हम अक्सर संतों महात्माओं के कई किस्से या साखियां सुनते या पढ़ते हैं, जिनमें कई तरह के चमत्कार हो चुके हों, ये असल में चमत्कार नहीं बल्कि उन संतों महात्माओं की उन जीवात्माओं पर दया मेहर होती है
जो वे उन्हें तारने के लिए रचते हैं और यही दया मेहर भरा चमत्कार एक तरह से "निस्वार्थ कर्म" होता है, जो हमें स्रष्टि के विरुद्ध जरुर लगता है पर उसमें संतों महात्माओं का कोई स्वार्थ नहीं होता, वह निस्वार्थ ही होता है, तभी ही उनका कर्म होते हुए भी किसी प्रकार का कोई कर्म नहीं बनता, अगर कर्म बन भी जाता है तो उन संतों महात्माओं की अटूट भक्ति, जो निरंतर उनके अंदर होती ही रहती है उससे जलकर राख हो जाता है।
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