शरण का मार्ग कठिन है तन, धन और सांसारिक पदार्थों से मन को हटाना आसान है पर अपने आप को सतगुरु की मौज में राज़ी रखना कठिन है,
गुरु और परमात्मा में कोई अंतर नही है, अंतर सिरफ इतना है कि गुरु देह रुप मे है इसलिए हमारे जैसा है लेकीन वह अंदरूनी तरफ़ से परमात्मा होता है, शरण प्रेम की ऊँची अवस्था का नाम है, अपनी हस्ती को सतगुरु में खो देना ही प्रेम का आदर्श है और कठिन होते हुए भी प्रेम और शरण का मार्ग कर्मों के बंधनों को काटने और प्रभु से मिलने का अचूक मार्ग है, कबीर साहिब कहते हैं कि मैं सतगुरु की कृपा से स्वर्ग और नरक दोनों से बच गया हूँ, अब मैं निरंतर सतगुरु के प्रेम में मग्न और उनकी मौज में मस्त रहता हूँ ।
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