Sant Vachan Sakhi । जब सतगुरु नानक के पुत्र बाबा श्री चंद बंदगी में लीन थे और एक शेर उनके पास आया ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक के पुत्र बाबा श्री चंद जी से संबंधित है जैसे कि आपने बाबा श्री चंद जी की पिछली साखी में सुना था कि जब उनका जन्म हुआ था तो लोग यह बात समझ गए थे कि यह बालक अवश्य ही कोई अवतारी बालक है तो साध संगत जी बाबा श्री चंद जी की आज की यह साखी बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ सरवन करते हैं जी ।

साध संगत जी बाबा श्री चंद जी 7 वर्ष के थे जब सतगुरु नानक ने जगत कल्याण के लिए जगत के उद्धार के लिए अपनी पहली उदासी का आरंभ किया था साध संगत जी सतगुरु नानक ने अपनी पहली उदासी पर जाने से पहले बाबा श्री चंद जी को अपनी बहन बेबे नानकी जी की झोली में डाल दिया था क्योंकि बेबे नानकी जी की झोली संतान सुख से खाली थी बाबा लक्ष्मी दास जी अभी छोटे थे इसलिए वह अपनी माता सुलखनी जी के साथ नेनीहाल चले गए थे साध संगत जी बचपन से ही बाबा श्री चंद जी चौकड़ी लगाकर ध्यान में लीन रहते थे, बिल्कुल अपने पिता श्री गुरु नानक देव जी की तरह बाबा श्री चंद जी समाधि लगाते थे एक तरफ हम उम्र बच्चे खेल रहे होते थे तो दूसरी तरफ आप समाधि में लीन होते थे कभी आप समाधि में लेटे लेटे और कभी बैठे-बैठे लुप्त हो जाते थे तो बालक का ऐसा कोतक देखकर सभी हैरान रह जाते थे साध संगत जी एक दिन एक आदमी बेबे नानकी जी और जय राम जी के पास आया और आकर बोला की जय राम जी जल्दी चलिए श्री चंद घने जंगल में जानवरों के बीच बैठा है तो यह सुनकर सभी जंगल की तरफ दौड़े और जब वह वहां पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि बाबा जी के पास एक शेर बैठा हुआ था और भी जंगली जानवर जैसे चीते, हाथी और सांप बाबा श्री चंद जी के इर्द-गिर्द ऐसे बैठे हो जैसे मानो की एक तपस्वी बालक की रक्षा कर रहे हो और प्रभु नाम रंग में रंग गए हो जो जीव दूसरे जीव को देखने पर उसको मारने दौड़ते थे वह जीव बाबाजी के इर्द-गिर्द बैठे प्रेम रंग में रंग गए थे और बिना किसी को हानि पहुंचाए उस सुंदर बालक को निहार रहे थे तो सभी यह दृश्य देखकर हैरान रह गए और उस समय लोगों ने वहां पर बेबे नानकी जी और जय राम जी को कहा की जरूर ये बालक दिव्य शक्तियों का स्वामी है जिसके पास इतने जहरीले जानवर बैठे हैं इस बालक को कोई कुछ नहीं कह सकता कोई भी इस को नुकसान नहीं पहुंचा सकता आपको इस बालक की तरफ से बेफिक्र हो जाना चाहिए तो साध संगत बेबे नानकी जी तो पहले से ही जानती थी कि यह बालक अवश्य ही कोई दिव्य बालक है लेकिन यह दृश्य देखकर बेबे नानकी जी के सभी संदेह समाप्त हो गए थे भूआ नानकी जी ये बात जान चुकी थी कि उनका भतीजा कोई अवतारी बालक है और वह मन में सोचने लगी कि श्रीचंद के साथ बैठकर अपने मन की बातें करूंगी तो दूसरे दिन सुबह बेबे नानकी जी जब अंतर्यामी बाबा श्री चंद जी के पास पहुंची तो बाबा श्री चंद जी ने कहा की बोलो भूआ आपने मुझसे मन की क्या बातें करनी है तो अंतर्यामी भतीजे को देख बेबे नानकी जी फुले न समाई और उसे अपने गले से लगा लिया तो इतने में और लोग भी वहां पर आ गए तो सभी ने बाबा श्री चंद जी के चरणों पर शीश झुका कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया तो उस समय बाबा श्री चंद जी सभी से बोले कि संसार के सभी पदार्थ झूठे हैं और वह दुख का दूसरा रूप है संसार का मोह दुखों का घर है और माया नागिन है इसका डंक जिसको लगेगा उसका बचना मुश्किल है इसलिए हमने सांसारिक पदार्थों को त्याग कर घर बार छोड़ दिया है और आप जी ने कहा कि मेरे लिए सारा संसार परिवार है और सभी दुखी हैं और मुझे सभी के दुख दूर करने हैं आप धर्म की कमाई करो सदा सत्य बोलो, सेवा करो, लोक परलोक सफल होगा हमारे हिस्से बहुत काम है इतना कहकर बाबाजी जंगलों की तरफ चले गए तो साध संगत जी अब इन शब्दों से यह बात निकल कर आती है कि बाबा श्री चंद जी ने संसार से ऊपर उठकर पूरे संसार को अपना परिवार माना और सभी की भलाई के लिए कार्य किए और दूसरी और सतगुरु नानक ने परिवार में रहते हुए ईश्वर को पाने का मार्ग बताया क्योंकि 99% लोग परिवार नहीं छोड़ सकते और छोडे भी कैसे, ग्रस्त जीवन से ही तो संसार आगे बढ़ेगा तो साध संगत जी पिता और पुत्र के रास्ते अलग थे लेकिन मंजिल एक ही थी यानी ईश्वर को पाना, मोह माया को त्यागना और लोगों की भलाई करना, बाबा श्री चंद जी को उदासियों का स्वामी कहा जाता है उदासी शब्द का जन्म उदास शब्द से हुआ है यानी जो दुनिया से उदास हो और जिसे बाहरी दुनिया के लोग दिखावे का कोई फर्क ना पड़े श्री गुरु नानक देव जी की चार यात्राओं को भी उदासी के नाम से ही जाना जाता है क्योंकि उन्होंने उस समय अपना घर बार छोड़ दिया था लोगों में ज्ञान का प्रकाश फैला कर जब सतगुरु नानक अपनी उदासियों से घर वापस आए तब उन्होंने लोगों को यह सिखाया कि किस तरह परिवार में रहकर भी परमात्मा को पाया जा सकता है परंतु बाबा श्री चंद जी ने अपनी सारी जिंदगी ब्रह्मचार्य रहते हुए और उदासी संप्रदाय को मजबूत करने और फैलाने में गुजार दी बाबा श्री चंद जी ने आरंभिक सिख्या पंडित हरदयाल जी से प्राप्त की, और उसके पश्चात वह बेबे नानकी जी के साथ पखोपर रहे, बाबा जी हमेशा एकांत पसंद करते थे और ध्यान में मगन रहते थे यह देख कर दादा मेहता कालू सोचने लगे कि श्रीचंद पूरा समय ध्यान में रहता है वैराग्य में रहता है जैसे नानक रहता था अच्छा यही होगा कि इसे पंडित परसोत्तम के पास विद्या प्राप्ति के लिए कश्मीर भेज दिया जाए तो साध संगट जी कश्मीर में ही एक ज्ञानी पंडित सोमनाथ त्रिपाठी रहते थे उन्होंने कई विद्वानों को शास्त्र विद्या में मात दी थी जिस वजह से उनका अभिमान बढ़ गया था परंतु बाबा श्री चंद जी ने उन्हें शास्त्रों के वाद विवादों में पराजित किया बाबा श्री चंद जी ने काबुल, सिंध हैदराबाद, चंबा, कश्मीर, अफगानिस्तान और दूर दूर जाकर कौतक और चमत्कार दिखाएं उन्होंने अपने जीवन में कोई भी कुटिया नहीं बनाई और अपने लगभग 150 समय के जीवन काल में ब्रह्मचारी रहे तो साध संगत जी आज के प्रसंग कि यहीं पर समाप्ति होती है जी प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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