"भीखा भूखा को नहीं सबकी गठरी लाल, गिरह खोल न जानसी ता ते भये कंगाल" 'मालिक' ने दुनिया में किसी को भूखा नहीं रखा
सबके अंदर वह 'नाम' रूपी दौलत रखी हुई है, हमें अपने 'अंदर' जाने का तरीका पता नहीं इसलिए हम कंगालों की तरह बाहर ठोकरें खाते फिरते हैं ।
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