जब भी भजन पर बैठो अपने गुरु के आगे यही अरदास करो कि हे सच्चे पातशाह ! अंदर हमारी बाजू पकड़े रखना क्योंकि अंदर भटकने का बहुत डर रहता है और जो कोई भी 'शब्द' (नाम) की कमाई करता है,
वह कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है, जो शिष्य अपने मन को 'गुरु' के हाथों बेच देता है, वह अपने 'अभ्यास' में सफल होता है और उसको 'परमात्मा' की प्राप्ति हो जाती है ।
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