जितने मर्जी माथे टेक लो लेकिन बात तभी बनेगी जब अंदर मालिक के दर्शन होंगे क्योंकि हमारा शरीर, जीवित परमात्मा का मंदिर है,
इसे मास, शराब आदि के इस्तेमाल से कभी भी नापाक नही करना चाहिये और न ही इसे काम, क्रोध, लोभ, मोह के प्रवाह में बहने देना चाहिये इस सब गंदगी को छोड़कर, इस मंदिर को मालिक के रहने के लायक बनाना चाहिये ।
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