Bibi Bhani Ji ki Sakhi । आज तक किसी भी सपुत्री ने अपने पिता की ऐसी सेवा नही की होगी ।

 

श्री गुरु रामदास जी की खातिर गुरुजी ने कुछ गांव का पटा बादशाह अकबर की तरफ से ले लिया भविष्य की सभी गति को जानकर की सिख पंथ ने भविष्य में बहुत आगे बढ़ना है ।

श्री सतगुरु जी ने इस तरह भक्ति का विस्तार किया जब भी किसी को ज़रूरत मंद देखते थे तो उसको बख्शीश कर देते थे उनकी छोटी सपुत्री बीबी भानी जी उनकी नित सेवा करती थी बहुत समझदार थी और अपने पिताजी को पिता करके नहीं बल्कि सत्गुर समझकर सेवा करती थी मानो बीबी भानी जी भाव भक्ति का ही स्वरूप था या मानो कीर्ति ने रूप धारण कर लिया है या प्रताप श्री लक्ष्मी ने निजी भेस धारण किया हुआ है बड़े भागो वाले पतिव्रता सुशील और श्रेष्ठ बुद्धि वाले थे और किसी को गुरुजी पास जाने नहीं देते थे आप शरदा धार के सेवा कमाते थे जिस तरह भी पिता जी प्रसन्न होते थे उस तरह नित सेवा करते थे पहर रात रहते ही स्नान करते थे फिर गुरु जी दर्शन करने हित चले जाते थे सदा मन में शरदा धारकर बंदना करते थे और पिताजी को परमेश्वर रूप जानकर जीते थे फिर जब सेवा के लिए आते थे बीबी भानी की सेवा गुरु जी को बहुत चंगी लगती, बीबी भानी जी एक दिन बहुत दीन होकर बैठे थे बेनती सेहत गुरु जी को कहा पिता जी हमारे शरीक बहुत अमीर है ज्यादा धन करके हृदय में हंकार करते है सभी शरीकना बड़ा ऊंचा भाव हंकार सेहत बोल दिया है बड़े कीमती कपड़े लेकर पहनती है और सोने के बहुत गहने पाती हैं हमको देखकर हृदय में बहुत घमंड करती हैं सुनकर और अपनी सपुत्री की मन की बात जानकर श्री सतगुरु जी अपने सामने एक इट पड़ी देखकर बोले इस इट जितने सोने से सारा काम चल जाएगा कपड़े गहने सारे बन जाएंगे कि नही अगर बन जाएंगे तो यह इट अपने हाथ में पकड़ो बीबी भानी जी बोले पिता जी तुम सब गति जानते हो सब तरह समरंथ हो जो चाहो कर सकते हो यह कहकर जब इट तरफ देखा तो वह सारी सोने जैसी चमकने लगी पिता जी की आज्ञा लेकर उठा ली गुरु जी ने कहा आप और अपने सपुत्रों को गहने बनाकर पहनाए गुरु जी कृपा धार के बोल रहे थे कि हमारी तरफ से कोई ओहला नहीं रखा है जो वस्तु भी आपके आराम वास्ते जरूरी हो हमसे पहले ही मांग के ले लिया करो जैसे जैसे पिताजी बोलते जाते थे वैसे वैसे ही बीबी भानी जी पिता जी के अनुसार ही सुखों का मोड़ होते जाते थे दीन रहकर वह बहुत सेवा कमाते थे गुरु जी की आज्ञा के अनुसार हो कर उनको खुश रखते थे जिस तरह आकाश सारे व्यापक है उस तरह सतगुरु गुरु जी घट घट में व्यापक है जो भी इस भेद को जान लेता है उस ऊपर गुरु जी की किरपा दृष्टि हो जाती है एक दिन सतगुरु जी लंगर वाले स्थान गए सभी सिख उनके साथ थे गुरु जी ने लून रहित दलिया खाया और पानी पी के तृप्त हो गए, 6 रसा और 6 स्वादा के साथ भोजन शुभ ढंग से त्यार हुआ था सतसंगत ने पंगत में बैठकर शक्या बढ़िया चावलों की बहुत खीर बनी हुई थी जो घी और खंड के स्वाद के साथ मिली हुई थी अनेक प्रकार के भोजन त्यार किए हुए थे जो मसाले डालकर बढ़े स्वादी बनाए हुए थे गेहूं के आटे के प्रशादे बनाए हुए थे जो बड़े नर्म और पतले त्यार किए हुए थे इस तरह शुभ भोजन त्यार किया हुआ था यह देखकर बाबा बूढ़ा जी ने वचन किया हे सतगुरु जी परम किरपालो अनेक प्रकार के रसीले भोजन त्यार हुए है वो स्वादी भोजन सारी संगत ने शक्के है पर आप जी ने लून रहित दलिया खाया है सिखो के लिए यह उचित नहीं कि वो स्वादी भोजन शके तो आप बे स्वादा भोजन खाओ जो भी भोजन आप चित में चाह कर शको वो ही भोजन सिखों को शकना चाहिए यह ही रीति सिखो के हित में है तुम्हारे बेगैर उनको चंगे पदार्थ नही खाने चाहिए मेरे कहने का यही मनोरथ है मैं कई दिन से चाहता था आज बहुत समय के बाद कहा है गुरु जी यह सुनकर बाबा बुढ़ा जी के ऊपर बहुत प्रसन्न हुए तो उनको इस प्रकार उत्तर दिया गुरमुख संगत और मेरे दोनों में कोई भेद ना जानो मैं संगत के साथ अभेद हो गया हूं ये संगत सुखी है तो मैं सुखी हूं ये संगत दुखी है तो मैं भी दुखी हूं जो भोजन संगत स्वाद के साथ शकती है वह सारा स्वाद मेरे पास पहुंच जाता है उस समय गुरु जी भोजन शक के चूली कर रहे थे अपनी चूली तरफ़ इशारा करके बोले देखो मेरे मुख में सारे स्वादी भोजन गए है चूली करके जब सब को दिखाई तो संगत ने उस चूली में सारे परदर्था के तिनके देखे खीर रात के जो तिनके थे वो भी उसमें माजूद थे सब सिखों मे गुरु जी अपना रूप धारते है सब संगत को भोजन शकाते थे तो सब संगत का भोजन आप शकते थे अपनी चूली में सब परदर्था के अंश दिखाएं फिर श्री सतगुरु जी ने वचन सुनाए दांत और दाहड़ो के साथ जो कुछ भी लगा था वो सब कुछ सिखों को दिखा दिया हे परम प्यारे बूढ़ा जी तुम बहुत बुधिवान हो मेरा यह मत निस्चय कर लो जो भोजन संगत बहुत प्रेम के साथ शकती है वो भोजन हर समय मेरे पास पहुंच जाता है संगत मेरे बगैर दूसरी नहीं अपने मन में दोनों को एक ही जानो बाबा बुढ़ा जी गुरु जी के यह वचन सुनकर प्रेम धारण करके बहुत प्रसन्न हुए उस समय ही गुरुजी के चरण कमलों में सिर रख दिया तो उत्तम श्रेष्ठ जस करके बहुत प्रसन्न हुए गुरुजी सुबह ही स्नान करके निर्मल कपड़े पहन लेते थे फिर एकांत जगह पर जाकर बैठ जाते थे अपने रूप में अपनी बिर्ति टिका लेते थे तो फिर निज सवरूप में टिकने का आनंद लेते थे सुबह होने तक अपनी बिर्ती टिका देते थे तो अभचल आनंदरूप हो जाते थे दिन चढ़ने पर ही सिख संगत इकट्ठी हो जाती थी गुरु जी के दर्शन करके सेवा करके सुख पाते थे एक दिन कृपालु प्रभु जी जागे सूचम करके इशनान करने गए उस समय उनकी सपुत्री बीबी भानी जी जिन्हों की भगति गुरु जी को पाई है दर्शनों के लिए गुरु जी के पास पहुंचे स्नान करने के लिए तब गुरुजी लक्कड़ की चौकी पर चढ़कर ध्यान धारण के लिए बैठ गए दोनों आंखें बंद करके उन्होंने अंतर मुखी बिर्ती धारण कर ली श्रेष्ठ ध्यान लगाकर गुरु जी शिवजी वांग अडोल बैठ गए उस समय चौकी का एक पावा टूट गया यह देखकर बीबी भानी जी ने मन में इस तरह सोचा जब पिताजी हिल के इस तरफ होंगे चौकी की स्थिति उसी समय डोल जाएगी तो उनकी अगाध आराधना की समाधि खुल जाएगी जिस स्थिति को प्राप्त करने के लिए योगी लोग बड़े जतन करके साधदे है फिर ध्यान में अडोलता आ जाएगी तो फिर अड़ोल बिर्ती फिर टिक्केगी नही वहां कोई और वस्तु ना पई जिसको पावे के नीचे रख दे चारों तरफ अपनी आंखों से देखा नजदीक कोई भी चीज नहीं मिली जिसको पावे की जगह चौकी के नीचे रख सकें उतावले होकर अपना हाथ ही पावे की जगह नीचे रख दिया जो कि उससे चौकी ना डोले चारों पावो के बराबर भार करके बीबी भानी जी ने उस को सहार लिया स्त्री का शरीर था और कोमल हाथ थे भार के दबा करके हाथ चौकी के नीचे होने से बहुत पीड़त हुआ चौकी के हिलने के डर करके हाथ हटाया नही तो हिरदे में धीरज धारण करके बैठे रहे पावा हथेली में गड़ा रहा तो उस जगह को छोड़कर हाथ बाहर नहीं निकाला पुरषों के लिए जो काम बहुत कठिन है पिता भक्ति कारण उस दुखदायक कार्य को भी किया सुबह होने तक हिले नहीं मानो किसी चित्र की मूर्ति बनी हो भाव एक मूर्त जैसे अहल बैठे रहे कंधे तक बाजू सुन हो गई बाजू सो गई खून उतरने से बाजू लाल सुर्ख हो गई जब समाधि खुलने का समय आया तब गुरु जी के कमल नैन खुल गए अपनी सपुत्री को पास बैठी देखा फिर उसकी बाजू तरफ देखा नसे फूली हुई थी तो खून भर गया था श्री सतगुरु जी ने पूछने के लिए कहा जहां पर क्या करती रही हो तो यहां पर क्यों बैठी है तेरी बाजू बहुत पीड़ित दिखाई देती है यह सुनकर बड़े भागों वाले बीबी भानी जी बोले हे पिता जी मैं चौकी एक पावे के बगैर देखी थी यही नजदीक चौकी के नीचे देने के लिए कुछ भी नही दिखाई दिया जिस करके मैंने हाथ चौकी के नीचे रख दिया मैं डरती थी की चौकी के हिलने से आप की समाधि खुल जाएगी इस करके मैंने चौकी को‌‌ स्थिर टिक्काई रखा फिर सतगुरु जी ने नीचे उतर कर प्रेम के साथ देखकर हाथ को चौकी के नीचे से निकाला जब हाथ में एक डुंग पड़ा देखा तो कहा तुमने इतना दुख कैसे धारण किया बीबी भानी जी ने कहा हे पिता जी मेरी ज्ञान हीन मत है आप जी की मेरे से सेवा हो नहीं सकती है दिन रात में झूरती रहती हूं आप जी परमेश्वर की मूरत हो आप जी के दर्शन करके नेत्र सफल हो जाते हैं आप जी की आज्ञा अनुसार टहल सेवा करने से हाथ सफल हो जाते है वो हिरदा सफल है जिस में आप बस्ते हो वह चरण सफल है जो तुम्हारे पास चल कर जाते हैं जो आप जी की सेवा में लगे हैं उन बड़भागियों के सारे शरीर ही सफल है अपनी सपुत्री के सुहावने वचन सुनकर और उसकी तरफ से किए कठिन काम को देख के बहुत प्रसन्न हुए और श्रेष्ठ वर दिया तेरी सन्तान महान बड़ेगी उनकी सारे जग में पूजा होगी जिस तरह दूज का चंद्रमा बढ़ता है आगे सुख और आनंद बहुत बढ़ेगा जो उनकी सेवा करेगा वह बड़े भागों वाला होंगा आगे वंश में जो मनुष्य पैदा होंगे वह जगत में बड़े महाबली होंगे वह शस्त्र पकड़कर दुष्टों का नाश करेंगे और अपना अधिक प्रताप बढ़ाएंगे परम धर्म और मिरी पीरी धारण करेंगे और पूर्वअली रीति बदल देंगे कलयुग में जहां वहां उनकी जय जयकार होगी और हजारों लोगों का वो उद्धार करेंगे सोडी वंश को बड़ी बड़ीआई मिलेगी तू भगति करके भलि रीति के साथ ही वो पा ली है तीनों कालों में तेरे जैसी ना कोई हुई है ना कोई अब है ते ना ही आगे ऐसी कोई होगी तेरे पिता जी गुरु है तेरा पति इस जगत का गुरु होवेगा तेरा पुत्र गुरु बनेगा और पौत्रा गुरु मीरी पिरी का मालिक होवेगा मैं अब तेरी की बढ़ाई कहा जिस दे बराबर कोई हो ही नही सकता श्री गुरु अमरदास जी ने अति किरपाल होकर इस तरह के कई उत्तम वर बीबी भानी जी को दिए यह सुनकर बीबी भानी जी ने हाथ जोड़ कर हिर्रदे में गुरु जी का सम्मान किया बड़े भागों वाली ने गुरु जी को वंदना की पिता जी की भविष्यवाणी सदा ही सच्ची होती थी यह वो जानते थे वर देने पर बहुत प्रसन्न हुए आज्ञा प्राप्त करके घर चले गए आपने सरभ उत्तम पदवी प्राप्त की, गुरु जी सदा भगति के वस में रहते थे ना देने वाली दुर्लभ वस्तु को भी अतरजामी गुरु जी दे देते थे एक दिन बालक श्री गुरु अर्जन देव जी खेलते खेलते इधर उधर फिर रहे थे गुरु जी पास कोई भी बालक नही जाता था गुरु जी ने सब बालकों को पहले ही मना कर रखा था कोई भी अनधाडिया गुरु जी पास ना जाए गुरु जी ने ऐसी आज्ञा दे रखी थी तब बालक श्री अर्जन साहिब सहज सुभाह अपने नाना जी के घर तरफ चल गए अंदर दाखिल हो के गुरु जी के पास चले गए जहां गुरु जी अपने पलंग पर लेटे हुए थे सोने का समय जान के सारे सेवक थोड़ी विथ ते चले गए थे तब बीबी भानी जी ने अपने सपुत्र को वहा देखा तो वह डरते अपने सपुत्र को पकड़ने के लिए दौडे, खेलते खेलते शरीर को बहुत मिटी लगी हुई थी खड़े हो के उन्होंने पलंग के वाही को पकड़ा हुआ था बीबी भानी जी आ के जब उनके पास गए तो वह पलंग को पकड़कर खड़े रहे बालक श्री गुरु अर्जन देव जी को जब पकड़ने के लिए पास गए ते किरपालों गुरु जी ने देख के वचन किया इसको ना लेकर जाओ इसे यही रहने दो यही पर खड़ा रहने दो गुरु जी ने दोनो हाथों से बालक को पकड़ लिया ऊपर चुक के जब तोला भाव भार को जांचा तो काफ़ी भारा देखकर गुरु जी ने कहा यह जगत में बड़े गुरु प्रगट होंगे बानी के बड़े जहाज़ होगे तब श्री गुरु अर्जन देव जी अपने चरण उठा के पलंग के उपर रख के बहुत प्रसन्न हुए यह देखकर गुरु जी ने वचन किए अब से गद्दी प्राप्त करने के लिए ललचा गया है यह गुरु गद्दी अपने पिता जी तरफ से लेनी तब तक धीरज धारण करके बैठो बीबी भानी जी अपने पिताजी के अनुकूल वचन सुनकर गुरु जी की बहुत कृपा देखकर मन में बहुत खुश हुए अपने छोटे सपुत्र को गुरु जी के चरणों मे पाया तो फिर गोदी में उठा के आनंद के साथ अपने घर आ गए तीनों पुत्रों की प्रितपालना करते थे प्रीत धारण करके अपने पिता जी की सेवा करते थे उस तरह ही बड़े भागों वाले श्री रामदास जी दिन रात गुरु जी की सेवा में लगे रहते थे ।

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By Sant Vachan


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