"सतगुरु कहते हैं" प्रारब्ध को मिटाया नहीं जा सकता, कर्मो का फल तो तुम्हें भोगना ही पड़ेगा ।
तब भी मैं तुम्हारे पास रहकर तुम्हारे दर्द को कम करता रहूँगा क्योंकि तुम मेरे हो, मैं तुम्हें त्याग नहीं सकता ।
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