Sant Vachan Sakhi । जब देवियों की देवी मां कलहा सतगुरु के सामने प्रगट हुईं ! तो क्या वर्तालाप हुई ?

 

साध संगत जी आज की साखी श्री गुरु हरगोविंद जी महाराज जी की है जब सदगुरु अपनी मौज में पलंग पर बैठे हुए थे तो जोगनियों की सरदारनी कलहा ने सतगुरु से क्या वचन किए आईए बडे़ ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

भाई संतोख सिंह जी ने श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी का जीवन बड़े ही प्रेम के साथ लिखा है गुरुजी ने मुगलों के साथ चार बार लड़ाई लड़ी और चारे ही बड़ी शान से जीती उनका इतिहास बड़ा विस्तार पूर्वक और रोचक भाषा में बयान किया गया है कई बार आंखों के सामने ऐसा नजारा बांध देते हैं और ऐसा लगता है कि जिस तरह लड़ाई के मैदान में बैठे है, भाई संतोख सिंह जी ने गुरु हरगोबिंद साहिब जी के जीवन के जिस पहलू पर ज्यादा जोर दिया है वह 100 फ़ीसदी सच है उनका यह दृढ़ विश्वास है सिखों को गद्दी पर बिठाने वाले श्री गुरु अर्जन देव साहिब जी महाराज और श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी हैं श्री गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर जाकर जो शहादत पाई उस से सिख धर्म में शहीदी परंपरा का आरंभ हुआ अपने देश और धर्म के लिए शहादत पाने का जज्बा पैदा हुआ भक्तों में  परंपरा चली आ रही थी जब उनके वहा कोई भीड़ होती थी तो वह करामात दिखा कर अपनी जान बचा लेते थे तो फिर लोग उन भक्तों की वाणी को भूल जाते थे केवल उनकी करामातो के ही गुण गाते थे लेकिन श्री गुरु अर्जन देव जी ने अपने शरीर पर बहुत कष्ट झेले पर उन्होंने कोई करामात नहीं दिखाई अगर वह भी कोई करामात दिखाकर अपनी जान बचा लेते तो आज सिख धर्म उनकी रची बानी को ना पड़ते बल्कि उनकी करामातो के गुण गाते रहते पर उन्होंने शहीदी पाने की जो करामात दिखाई उसने बाद में उसे लाहौर शहर को सिख राज की राजधानी बना दिया श्री गुरु हरगोबिंद साहिब का शस्त्र धारी होना भी एक बड़ा इतिहासिक मोड़ है पहले पांच गुरु साहिबान शांतमई रहे पर गुरु हरगोबिंद साहिब ने यह अनुभव किया कि मुसलमान या हिंदुओं में कोई फर्क नहीं दोनों एक जैसे ही इंसान है फर्क है तो केवल तलवार का हथियारों का जब तक हिंदुओं ने तलवारें पकड़ी हुई थी वह राज करते रहे जब उन्होंने तलवारे छोड़ दी तब वह गुलाम हो गए हथियार चलाने को परपख और अभ्यास करने के लिए शिकार खेलने की जरूरत थी पर हिंदू जंगलों में रहते खूंखार जानवरों के शिकार हो जाते थे पर उनको मारने की हिम्मत नहीं करते थे श्री गुरु हरगोबिंद जी ने अपने सिखों को हथियार दिए शिकार खेलने का शौक पैदा किया यह जज्बा श्री गुरु गोविंद सिंह जी तक भी कायम रहा फिर श्री गुरु गोविंद सिंह जी के बाद बाबा बंदा सिंह बहादुर ने इन मुगल हाकमा का शिकार खेल कर सिख राज की नींव रखी उसके बाद सिखों ने वापस मुड़कर नहीं देखा उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि अंत राज खालसा का ही होगा श्री गुरु हरगोबिंद साहिब ने सिखों में लड़ाई करने का जज्बा वीर रस पैदा करने के लिए पैदा किया था गुरु जी कहते हैं कि जो निष्कामी होंगे वह तो परम पद भी प्राप्त करेंगे और जो सेहकामी सिख होंगे वो राज कमाएगे पर हमें यह नहीं सोच लेना चाहिए कि श्री गुरु नानक देव जी के मन में अपने सिखों को राज पाठ देने का मनोरथ नहीं था उन्होंने जुलम के विरुद्ध जब निर्भय होकर आवाज़ बुलंद की तो उनके मन में यह ख्याल स्पष्ट था कि वह एक ऐसा धर्म पैदा करें कि जो न्याय और इंसाफ का राज उपलब्ध कराएं इसलिए उन्होंने अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया ताकि सिखी का पौधा जवान हो सके तो जब सिखी का पौधा श्री गुरु गोविंद सिंह जी के हाथों में जवान हुआ तो इसने बाद में जल्दी ही राज संभाल लिया और एक आदर्शक हकूमत कायम की श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने सिखों को संत सिपाही बना के भारत को दिखा दिया की अगर एक संत सिपाही नहीं बनता है तो वह संत आतम निर्भरता नहीं प्राप्त कर सकता अगर सिखी का पौधा इस तरह जवान होकर ना विचरता तो यह छोटा ही पंथ बनकर रह जाना था इसने अपने आपको एक धर्म नहीं कहलाना था श्री गुरु नानक देव जी के सिखों को फिर लोग नानक पंथी कहते जिस तरह अब कबीर साहेब के सिखों को कबीर पंथी कह देते है सिख पंथ को दुनिया में एक नवेकली धर्म बनाने में 10 गुरु साहिबानो का बराबर का हाथ है इस बारे भाई संतोख सिंह जी बार-बार स्पष्ट करते जा रहे हैं उनकी इस अद्भुत रचना ने सिख धर्म और गुरु साहिबानो को बड़ा आदर सत्कार बक्शा है इसी तरह एक दिन श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी अपने महल में अकेले बैठे थे एक पलंग पर बैठे हुए बड़े प्रसन्न चित्त थे और कोई भी व्यक्ति उनके पास नहीं था सब जोगणियां की सरदारनी जिसका रूप बहुत विकराल है जिसका नाम कलहा है और उसने काला रंग धारण किया है उसके दांत बहुत बड़े हैं और मुंह खुला है बहुत जोगणिया उसके साथ हैं जिनके अंग बहुत बड़े और भयानक हैं लाल रंग के बाल खुले हैं और पीछे को छोड़े हुए हैं उनके शरीर का चम सूखा हुआ है और सभी नसे दिखाई दे रही है उनकी आंखें रक्त की तरह लाल है उन सभी ने अपने हाथों में खोपडियो के खप्पर पकड़े हुए हैं विकराल हड्डियों के बने हार गले में डाले हैं फटे पुराने कपड़े पहने हुए हैं जोकि बुरी तरह मैले हैं वो गुरुजी के सामने आकर सभी खड़ी हो गई रक्त और मांस की उनको बहुत भूख और प्यास लगी हुई है बड़ी-बड़ी जुबान के साथ होठ चाट रही है जिनको देखकर डरपोक के हृदय फटते हैं जब उन्होंने जाकर गुरु जी को नमस्कार की तब गुरुजी ने पूछा की लाजहीन तुम कौन हो बड़ा आकार का संकट धारण किया हुआ है इस तरह लगता है जैसे कूढ़ ने दलिदर का रूप धारण किया है या तो कही तुर्का की मौत तो नही आई है चित में क्या चाहती हो हमें बता दो यह सुनकर बोली मेरा नाम कलहा है बहुत भूख और प्यास लगी है भूख प्यास मिटाने के कारज हित मैं आप जी के पास चल कर आई हूं मेरा हितकारी भोजन मुझे प्रोसे बहुत साल बीत गए हैं मैंने कुछ भी नहीं खाया है भूख प्यास से मैं बहुत व्याकुल हो गई हां जिस तरह सभी की कामनाएं पूरी करते हैं उसी तरह मेरे पर भी कृपा करो यह सभी जोगणिया मेरा परिवार है भूखिया बहुत भोजन चाहती हैं यह सुनकर गुरुजी ने फरमाया जितना भी अन तुम्हारे मन को भाता है मेरे तरफ से लेकर खा लो जितना भी भोजन खाने को चित्त करता है उतना मुझे बता दो और अपने पेट भर लो कलहा कहने लगी अन हमारे किसी भी काम नहीं आता है ना ही हम कभी इकट्ठा करके खाते है हम तो रक्त और मांस का भोजन करते हैं फिर तृप्त होकर डकार मारते हैं गुरु जी ने कहा जितना भी मांस चाहती हो अब मुझे बता दो उतना मंगवा दूं जिससे आप तृप्त हो जाए कलहा ने कहा इस तरह का मास हमारे किसी काम नहीं ऐसा मांस ना हम खाते हैं और ना ही भूख दूर करती हैं मेरा भोजन आपके हाथ में है और किसी विधि के अनुसार मैं तृप्त नहीं हो सकती वो मैं कहती हूं हे धीरजवान गुरुजी मेरी बेनती सुनो दोनों तरफ की फौज के सूरमे आपस में भिड़ रहे हो बड़ा अहंकार करके वह शास्त्रों पर वार करें जख्मी हो के फिर उसको मारे कभी भी पीछे ना हटे सामने होकर गिरे शत्रु को मार मार के रण खेतर में मर जाएं ऐसे योद्धा का जो मास हो वह हमारे खाने जोग होता है बहुत समय से जंग नहीं हुई है इस करके किसी भी स्थान से भोजन नसीब नहीं हुआ है सभी परिवार सहित बहुत भूख लगी हुई है किसी समय भी रक्त प्राप्त नहीं हुआ इस करके हमें भूख ने बहुत व्याकुल किया हुआ है हम बहुत व्याकुल होकर उडीक कर रहे हैं बहुत समय से लगी हुई हमारी भूख को दूर करो जंग की रचना करो और तुर्का को मारो गुरुजी सुनकर मुस्कुराए और उन्होंने वचन किया अब बहुत बड़ा युद्ध मचेगा आगे  सैकड़े साल बीत जाएंगे जगत में जंग जाग जाएंगे तो घर घर में होंगे तुम्हारे हाथ में मास हम ही सबसे पहले देंगे बहुत तृप्त होकर डकार मारना अब आप का समय आ गया है मन चाहता भोजन शक लो कलहा समेत जोगणिया का समूह सभी बहुत उत्साहित हुई गुरु जी को नमस्कार कर कर के नाचने लगी सभी रण खेतर के प्यार में भीग गई पोटनिया लेने लगी सभी बहुत प्रसन्न होकर अंतर र्ध्यान हो गई हम बहुत भूखे है अब भूख मिटा कर, भोजन शक के तृप्त हो जाएंगे वो दिन सतगुरु जी ने वतीत किया, रात को भोजन शका फिर आराम करके सुख से रात वतीत की फिर जाग कर स्नान करके मन को अंतर ध्यान में लगाया फिर गुरु जी ने गुरबाणी का पाठ किया कीर्तन सुनकर फिर भोजन शका गुरुजी ने फिर बैठ कर बहुत आनंद माना सो साध संगत जी इस प्रकार सच्चे पातशाह ने जोगणियो की बेनती पूरी की थीं और उन्हें प्रसन्न किया था साध संगत जी आज के प्रसंग कि यहीं पर समाप्ति होती है प्रसंग सुनाते हुई अनेक भूलों की क्षमा बक्शे जी ।

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By Sant Vachan


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