Guru Har Rai Ji ki Sakhi । गरीब से अमीर होने का आसान उपाय सतगुरु ने क्या बताया ?

 

साध संगत जी आज की ये साखी गुरु हरि राय जी की है आज की साखी में सतगुरु ने गरीबी को दूर करने का कौन सा उपाय बताया था आइए बडे़ ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवण करते हैं ।

एक दिन सतगुरु श्री हर राय जी सभा में बैठे हुए थे संगत दर्शन करके मन ईषत फल प्राप्त कर रही थी, देशों विदेशों में विशेष तौर पर संगत दर्शन करने के लिए आती थी जहां कहा सभी जगत में गुरुजी का श्रेष्ठ जस फैला हुआ था, मन और चांद का बड़ा प्रकाश हो रहा था उपकारी गुरुजी बड़ी करामात वाले थे जिस तरह वचन करते थे उस तरह ही हो जाता था, गुस्से में आकर या प्रसन्न होकर वर या कठोर वचन कह देते थे तो वह खाली नहीं जाते थे दोनों तरफ चौर फिरता था तो बड़ी शोभा पाते थे, चंदन और गुलाब के इतर की सुगंधि महकती थी, 101 पाल्या वाला जामा पहनते थे तो अंगों के ऊपर सुंदर गहने शोभते थे, जब सिख आगे होकर अरदास करते थे तब कृपा दृष्टि के साथ देख लेते थे, चारों कोनों पर शस्त्र पकड़े बैठे हुए योधे गुरुजी का एक परिवार ही थे, एक सिख हाथ जोड़कर बोला हे सतगुरु जी ! आप अनाथों के नाथ हो आप जी की किस तरह सेवा की जाए जो निर्धन सिख धन ना पाए बहुत गरीब हो जाए और बहुत जतन करने पर भी किसी तरह भी धन हाथ ना लगे फिर आप जी को प्रसन्न करने के लिए क्या करें जिससे उसका जन्म सफल हो जाए श्री गुरु हर राय जी ने अपने पवित्र मुखारविंद से यह वचन कहे जो सिख सेवक मुझे प्रेम करते हैं वह मुझे प्यारे हैं जिनके हृदय में शब्द का प्रकाश है वह दिन रात सिमरन करते हैं जो अनाज और धन श्रद्धा के साथ अर्पण करता है उनका सभी दलिददर और गरीबी दूर हो जाती है इसके साथ संबंधित एक कथा है जिस तरह घटना हुई, सुनने की किरपालता करे जी, एक नगर में एक सिख रहता था वह बहुत गरीब था अनाज, धन आदि घर में कुछ भी नहीं था बड़ी मुश्किल से पेट पूजा करता था और हमेशा से ही गरीबी का दुख बर्दाश्त करता था उसके घर एक चिडे चिड़ी का जोड़ा रहता था जो पिछले जन्म में सिख सीखनी थे उन्होंने कोई शुभ काम करके गुरु महातम के ज्ञान सहित पंछी जन्म प्राप्त किया था उनकी गरीबी की विपता देखकर चित में अति चिंतित होकर दुखी होते थे हृदय में उनकी विपता दूर करने के बारे में सोचते थे चिडे चिड़ी ने फिर उनकी सहायता की उस घर में से उन्होंने चुंज भरकर अनाज लिया फिर गुरु जी के लंगर में ले आकर मिला दिया कुछ दिनों में अन और धन घर मे बहुत हो गया, मेहनत और मजदूरी करके अनाज घर में लाए उसको सुकाने के लिए आंगन में डाल दिया तो कूट पीह कर फिर खाते उसमें से कुछ अनाज चुंझ में भरकर चिड़े चिड़ी ने संगत के लंगर में डाल दिया, सिख सहित मैं भोजन करता हूं इस करके ज्यादा पुण्य हुआ यह उपकार कई दिन चलता रहा उस घर में फिर बहुत दौलत आ गई बहुत धन और अन आ गया तो उसे सिख ने अपनी शपड़ी तोड़कर एक सुंदर घर बनवा लिया तो वहा बहुत आनंद सहित रहने लगे चिड़े चिड़ी ने फिर और जगह पर जाकर एक वृक्ष में अपना घोंसला बना लिया तब से ही उस घर की दौलत धीरे-धीरे खत्म होने लगी क्योंकि लंगर में राशि पड़ने से हट गई उसका फल फिर कहां से वह प्राप्त करते, फिर गरीब होकर हमारी शरण में आ गया कहने लगा हे प्रभु जी आपके बगैर कोई भी रखवाला नहीं है कृपा करके अब हमारे सहायक बनो सभी जगत में सिख आपका नाम लेते हैं इसकी आप जी को लाज है गरीबी से बहुत संपत्ति बड़ी थी पर अब वह सारी विनाश हो गई है विपता आ गई है इसका निरवाह करो आप समरथा सहित हो आपके जैसा और कोई नहीं है हे प्रभु जी ! जिस तरह आप चाहते हो उसी तरह ही करते हो किसी को रख लेते हो और किसी को मार देते हो बेनती सुनकर हमने समझाया जिस तरह संपत्ति बढ़ने का कारण था तुम्हारे घर से एक चिड़े चिड़ी ने कुछ अनाज गुरु के लंगर के लिए लाते थे सतसंगत के खाने से समझो तुम्हें धन दौलत प्राप्त हुआ था तुमने शपड तोड़ दिया चिडा चिड़ी किसी और जगह पर चले गए अब अन का तिनका भी लंगर में नहीं आता है जिसको यह चाह हो कि मेरे घर बहुत दौलत हो वो सतसंगत को भोजन शकाए, बेशक थोड़े से भी थोड़ा हो लंगर में देकर प्रेम सहित सेवा करें, सतगुरु कहते है उसकी मैं जाकर सहायता करता हूं और गरीबी विपता और सब कुछ मिटा देता हूं अब तुम इस तरह करो मन और धन की कोई कमी नहीं होगी और सुख प्राप्त करेगा इस करके धर्म की किरत करके अपने भोजन का जो चौथा हिस्सा हो जो गरीब हो वह गुरु के लिए अर्पण करें दिन प्रतिदिन घर में दौलत बढ़ती जाएगी मेरा स्वरूप सतसंगत जो भोजन खाएगी वह मुझे ही पहुंच जाएगा वह सिख का लोक परलोक सुधर जाता है, उस सिख का लोक परलोक सुधर जाता है जो भोजन तैयार करके सिखों को खिलाता है सभा में गुरु जी ने सब को सुनाया सदा इस तरह कार्य करो जो मुझे हृदय में श्रद्धा धारकर अर्पण करता है उसका सैकड़े गुण विस्तार होता है थोड़े बहुत भी कोई विचार नहीं है यथा शक्ति और प्रेम के साथ अर्पण करें इसमें अपना भला जाने यह कुछ उन्हें प्राप्त होता है जिनके बड़े भाग हैं यह सुनकर सारी सभा ने हृदय में श्रद्धा धारण कर ली और कहा सतगुरु हर राय जी धन है जो कोई भी थोड़े प्रेम सहित अर्पण करते हैं उसको बहुत धनवान बना देते हैं यथाशक्ति के अनुसार जो गुरु जी के लंगर के लिए अनाज लेकर आते हैं और चित में बहुत प्रसन्न होते हैं वह थोड़ा देकर बहुत लेते हैं ऐसे वपार को फिर कैसे छोड़ा जा सकता है संगत में बहुत प्रशंसा हुई और सभी ने अपने बड़े भाग जाने तीनों लोगों के मालिक ने सभी के ऊपर शुभ दृष्टि डालकर फिर उन्हें शुभ शिक्षा दी सेवक समझते थे कि हमारे ऊपर बड़ी कृपा की है प्रसन्न होकर हमें उपदेश का दान दिया है दर्शन करके चरण स्पर्श करते थे तो अपनी श्रेष्ठ परलब्ध जानकर प्रसन्न होते थे सच्चे पातशाह श्री गुरु हर राय साहिब जी तखत पर बैठे बहुत शोभ रहे थे क्योंकि सच्चे पाशा की पदवी उनको ही बनाती है भाव इनके ही जोग है जब एक पहर और रात रह जाती है तो जाग पढ़ते हैं तो सोंच करके फिर पानी के साथ स्नान करते हैं सेवक 101 पानी की गागरा लेकर आते हैं तो शरीर को अच्छी तरह मल के 101 गागर पानी के साथ स्नान करते थे आसन पर बैठकर आंखें बंद करके अगाध समाधि लगा लेते है तो अनुपम आनंद रूप में अपनी बिरती टिका के एक जगह स्थिर हो जाते है पूर्ण गुरु जी आत्म भ्रम में समाधि लगाकर अडोल बैठे रहते है बाहर गायक सुखदायक सतनाम के महात्म को गाते है साज बजा कर ताल मिलाते है तो चित लगाकर सुनने से प्रेम बढ़ता है सेवक इकट्ठे हो कर सुनते है तो मुख से वाहेगुरु का जाप करते है अमृत वेले से ही दिन चढ़ जाता था तो समाधि खुल जाती है और नैन खिड़ जाते है तो सेवक चंदन केसर को घसा कर कपूर के साथ मिलाकर लाते है उसका माथे पर सुंदर टिक्का लगाते है जो इतनी शोभा पाता है मानो जैसे कमल का फूल हो फिर सुंदर नरम कपड़े पहन कर गुरु जी अपने अंगों को सजाते है 101 कल्लिया वाला जामा बनाते है जो बहुत सुखम कपड़े का होता है तो उससे अपने शरीर को सुंदर सजाते है दस्तार ऊपर हीरे जवाहरात से जड़ी कलगी लगाते है जो मुख पर सुंदर शोभती है और कानों में कुंडल लटकते है हाथो में सोने के जड़ाऊ कंगन पहनते है जिनकी शोभा बहुत होती है गल में फूलो का हार विशाल शभी पाता है जब उठकर चलते हैं तब जामे को समेट लेते हैं जो वचन पितामा ने फूल टूट जाने पर कहे थे उस अनुसार ही चलते हैं सारी उम्र उस नेम को ही निभाया कभी भी जामे को खुला छोड़ कर नहीं चलते हैं सुबह होते ही दीवान पर आ बैठते हैं रबाब और मृदंग सुंदर ध्वनियां अनुसार बजते है चुप रहकर सुनते हैं तो महान सुख मानते हैं सेवकों के कष्टों को दूर करते हैं और संसार से उनका उद्धार करते हैं ।

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By Sant Vachan


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