साध संगत जी आज की साखी सतगुरु हरगोविंद जी महाराज जी के समय की है जब सतगुरु शिकार खेलने जा रहे थे तब एक बीवी ने सतगुरु का रास्ता रोककर उनके आगे क्या अरदास की थी क्या विनती की थी आइए बडे़ प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।
एक दिन सच्चे पातशाह धन श्री हरगोबिंद सिंह साहिब जी महाराज बहुत संगत में बैठे शोभ रहे थे एक स्त्री उस समय आई उसने बड़ी ऊंची आवाज में विनती सुनाई हे गुरु जी हम पट्टी में रहते हैं मेरा नाम देसा है और मैं जट्टी हूं साध संगत जी कुछ विद्वानों ने इस जट्टी का नाम बीबी सुलखनी भी बताया है पर कवि भाई संतोख सिंह जी ने इसका नाम सूरज प्रकाश ग्रंथ में माई देसा लिखा है उसने गुरुजी को कहा सिद्धू गोत में मेरा विवाह हुआ है आपका बहुत जस सुनकर आपके पास आई हूं, आप सबकी आस पूरी करते हैं आप जी का प्रवासा है मेरे घर में पुत्र पैदा नहीं हुआ है बहुत उपचार करके हार गई हूं अब मैं आपके पास चल कर आई हूं मेरे को अपनी शरण आई जानकर पुत्र की दात बक्शो यह सुनकर श्री गुरु हरगोबिंद जी ने कहा तुम्हारे माथे पर पुत्र की दात नहीं लिखी है यह सुनकर वह चिंता सहित उदास हो गई वह यह समझी मेरे भाग पुत्र वाले नहीं है बहुत मुरझाई हुई किसी स्थान पर बैठी थी उस हालत में जाती हुई भाई गुरदास जी ने देखा, दुखी जानकर पूछा कि क्या हुआ है क्यों अपने मन को चिंता सहित किया हुआ है उस स्त्री ने सारी कथा सुनाई पुत्र की दात लेने के लिए मैं सतगुरु जी के पास आई थी भाई गुरदास जी ने मुस्कुरा के मुख से फरमाया तेरे माथे में लिखा दिखाई नहीं देता दीनता वाली बात सुनकर भाई गुरदास जी ने उस माई को पुत्र लेने की शिक्षा दी कहने लगे अब जाकर पुत्र की आस धारण करें कलम और दवात अपने साथ ले जाएं जब गुरुजी कहेंगे कि तेरे माथे में लिखा नहीं है तब कलम, दवात आगे करके इस तरह कहो यहां और वहां के आप ही लेखक हो अगर हमारे भाग में नहीं लिखा है कृपा करो तो अब लिख दो, शरण आई जानकर आस पूरी करो यह सुनकर स्त्री ने अपनी हित कि शिक्षा को धार लिया फिर दूसरे दिन उस विधि के अनुसार ही किया रात बीत गई प्रबात हो गई गुरुजी ने शिकार खेलने जाने की तैयारी करवाई, वस्तर शास्त्र सतगुरु जी ने सब धार लिए काठियों समेत घोड़े हिक ले सभी सुरमें शुभ हथियार धारण करके बाज,कहिया कुत्तिययाद लेकर तैयार हो गए घोड़े लेकर गुरुजी चल गए तो अयोध्या का समूह पीछे पीछे चल पड़ा धीरे-धीरे घोड़े चलते सुरमें समेत नगर में से निकलने लगे वह स्त्री बड़ी उतावली होकर वहां पहुंच गई गुरुजी जहां जाते थे वहां आगे होकर खड़ी हो गई और कहने लगी हे कृपालु सतगुरु जी मेरी पुत्र की आस पूरी करो तुम्हारा जस सुनकर बहुत दूर से आई हूं तुम्हारे समरथ की मैं शरण आई हूं सतगुरु जी ने फिर मुस्कुरा कर देखा और कहा कि तेरे भाग में पुत्र नहीं लिखा फिर स्त्री ने चंगा मौका पाया फिर चलकर गुरुजी दे नजदीक हो गई हाथ में कलम दवात लेकर आगे होकर विनती की कर्ता-धर्ता सब आप ही हो अगर पहले इस तरह नहीं लिखा है तो कृपा करके अब लिख दो गुरुजी झुकती को जानकर मुस्कुराए और वचन किया कि तेरे घर पुत्र होवेगा यह सुनकर बीवी सुलखनी बोली मेरे को भरोसा दो और स्थिर चित्त होकर लिख दो यह सुनकर गुरुजी बहुत प्रसन्न हुए और लिखने लगे जब कलम पकड़ी तो घोड़ा आगे चल पड़ा एक का हिसा लिखने लगे थे पर हाथ हिल गया तो उस समय 7 लिखा गया 7 के हिस्से को सतगुरु जी ने देखा उस समय बहुत प्रसन्न होकर बोले एक पुत्र के लिए कलम पकड़ी थी मल्लो मल्ली 7 का हिंदसा हो गया है अब घर जाकर 7 पुत्र पाओ तुम्हारी आस पूरी हुई है जिस के लिए तू आई थी यह सुनकर बीवी सुलखनी बहुत प्रसन्न हुई धन गुरु जी धन गुरु जी यह कहकर हाथ जोड़कर नमस्कार की, वर को लेकर अपने घर को चली गई यहां वहां कह कह कर गुरुजी की कीर्ति विस्थारी महान श्री हरगोबिंद जी फिर शिकार खेलने के लिए चले गए जिस पक्ष जंगल का कठिन स्थान देखा था गुरु जी की सवारी वहां पर चली गई जहां पर रावि नदी चल रही है उसके सामने ज्ञान के सागर गुरु जी शिकार खेल रहे थे जब महान जंगल देखा वहां एक मनुष्य आकर मिला वह हिंदू था पूर्ण गुरु जी को देखकर तुरंत चरण कमला की वंदना की फिर हाथ जोड़कर बात बताई नजदीक ही दुष्ट लोग गौआ को मारते हैं जो कि उनके वश में नहीं आती है उस को काबू करने के लिए शक्ति का प्रयोग करते हैं यह सुनकर सतगुरु जी ने उसको आगे लगा लिया घोड़ा दौड़ाकर बड़े गुस्से में आकर उस तरफ चल पड़े वह नजदीक ही थे जाकर देखा तलवार निकालकर गुरुजी ने तुरंत मार दिए कुछ दौड़ चले थे उनको घेर के मारा टुकड़े-टुकड़े कर कर धरती पर फेंक दिए उनका गांव नजदीक ही था जब गांव वालों ने शोर सुना तो उसी समय चढ़कर आ गए गंडासे बंदूकें संभालते हुए लेकर आए सामने मरे हुए देखकर चिलाने लगे गुरुजी की फिर सारी सेना आगे बढ़ी फिर बंदूकें और तीर बहुत छोड़ें, गोलियां लगने के कारण एक बार में ही मर गए, जो जीवित रहे वह डरते हुए भाग गए छापरी गांव के बहुत लोगों को मारा जो वहां रहते थे वह बहुत पापी थे सूरमो ने वहां पहुंच कर आग लगा दी, सड़ कर सभी सवाह हो गए पापी लोग जितने भी वहां देखें वह तलवारों के साथ चीर दिए, धरती सभी देवताओं समेत गाए का शरीर धारकर वहां आई थी सिर्फ सतगुरु जी को ही दिखाई देते थे और जो लोग वहां खड़े थे वह नहीं देख सकते थे देवताओं समेत धरती ने विनती की तुर्का ने मुझे बहुत दुखी किया है अनेक रीतियों के साथ यह पाप करते हैं मैं इनका वजन नहीं सहार सकती जिस वास्ते आप जी ने अवतार लिया है उस करके मेलेशा के सारे राज को खत्म कर दे ब्राह्मणों, गाऊआ और संतो को सुख दे ते तर्क राज को दूर करो सतगुरु जी ने यह सुनकर दिलासा दिया कुछ समय के बाद इनका विनाश हो जाएगा जिस समय मेरा पौत्रा पैदा होगा तो वह इन दुष्टों के साथ विकराल जंग करेगा तब वह विशाल पंथ पैदा करेगा जो कि धरती पर बहुत समय तक राज करेगा सब तुर्का के राज़ को हटा देगा, धीरे-धीरे यह सभी खत्म हो जाएंगे गुरु जी की तरफ से धरती और सभी देवते सुनकर बंदना कर कर अपने घर को चले गए दुष्टों को मारकर सारा गांव सवाह कर दिया शिकार खेलने गए ने कुछ और ही कर दिया फिर गुरुजी वापिस अपने डेरे को आ गए इस तरह बातें कर रहे थे जिस तरह दुष्टों को मारा था गुरु जी द्वारा शस्त्र धारण करने का यही कारण है जहां कहीं भी गुरु जी को मलेश मिलते थे वहीं पर उनका खात्मा कर देते थे गुरुजी का श्रेष्ठ जस चारों तरफ फैल गया संतों का उदार करते हैं और दुष्टों को मारते हैं गुरुजी कभी-कभी ही शिकार खेलने जाते हैं और जंगल के दुष्ट जीवो को मारते हैं गुरुजी जहां भी जाते थे बाबा भाना जी उनके साथ ही रहते थे और सतगुरु जी की सेवा करके परम सुख प्राप्त करते थे
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By Sant Vachan
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