सत्संगी को सांसारिक सुखों का मोह नहीं होना चाहिए, बल्कि जहां तक हो सके उसे इनसे दूर ही रहना चाहिए, जब रोगी किसी डॉक्टर की दी औषधि का सेवन करता है,
तो उसका बताया हुआ परहेज भी साथ-साथ करता है और उसके अन्य आदेशों का भी पालन करता है । इसी प्रकार सत्संगी को भजन-सुमिरन करने के साथ-साथ दूसरे आदेशों का भी पालन करना चाहिए ।
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