जब गुरु की शरण मिल जाती है तब कभी भी ये नही सोचना चाहिए कि हमाराकोईनही है क्योंकि शिष्य को सतगुरु के चरणों में शरण मिल जाये तो उसे स्वर्ग या बैकुंठ जैसे किसी धाम की इच्छा नहीं रहती,
गुरु की शरण एक ऐसा धाम है जिसमें रहते हुए किसी प्रकार की कामना मन को विचलित नहीं करती, वहाँ प्राप्त होने वाली तृप्ति से कोई भी तृष्णा बाक़ी नहीं रह जाती, उन चरणों की सेवा में लग जाने पर किसी अन्य इष्ट के आगे सिर झुकाने का विचार ही नहीं आता ।
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