Guru Arjan Dev ji ki Sakhi । जब गुरु जी के एक सिख को फांसी चढ़ाया जानें लगा तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी के समय की है जब एक बादशाह, गुरु जी के शिष्य को सूली पर चढ़ाने लगा था तो गुरु जी ने उसकी संभाल कैसे की थीं आइए बडे़ ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग सरवन करते है ।

"पूर्व जन्म के मिले सहयोगी अंते को ना सहायी" पिशले जन्म के सहयोगी भागों की वजह से मिले हुऐ है लेकिन अंत समय इनमे से कोइ भी सहायक नही होता, सहयोगी ज्योतिष नस्तरों के मेल के शुभ अशुभ असर माने है और ये मोहावरा सहयोगी सहयोगा के साथ वहां से बना है, जीवन के अंत काल कोइ किसी का सहायक नही है, जीव अज्ञान के वस मे होकर इन सगे संबंधियों को अपना मान कर बैठा है लेकिन असली साथी तो वह नाम है जो हर किसी के अंदर है जैसा कि सत्गुरु फ़रमान करते है " यह मात पिता सुत मीत न भाई, मन ऊहा नाम तेरे संग सहाई, मात पिता सुग संबद्धता कूड़े सभे साक, मात पिता सुत साथ न माया" साध संगत जी, इतिहास मे इस तुक पर आधारित साखी संत माधो दास जी की आती है श्री गुरु अर्जन देव जी के करणी और कथनी के पूरे सिखों मे से सोढ़ी खानदान से एक संत माधो दास जी हुऐ है, इनको प्रचार करने के लिए सत्गुरु ने कश्मीर का इलाका दिया, यहां पर इनकी करणी और कथनी के परभाव के कारण सभी लोग इनका सम्मान करते थे, गुरमत विचार सुनकर संगत लाभ उठाती थी, कश्मीर के एक सेठ के चार पुत्रों मे से उसका चौथा पुत्र संतो का मिलापी था संत माधो दास जी का संगी होकर अपना अधिक समय सेवा सिमरन और सत्संग मे बिताने लगा, कथा में ऐसा नेम परपख किया की कथा की समापति की अरदास के बाद ही घर जा आया करे तो एक दिन कोइ बड़ी चोरी हो गई जिसके कारण बादशाह ने हुकम दिया कि अगर कोइ प्रजा में से आधी रात को घूमता हुआ दिखाई दिया तो बिना कोई कारण सुने उसे चोर समझकर सूली के ऊपर चढ़ा दिया जाएगा, तो संगत ने बेनती की कि संत जी राजे ने ऐलान कर दिया है की कोइ भी रात को बाहर दिखाई दिया तो उसे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा तो कृपया आप कथा को 10 बजे से पहले समापत करने की किरपालता करें जी महापुरुषों ने संगत की बेनती स्वीकार कर कथा की समाप्ति दस बजे करनी शुरु कर दी, तो एक दिन महापुरषों को कथा मे इतना रस आया की कथा की समाप्ति का समय याद न रहा, तो जब समय ज्यादा हो गया तो कुछ संगत बादशाह के डर के कारण उठ कर चल पड़ी लेकिन महापुर्ष आंखें बंद कर कथा करते रहें, लेकिन वह सेठ का लड़का बैठा रहा, तो जब महापुरषों ने आंखें खोली तो उन्होने देखा की सभी उठ कर चले गए लेकिन ये लड़का नही गया, तो महापुरुष कहने लगे कि मुझे समय का ध्यान नही रहा यहां पर सभी उठ कर चले गए तू क्यूं नही गया, तूझे भी चले जाना चाहिए था, तो वह लड़का कहने लगा कि महाराज जी अगर में उठकर चले जाता तो मेरे सरोतेपन को लाज लगनी थी, दूसरा मेरा नियम टूट जाना था और तीसरा कथा का निरंदार होना था कि एक भी सरोता नही रहा जिसके कारण गुरु जी की खुशियां नही होनी थी और अंतिम वह कहने लगा कि मैं कथा का रस छोड़कर जा नही पाया ऐसा करने से बेशक राजे के नियमों की उलांगना हुई है पर मुझे ख़ुशी हुईं है की मैने गुरु जी का हुक्म माना है तो ये सुनकर महापुरषों के अंदर से असीस निकली की बच्चा तेरा गुरु राखा तो ये बच्चा जब घर जानें लगा तो आधी रात होने के कारण सिपाहियों ने पकड़ लिया, तो वह कहने लगा की मैं सेठ का पूत्र हूं तो जब उसे राजा के सामने पेश किया गया तो राजा ने उसके पिता को बुलाकर पूषा कि ये तेरा पुत्र है तो वह सेठ जो अपनें इस पुत्र से परेशान रहता था उसने कहा कि ये मेरा कुछ नही लगता और माता ने भी ऐसे ही वचन किए, पुत्र, इस्त्री, और भाई ने भी देखा कि ये सिपाहियों द्वारा पकड़ा गया है तो ऐसी स्थिति को देखकर सभी मुकर गय की ये हमारा कुछ नही लगता है और वह सभी बादशाह के हुकम से डरे हुऐ थे तो बादशाह ने उसे सूली चढ़ाने से पहले कहा की तूझे कोइ और मिलने वाला या कोई सफ़ाई देने वाला है तो उसने जवाब दिया कि संत माधो दास उस जगह पर रहते है तो राजा के हुकम से संत माधो दास जी को बुलाया गया, तो राजा ने संत माधो दास जी से पूछा की ये आपका कुछ लगता है तो ये सुनकर संत माधो दास जी कहने लगे कि इसे हमारा चेला कहो, पुत्र कहो, सत्संगी कहो, मेरा सब कुछ ही है तो बादशाह ने संत माधो दास जी को कहा की हे संत जी ! मेरे हुकम के अनुसार ये आधी रात को बाहर घूमता पाया गया है, आधी रात को भला कोन सा सत्संग हो रहा था ? इसलिए मैं इसे सूली पर चढ़ाने लगा हूं तो ये सुनकर संत माधो दास जी कहने लगें की बादशाह समझ कर ये चोर नही बेगुनाह है और उन्होने कहा कि अगर आधी रात को बाहर जाना बेगुनाह है तो इसकी सजा मुझे दो, क्योंकि अगर मैं कथा की समाप्ति जल्दी कर देता तो इसने समय सिर अपने घर होना था अब इसकी ये दूरदशाह मेरे कारण हुई है इसकी सजा मुझे मिलनी चाहिए तो बादशाह अहंकार मे आकर कहने लगा की हे संत जी ! आपने इसको बचाने का ये उपाय निकाला है क्योंकि आपको पता है कि बादशाह ने संतो को सूली पर नही चढ़ाना, क्योंकि ऐसा करने से बादशाह की सभी जगह बदनामी होगी और बादशाह कहने लगा की कही आपकी भी इसके साथ हिसा पति तो नही, लेकिन अब मैं इसे सूली पर चढ़ाने लगा हूं अगर आप इसे बचा सकते हो तो बचा लें तो महात्मा ने कहा कि मैने इसे क्या बचाना है इसकी संभाल तो श्री गुरु अर्जन देव जी ही करेंगे जिनकी बानी के साथ ये जुड़ा हुआ है तो बादशाह ने अहंकार में आकर कहा की इसे न तो तेरा गुरु बचा सकता है और न ही तूं बचा सकता है तो बादशाह के हुकम के अनुसार जलाद लकड़ी की सूली पर उसे चढ़ाने लगे तो संत माधो दास जी ने आंखें बंद कर श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी के चरणों मे अरदास की तो उस सूखी लकड़ी मे से हरी लगने निकल कर धरती पर आ लगी और लड़के को कुछ भी नही हुआ, फिर राजा ने लोहे की सूली लाने का हुक्म दिया लेकिन वह भी मोम की तरह पिगल कर गिर गई तो ये देखकर बादशाह ने महापुरषों के चरण पकड़े और माफ़ी मांगी तो संत माधो दास उस लड़के को लेकर अमृतसर साहिब श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज जी के चरणों में जा पहुंचे तो सतगुरु ने ये वाक्य बोलकर संत माधो दास जी को सम्मानित किया " मेरे माधो जी सत संगत मिले सो तरया, गुर परशाद परम पद पाया सूखे काशट हरिया रहाओ, जनन पिता लोक सुत बनिता, कोई न किसकी धरया" तो सत्गुरु का ये उपदेश सुनकर उस लड़के को ज्ञान हों गया की इस संसार मे माता पिता, इस्त्री, पुत्र, और सगे संबंधी किसी का कोई नही है तो उसके हिरदे मे से मोह दूर हों गया और ज्ञान की प्राप्ति हो गईं तो इस तरह सत्गुरु जी इन पंक्तियों के माध्यम से समझा रहे है की अंतिम समय किसी ने भी किसी तरह की सहायता नही करनी, बिपता पड़ने पर ये तो जीवित रहते ही साथ छोड़ जाते है इसलिए सतगुरु जी कहते है की ये तो पूरबले जन्मों के सहयोगी मिले है, अंतिम समय कोई सहायता नही करता, साध संगत जी आज के प्रसंग की यही पर समापती होती है जी, परसंग सुनाते हुईं अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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