परमात्मा जिनके भाग्य में धुर से लेख लिख देता है उन-उन जीवों को सतगुरु की सच्ची शरण द्वारा नामरूपी अमृत की दीक्षा प्राप्त होती है संतों की संगति में आया ।
ऐसा परमार्थी जीव नाम से लिव जोड़ कर नम्रता और प्रेम की मूर्ति बन जाता है इसलिए ऐसा परमार्थी जीव कभी किसी से वैर-विरोध या लड़ाई-झगड़ा नही करता है ।
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