साध संगत जी संत कबीर जी फरमाते है भक्ति भाव की प्रबलता और प्रभु से मिलने की गहरी लगन ही प्रेम है,
प्रेम वह शक्ति है जो मनुष्य को प्रेम का रूप बनाकर अपने में समा लेती है, जब प्रेमी प्रेम में अपने अस्तित्व को खो देता है तो वह प्रियतम का ही रूप बन जाता है ।
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