जब मनुष्य जन्म पाकर जीव सतनाम की धुन सुनने लगता है यानि सच्चे नाम अथवा शब्द की ड़ोरी को पकड़ ले उसकी कमाई करे ।
अभ्यास करे तो नाम के प्रताप से उसको निजधाम अथवा सचखंड़ देश मिल जायेगा वह अपने वास्तविक घर पहुँच जायेगा जहाँ कोई दुख नहीं सुख ही सुख है जहाँ जाकर चौरासी का चक्र समाप्त हो जाता है फिर न जन्म है और न मौत है सदा आनंद भोगेगा ।
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