गुरु की मेहर तो हर समर बरसती रहती है जैसे बादलोँ मे बरसात समायी रहती है हमेँ पता ही नहीँ होता कब और कहाँ बरस जाऐगी ऐसे ही कब और किस पर उनकी मेहर हो जाऐ हमे भरोसा होना चाहिऐ,
जिस पर गुरु की मेहर होती है उसे कभी भी ये नही सोचना चाहिए कि वह अकेला है क्योंकि सतगुर हमारे साथ हैँ "सतगुर होऐ दयाल ताँ कदे न झुरिऐ, सतगुर होऐ दयाल ताँ क्षर्दा पूरियाँ"
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