संतों का मत केवल रूहानी है, संत चाहे किसी भी समाज में रहते हों पर उनका असली उद्देश्य अचेत यानी सोई हुई आत्माओं को चेताना है,
सूरत-शब्द योग की कमाई करवाना है । इसलिए वे धार्मिक और जाति-संबंधी झगड़ों-बखेड़ों से दूर ही रहते हैं । वे न तो किसी नए धर्म या संप्रदाय की स्थापना करते हैं, न किसी पुराने धर्म को गिराते हैं ।
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