ही रहता था बड़े भागों वाला सदा गुरु जी की हजूरी में रहता था तो पलंग के नीचे से उस कुत्ते को बुलाया गया तो वह पूछ हिलाता हुआ बाहर निकला उसने अपनी आंखों को गुरुजी के सामने किया तो उसके बर्तन में सतगुरु ने वे दही को डाल दिया तो उस दही को सूंघकर ही वह पीछे हट गया और दही को मुख ना लगाया गुरु जी के कुत्ते की यह बड़आयी थी कि झूठ नित खाता था लेकिन दही में जहर जानकर खाता नहीं था और उसके बाद उसने गुरु जी को समझाया, सिर हिला कर अपने दोनों कानों को हिलाया और उनको बताया इस दही में जहर है इसलिए मैंने खाया नहीं है तो उस कुत्ते के क्रिया कर्म को पढ़कर सतगुरु ने वचन किया कि तूं सदा हमारे साथ हैं यहां पर भी और वहां पर भी हमारे पास है बिछड़ेंगे नहीं, शुभ गति प्राप्त होगी इसमें कोई संदेह ना करो, दुष्ट ब्राह्मण का कपट परगट करो और दही को पी लो तो इस प्रकार गुरु जी के वचनों को सुनकर उसने सारा भय त्याग दिया और वह सारा दही पीकर तृप्त हो गया तो माता गंगा जी भी वहां पर बैठ गए और उस ब्राह्मण को भी बिठा लिया और सिख सेवक भी वहां पर बैठ गए और वह सारा दृश्य देखकर सभी बहुत हैरान हो गए कि यह क्या हुआ है तब ब्राह्मण का मुख भय से भर गया उसका रंग पीला पड़ गया और वह धीरज रहित हो गया और वह विचार कर रहा है कि धरती में भी प्रवेश नहीं हो सकता और उड़कर आकाश में भी नहीं जा सकता मेरे कपट को सभी जान गए हैं मौन धारण कर सभी मेरी तरफ देख रहे हैं लेकिन बोल कोई नहीं रहा है धन अंतर्यामी गुरु जी हैं जिनके हृदय में सारी खबर है तो एक घड़ी के बाद वह कुत्ता गिर गया वह तड़प रहा था और जोर-जोर से पैर मार रहा था चीख रहा था और उसकी आंखें लाल हो गई और कुछ ही समय में उसकी मौत हो गई उसका सिर सतगुरु की तरफ था और उसके दांत बाहर निकले हुए थे तो यह दृश्य देखकर वहां पर मौजूद सभी बहुत हैरान हुए अपने सेवकों को सुख देने वाले श्री हरगोविंद जी सुरक्षित रहे तो उस दुष्ट ब्राह्मण की खोट जानकर सतगुरु सहन ना कर सके और उसको गुस्से की निगाह से देखा और कहा हे महान दुष्ट ब्राह्मण जिस तरह तेरे सामने तड़प तड़प कर यह कुत्ता मरा है उसी तरह तू भी बड़ा दुख पाएगा यह समझ लो कि जल्द ही शरीर का नाश हो जाएगा, तो जब गुरु जी ने ब्राह्मण को इस तरह के वचन कहे तो उसके पेट में भी उसी समय शूल उठा और तुरंत मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़ा और लेट कर हाय हाय करता हुआ दुखी होकर चीखे मार रहा था तो एक घड़ी उसको सूल हुआ जिसने उसको बहुत दुख दिया और फिर वह हाथ पैर मार कर मर गया तो दोनों को मरा हुआ देखकर सभी बहुत हैरान हुए और कहते हैं कि प्रभु ने हित धारण कर बचाया है इस पापी ने महान कपट क्या जानकर किया है यह श्री हरगोविंद जी को जहर पिला रहा था लेकिन उन्होंने पिया नहीं और जोर से पुकार की है वह प्रभु के अंश हैं जिन्होंने इस दुनियां में आकर शरीर धारण किया है और कहने लगे कि आप के पुत्र में बड़ी करामात है आपने अवतार होकर अपने जैसा पुत्र पैदा किया है अगर कोई और होता तो उसने मार देना था और बच नहीं पाना था श्री हरगोविंद जी ने आप बड़ा यतन किया है और महा पापी को मार दिया है, पापी अब पाप की अग्नि में सड़ रहा है और बड़े भागों समेत उसका नया जन्म हुआ है कपट जाहर हो गया है मूर्ख अब कैसे बच सकता है भाव कपट छिप नहीं सका, महान दुष्ट बुद्धि वाले ने पाप की पहचान नहीं की ब्राह्मण के घर जन्म लेकर चांडाल जैसा कार्य किया है जैसे ही उसने दुष्ट जैसा कार्य किया है बिना किसी देर के उसका फल पा लिया है महान मूर्खता इसने की है पता नहीं इसको किसने करने के लिए कहा था तो उसकी मरे हुए की कुरूप शक्ल देख कर सतगुरु ने वहां पर एक शब्द का उच्चारण किया भेरो मोहल्ला पांचवा "लेप ना लागो तिल का मूल, दुष्ट ब्राहमण मुया होए के सूल, हर जन राखे परब्रह्म आप पापी मुआ गुर प्रताप"
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By Sant Vachan
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