Sant Vachan Sakhi । जब गुरु हरकृष्ण महाराज जी ने एक मुर्ख व्यक्ति के सिर पर हाथ रखा तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु हर कृष्ण जी महाराज जी के समय की है जब सतगुरु ने अपनी सोटी एक मूर्ख गूंगे और बहरे इंसान के सिर पर रखी तो क्या हुआ था आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये परसंग सरवन करते है ।

जिस समय साहिब श्री गुरु हर कृष्ण महाराज जी दिल्ली को जा रहे थे जब सतगुरु जी नगर पंजोखड़े पहुंचे वहां नगर के बाहर बाहर उतारा किया वहां एक विद्या अभिमानी पंडित जो अपने समान दूसरों को नहीं गिनता था जिसमें दो अभिमान इकट्ठे थे एक तो विद्या का अभिमान दूसरा जाति अभिमान कि मैं ब्राह्मण हां स्वाभिक ही वहां आ पहुंचे जहां पर सतगुरु जी का डेरा लगा हुआ था उन्होंने एक सिख को पूछा कि जहां पर कौन आया है और कहां से आया है कहां जा रहा है इसका नाम क्या है तो सिख ने कहा सतगुरु एह हे श्री हर कृष्ण नाम जग कहे और श्री नानक गाटी पर स्थित है हर अवतरे शुभत जस जित है इतना सुनते ही पंडित सतगुरु की बड़ीआई सहन ना कर सका, मन में खूनसा और हंकार का अन्ना हुआ कहता कि द्वापर में ईश्वर अवतार भगवान जी हुए हैं सारा संसार जानता है नाम भगवान कृष्ण से भी बड़ा रखा है उनका नाम श्री कृष्ण और इनका नाम श्री हर कृष्ण भगवान कृष्ण ने गीता नाम का ग्रंथ बनाया है जिसको पढ़ सुनकर लोग ज्ञान के रास्ते पर चलते हैं गीता के श्लोक बड़े महान अर्थ वाले हैं ब्राह्मण सिख को कहने लगा कि बड़े-बड़े नाम तरोने आसान है भगवान कृष्ण के उच्चारण किए हुए गीता के श्लोक उनका अर्थ ही निकालकर देखा दें फिर मैं मान जाऊगा कि इनका त्रियाया नाम सार्थ है नहीं तो नाम त्रियोना झूठ ही है यह सुनकर सिख ने कहा कि अभी तुम यहीं पर खड़े रहो मैं अभी ही सतगुरु जी से उत्तर लेकर आता हूं गुरु समरथ है आपका उत्तर ज़रूर देगें यह कहकर सिख गुरु जी के पास गया सिर निवा के बेनती की कि हंकारी ब्राह्मण आप जी पर शंका कर रहा है कहता है कि गीता के अर्थ ही करके बता दें तो मुस्कुराते हुए सतगुरु जी ने वचन किया कि ब्राह्मण निशिरदक है यह वह उतर चाहता है तो वह मेरे पास आकर उत्तर ले सकता है जिस तरह वह चाहता है उसी तरह उत्तर देगें इसके बुध रूप नेत्रों में हंकार का मोतिया आया है इसकी दवाई ज्ञान का सुरमा डालकर बुध रूप नेत्रों में से हंकार का मोतिया दूर करना है सिख ने ब्राह्मण को जाकर कहा कि गुरु जी के पास जाकर अपना उत्तर लो उत्साह के साथ चला हंकार से भरा हुआ सतगुरु जी के नजदीक बैठ गया इसको देखकर सतगुरु जी बोले की हे ब्राह्मण क्या जानना चाहता है ब्राह्मण ने वही बात दोहराई कि द्वापर में भगवान श्री कृष्ण जी अवतार हुए हैं उन्होंने गीता रची है आपने अपना नाम भगवान श्री कृष्ण से बड़ा हर कृष्ण रखा है सो भगवान जी के उच्चारण किए गीता के श्लोक के अर्थ करके बता दो फिर मैं समझूंगा कि आपका हर कृष्ण नाम तराया सफला है श्री गुरु हरकृष्ण जी ने ब्राह्मण की बात सुनकर कहा कि अगर हमने आपको गीता के अर्थ करके सुना दिए फिर तेरा सनसा निवर्त नहीं होवेगा फिर तेरे मन में यह सनसा होवेगा कि गुरु के सपुत्र थे किसी विद्वान ब्राह्मण से गीता बचपन में ही पढ़ ली होगी इसलिए हे ब्राह्मण ये तसल्ली बख्श उत्तर चाहता है फिर अपने नगर में से कोई मूर्ख पुरुष ढूंढ कर लेकर आ जिसको तुम जानते हो कि यह अनपढ़ और मूर्ख है यह सुनकर ब्राह्मण अपने नगर में गया एक चीवर छज्जू नाम का देखा जो घर घर में पानी ढोने का काम कर रहा था जिसको लोग महामूर्ख समझते थे तन के वस्त्र फटे हुए थे उसने आप तो क्या पढ़ना था कभी भी किसी को पढ़ते हुए भी नहीं देखा था पशुओं की तरह इसकी वृत्ति थी रंग का काला और जुबान से गूंगा था कानों से बहरा और केवल इशारा थोड़ा बहुत समझता था ब्राह्मण ने इशारा किया कि कुछ समय मेरे साथ चलो सतगुरु जी के पास ले जाकर बैठा दिया चित में प्रशन गहरे सोच लिए और सोचा कि यह तो कोई उत्तर विद्वान जल्दी बोले तो भी नही दे सकता श्री गुरु हरकृष्ण जी ने उसके मन की जानकर उस मूर्ख चीवर के सिर पर सोटी रख दी और हुकम किया कि पंडित के स्वालो का उत्तर दे यह वचन कहने की देर थी कानों को आवाज सुनने लग पड़ी जीब का गूंगा पन दूर हो गया चारों वेदो का वख्ता गुरु जी ने बना दिया और उसने कहा कि हे ब्राह्मण कौन सा शास्त्र पड़ा है जिसके अनुसार तुझे उत्तर दूं बोल हिंदी में उत्तर दूं या संस्कृति में, सो इस प्रकार संस्कृति बोला जितने भी सनसी थे ब्राह्मण के चित में सभी के उतर दे दिए 10 के शंके ब्राह्मण के हिरदे में थे उसने 20 का उतर दे दिया यह देख कर ब्राह्मण हैरान हो गया और चुप भी कर गया, विद्या का जितना भी मन में हंकार था सारा उतर गया कोई पूर्वला भाग जाग गया फिर निम्रता मन में आ गई हाथ जोड़ ले फिर लेट कर डंडोट की, कि महाराज जी आपकी मेहमा अपार है महाराज जी मेरे शंके खत्म हो गए है अब किरपा करके मेरे को अपना सिख बना लो चरना मृत दे के सतगुरु जी ने  सिख बनाया भगति और ज्ञान के मार्ग पर डाल दिया और आप ब्राह्मण लोगों से कहा करता था कि जो बड़े गुरु श्री अर्जन देव जी का वचन है "पिंगल पर्वत पार परे खल चतुर बकिता जो अधले पेखत हुए आनंद गूंगा वक्त गावे वोशांध पिंगल पर्वत परते पार हर के नाम सगल उदार अधले त्रिभवन सूजया गुरु पेट पुनीता" पवित्र शुद्ध स्वरूप वाले गुरा दे मिलन करके पर्तख अन्ने पुरुष को दिखने लग जाता है भाव सोजाखा हो जाता है यह बात तीनों लोगों में प्रसिद्ध है कि सतगुरु जी की ऐसी समरथा है जिनके पास ज्ञान वेराग रूप आंखें नही है उन पुरषों को तीनों भवना की अंतरजामता भाव सूज आ जाती है तीनों भवन मिथ्या रूप करके सुझदे हैं अथवा तीनों भवन ब्रह्म रूप करके सुझ आते हैं भाव तीनो लोगों में ब्रह्म की व्यापकता देख सकते हैं आज से पहले कुछ 20 वर्ष पहले की पुरानी घटना है संत बाबा पूर्ण दास जी शेखुपुर वाले जो बड़े वीत राग महा तपस्वी महापुरुष हुए हैं उनका सुबाह पैदल यात्रा करने का इतना परपख था कि हिंदुस्तान के लगपग सारे तीरथ पैदल चल के यात्रा की हेमकुंट साहिब की यात्रा पर जा रहे थे एक पिंगले पुरष को कुछ गुर सिख पीठ पर बैठा कर ले जा रहे थे महा पुरषा ने खुश होकर कहा के भाई बड़ा नेक कम कर रहे हो उन्होंने उत्तर दिया के बाबा जी यह हमारा साबंदी जा रिश्तेदार नही है बल्कि हमारी जान पहचान वाला भी नही है हम सभी गुर सिख बानी पढ़न वाले सत्संगी जत्थे को देखकर इसने कहा जेकर मैं पिंगला ना होता फिर मैं भी गुरु गोबिंद जी के तप अस्थान के दर्शन करता यह बात सुनकर उन सिखो को इस पर दया आ गई तो फिर उन्होंने इसको वारी वारी कंधे पर उठाकर सतगुरु जी के तप अस्थान के दर्शन कराए है अब हम इसको वापिस ले जा रहे है फिर महापूर्षा ने यह तुक बोली "पिंगल परबत पार परे खल चतुर बिकिता सो" महापुरशा ने कहा कि यह सारी महिमा साधुओं की संगत की है इस करके गुरु अर्जन साहिब जी ने कहा "महिमा साधु संग की सुनो मेरे मीता" जिस सत्संगत की शक्ति के साथ यह पिंगला बड़े बड़े पहाड़ा को पार कर गया खल चतुर बिकिता का अर्थ है कि साधुओं, गुर सिखो और गुरु साहिबान की किरपा हो जाए तो मूर्ख भी चार वेदो के वखते बन जाते है, साध संगत जी आज के प्रसंग की यही पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की शमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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