Guru Nanak Sakhi । इस कथा को सुनने से काल नज़दीक नही आता !

 

डले नामी गांव मे महान छुरा गुरमुख सिख था वह सदा ही किरपालू गुरु अमरदास जी के चरण कवलों को पूजता था, दीपा, मालूशाही और उनके साथ और भी सिख मर्यादा का पालन कर वहां रहते थे, इस तरह एक किदारी नामक बहुत ही गुणवान सिख था इस तरह के अतियादक वहां पर बहुत सिख रहते थे, गिनती में ऐसे महान सिख 72 हुऐ है उन सभी का सत्गुरु अमरदास जी ने कल्याण किया ।

उसी तरह सुलतानपुर में एक महेशा नामक व्यक्ती रहता था वह बहुत  बड़ा धनी व्यक्ति था सत्गुरु जी की महिमा सुन कर उसके मन में बहुत ज्यादा प्रेम पैदा हुआ, गुरु जी की महिमा सुन कर वह गोइंदवाल चल कर आ गया, उसके अंदर सत्गुरु के दर्शन करने का बहुत चाव था, पहले तो उसने लंगर में भोजन ग्रहण किया और फिर सत्गुरु जी के दर्शन किए, बड़े भागों वाला गुरू जी के पास बैठ गया जिसके अंदर दिन रात गुरु के प्यार की इतनी प्यास थी, वह बार बार बंदना करता था वह सामने बैठ कर गुरु जी के दर्शन करता था तो एक दिन सतगुरु ने उससे पूछा कि तूं किस लिए यहां चलकर आया है और तूं कहा रहता है और किसका मत धारण किया है अपने मुख से तूं किसके मंत्र का जाप करता है उसने हाथ जोड़कर उतर दिया कि हे प्रभू जी मैं आपकी आज्ञा से यहां हूं, आप जी के नाम की आसा धारण कर यहां आया हुं, जिस कारण मेरे सभी दुख दूर हो जाए और मैं भावसागर पार कर सकूं और सबकी आस मैने छोड़ दी है में आपकी सेवा मे त्यार रहूंगा, फिर सत्गुरु जी ने सुना कर कहा कि सादी शरणी तुजसे पड़ा नही जाना, और सत्गुरु कहने लगे कि अगर तूं हमारा सिख बनना चहता है तो तेरे पास धन दौलत और एशो इशरत का समान भी रहना चाहिए और जब तूं निर्धन हो जायेगा तो लोग तेरा मज़ाक बनाने लगेगें और कहेंगे कि सिख होकर क्या हासिल किया फिर तुझे दुख होवेगा और तू पछताएगा, तो यह सुनकर महेशे ने कहा कि तन मन और धन आपको अर्पण कर दूंगा, बेशक सब कुछ चला जाए मैं कुछ नही चाहता, मैं तो बस अपना प्रेम आपके लिए दृढ़ करूंगा, मैने सभी तरफ़ से आस छोड़ दी है अब आप मुझे अपने चरणों मे रखे, तो जिस समय गुरु जी ने उसका दृढ़ निस्चा देखा तो सतगुरु ने अपना हाथ उसके माथे पर रखा, सतनाम का मंत्र जपाया, और सिख ने दृढ़ करके सुख हासिल किया लेकिन गुरु जी ने उसको कसोटी लगाकर परखना चाहा तो कुछ दिनो मे ही उसका सारा धन चला गया, उसने यहां यहां पर धन दिया हुआ था वहां पर धन का नाश हो गया और वह धन रहित हो गया तो उसकी ऐसी हालत देख लोग उसके साथ मजाक करने लगे कि ये तूने क्या किया है, सिख होकर तूने क्या हासिल किया है, घर की सभी जायदाद नाश हो गई है, धन की कमी आ गई है और कुछ भी पास नही रहा, तो यह सुनकर महेषे ने कहा कि मैने गुरु जी से ऊंचा प्रेम हासिल किया है जो की कभी भी नाश होने वाला नही है, दुख सागर से ये मेरा उद्धार करेगे, ये मायारूपी दौलत झूठी है इसको जीव कैसे अपने साथ परलोक में लेकर जा सकता है, एक बार तो इस संपत्ति को छोड़ना ही है, मेरे जीवित रहते चले गई है नही तो मर जाने पर चलें ही जानी थी, गुरु जी के चरण कमलों के साथ जब से मन लगा है तब से लोक और परलोक के सभी संकट दूर हो गए है, झूठी संपत्ति नाश हो गई है, सच्चे सतगुरु की शरण ली है, अब मैं परम आनंद रुप हो गया हूं अब किसी बात का डर नही रहा ये कहकर फिर आपने मौन धारण कर ली भाव फिर आप किसी के साथ नही बोले, बहुत लोग मज़ाक करते और मखौल कर रहे थे लेकीन भाई महेशें के मन मे न तो खुशी थी और न ही गमी थी वह सतगुरु के प्रेम में मस्ताना हो गया था और हर समय सतनाम का सिमरन करता था फिर वह गुरु जी के दर्शन करने आया और उसने अपना सिर गुरु जी के आगे झुकाया फिर सत्गुरु ने उसे कमज़ोर हुआ देख कर मन मे किरपा की, उन्होने देख लिया था कि सिख ने कसौटी की काश्त और आग का सेक बरदाश्त कर लिया है श्रेष्ठ प्रेम के कारण अति शुद्ध हो गया है गुरु जी ने कहा कि तेरे पास पहले से भी ज्यादा दस गुणा धन हो जाएगा और तेरा लोक परलोक सफल हो गया है इस तरह उसको वर देकर सतगुरु ने निहाल कर दिया तो उसके बाद भाई महेषा जी के पास बहुत धन आ गया, इस तरह सतगुरु ने बहुत सिखों का उद्धार किया और उत्तम सिखी पंथ चला जो भी गुरु की शरण मे जाता है वह ब्रह्मज्ञानी होकर शक्ति धारण करता है गुरु जी नाम और करामात को दो हाथों से वर्ता रहे है जो भी उनके वचनों को मानते है वह भवसागर को पार कर जाते है श्री गोइंदवाल की शोभा देख कर मुसलमानो को एक जात है जिनको शेखां कहते है, उन्होंने अपने घर वहां पर बना लिए, और वह अपने भाईचारे के साथ वहां पर रहने लगे, गुरु स्थान बहुत मंगल होता था सभी सिख शबद गायन करते थे जिसको शेख हर रोज़ देखते थे, शेखों के लड़के इस चाल को देखकर, बर्दाश्त नही करते थे और वह गलत शरारतें करते थे, नगर के कुएं में जब सिख घड़े भरने जाते थे तो शेखों के लड़के गुलेले मार कर घड़े तोड़ दिया करते थे इस तरह जब उन्होने बहुत बार किया तो सिखों ने सतगुरु जी के पास आकर बेनती की कि शेखों के लड़के हमारे घड़े तोड़ देते है तब गुरु जी किरपा धारण कर बोले की पानी मश्कों में लेकर आओ, तो गुरु जी के वचन मानकर सिख मशकों में पानी भरकर लेकर आने लगे तब बालक बहुत घमंड कर तीर कमान लेकर मश्कें ही फाड़ दिया करते थे, तो सिख फिर सतगुरु के पास गए, सारी बात सतगुरु को बताई गई की वह तो तीर मारकर मश्को को भी फाड़ देते है, कुछ भी बस नही चलता वह बहुत बड़ी अवज्ञा करते हैं तब प्रसन्न होकर गुरु जी ने वचन किए की गागरों में जल भरकर लेकर आओ, तब सिखों ने वैसा ही किया जैसा मुक्ति दाते, आनंद रुप गुरू जी ने कहा था, वह बालक गाग्रों को ईंटें मार मार तोड़ देते थे, दुष्ट घमंडी बहुत जुलम करते थे उन बालकों के माता पिता ये सब देख उनको रोकते नही थे बलिक खुश होते थे फिर सभी ने गुरु जी के आगे होकर बिनती की, कि वह बालक हमारी गागरें तोड़ देते है, ये सुनकर किरपालु गुरु जी चुप रहे और सतगुरु ने संगत को कोई उत्तर या उदेश न दिया, तो जब वहां पर संन्यासी आए तो उन बालकों ने उनके साथ भी ऐसा ही किया, वह उनके भी घड़े तोड़ दिया करते, तो इस बीच एक गुलेल महत के जाकर लगी जिसके कारण उसकी आंख उतर गई, फिर संयासियों ने उनको मारा और कुछ के कपड़े फाड़ दिए तो उस समय तुर्को की फौज ने वहां पर डेरा लगाया और चार छुपेरे बैठ गए उनकी अनेक खचरे धन से भरी पढ़ी थीं हुई, तो रात के समय वह वही रूक गए और सुबह जानें की तयारी की, उस समय परले की तरह हनेरी आ गई, अपना और पराया कुछ भी नही दिखाई दे रहा था, हवा के कारण अंधेरा छा गया, हवा के कारण नर और घोड़े गिर रहे थे, तब खच्चरे भाग के अंदर चले गई और एक खच्चर शेखों के घर चले गई, तो उस नगर मे जो लोग गुरु जी का विरोध करते थे उन्होंने तुरंत उस खच्चर को अंदर कर लिया, तो जब अंधेरा कम हुआ तो रोशनी हो गई तो अपनी खचरो को वह देखने लगे वह ढूंढ ढूंढ कर थक गए लेकीन वह खच्चर नही मिली तो निराश होकर जब चलने लगे तो उस खच्चर ने आवाज की, तो फौजी दौड़ कर उस घर मे गए और खच्चर को खोल दिया, तुर्क फ़ौजी ये सब देख बहुत गुस्से मे आ गए और उन्होने उनके घर बार जब्त कर लिए, जिन शेखों का गुरु जी से बैर था उनको तुरंत फांसी देकर भाव गला दबा कर मार दिया गया, कुछ को उन्होने बहुत कूट मार कर जलील किया तो जब सिखों ने इसके बारे मे गुरु जी को बताया तो गुरु जी कहने लगे कि एक सिख और एक गुरु में जो भी बात चीत हुई वह ध्यान से सुने तो सिखों ने प्रशन किया कि अगर कोई किसी का बुरा करे तो वह क्या करे हे सुखदाई संत जी इसके बारे मे बताए तो संत जी ने उत्तर दिया भला करते समय जो बुरा करे तब बुरे से बदला लेने हट जाओ, तो फिर सिखों ने प्रशन किया कि अगर फिर भी बुरा करे तो क्या करे तो संत जी ने उत्तर दिया उस भले की भलाई करो अगर फिर भी वह बुरा करे तो वह अपनें आप ही दुख भोगेगा यहां तक कि वह करने के लायक ही नहीं रहेगा, अपने आप ही मर जायेगा फिर गुरु जी ने कहा जिस तरह का कोई करता है वह उसी तरह का पाता है, श्री परमेश्वर आप समरथ है संतो को वह आप हाथ देकर रखता है जिन्होंने इस तरह का ज्ञान धारण किया है वह कई परकार की सेवा कर गुरु जी का ज्ञान धारण करते है और जो प्राणी श्रद्धा भावना के साथ इसको सुनता है उसके पास काल नही आता, साध संगत जी आज के परसंग की यही पर समाप्ति होती है, परसंग सुनाते हुईं अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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