Baba Shri Chand ji ki Sakhi बाबा जी ने जहांगीर के मरे हुए पुत्र को ऐसा क्या कहा कि वह जीवित हो गया !

 

बाबा श्री चंद जी कांधरा बाग के जंगलों में धूना लगाकर बैठते थे पीछे इस नगर का नाम नानक चख प्रसिद्ध हो गया बाबा जी के दर्शनो को सब आस पास की संगत आती थी सब की मनोकामनाएं पूरी होती थी

तो बाबा जी का जस दूर-दूर तक हो रहा था इधर लाहौर के तखत का बादशाह जहांगीर तो उसका मुर्शद साईं मियां मीर जी अचानक दरबार में बैठे हुए थे तो बादशाह ने पूछा की पीर जी हिंदू राजो और नवाबों का मैं बादशाह हूं आपके फकीरों का भी कोई बादशाह है या नहीं तो साइ मियां मीर जी ने उत्तर दिया कि जरूर है बहुत महान ताकत वाला है जपी है तपी है हठी है नेमी है तो करामांतो का भरपूर सागर है एक राज की वो तीनों लोगों का मालिक बादशाहो का भी बादशाह है जो कि आज कल काधरा बाग के जंगल में तप कर रहे हैं और संगतो को तार रहे है श्री गुरु नानक साहिब जी के बड़े साहिबजादे हैं तो उनका नाम श्री चंद्र जी है आप जाकर दर्शन करो अगर जाने का वक्त नहीं मिलता तो तुम अपने किसी वजीर अहलकार की ड्यूटी लगा सकते हो सत्कार के साथ आ सकते है पर वो भी उनकी मौज है आए जा ना ही आए यह भी हो सकता है वो सरब कला समरथ है तुम्हारी अगर दिली भावना प्यार में है तो वो तुम्हारी इच्छा पूरी करेंगे तो कुछ ही दिनों बाद जहांगीर ने एक राजपूत राजे को और अपने एक वजीर को त्यार कर लिया कि एक सुंदर हाथी शिंगार के उनकी सवारी के लिए ले जाओ तो और दो,चार अहलकारो को भी साथ ले जाओ और बाबा श्री चंद जी को बड़े सत्कार के साथ लाहौर लेकर आओ राजा और वजीर जहांगीर की आज्ञा लेकर दो,तीन पड़ावो के साथ काधरा बाग आ पहुंचे आगे बाबा जी आसन पर बैठे हैं संगत बाबा जी से वचन विलास  सुन सुन कर प्रसन्न हो रही थी तो बाबा जी भी समझ गए थे कि यह बंदे बादशाह के होंगे सभी ने चरणों पर माथा टेका आशिर्वाद भी लिया तो बाबा जी जान तो गए ही थे पर फिर भी पूछा कि आओ भाई तुम बताओ किस तरह आए हो तो राजपूत राजे और वजीर ने हाथ जोड़कर विनती की कि हजूर आप जी को जहांगीर बादशाह ने दर्शनों के लिए लाहौर याद किया है आप चलकर दीदार दे कर उस ऊपर मेहरो की नजर पाओ जी यह हाथी आप जी की सवारी के लिए हाजिर है जी तो बाबा जी मेहरो में आए और तैयार हो गए तो वहां पर बैठी संगत को भी कह दिया कि हम लाहौर जा रहे हैं हमें जहांगीर बादशाह ने याद किया है हाथी तैयार खड़ा था तो हुक्म किया कि यह हमारी कबली हाथी ऊपर रख लो पीछे हम भी बैठ जाएंगे अभी कबली हाथी ऊपर रखी ही थी हाथी की चीखें निकल गई और टांगे जमीन में धस्ती जाने लगी जब हाथी के ऊपर से कबली उठाई तो फिर हाथी को सुरत आई फिर हाथी धरती से बाहर आ गया बाबा श्री चंद जी ने कहा कि जिसने हमारी कबली नहीं उठाई वह हमें किस तरह उठा कर पहुंचा सकता है इसको ले जाओ हम कल आप ही पहुंच जाएंगे यह कोतक देख कर राजा और वजीर ओर अहलकार हैरान हो गए यह कहा कि यह बाबा जी का चमत्कार हुआ है तो आज्ञा पाकर सभी लाहौर को परत गए दूसरे दिन बाबा श्री चंद जी ने भाई कमलिया जी को कहां कि हमने लाहौर पहुंचना है भाई कमलिया जी उसी समय तैयार खड़े थे आज्ञाकार थे बाबा जी कमलिया जी के कंधे पर बैठ गए वहां से आलोप हुए तो लाहौर पहुंच गए उधर बादशाह जहांगीर को खबर मिल गई कि बाबाजी आ गए है तो बहुत सारे अहलकारों को साथ लेकर बाबा जी के स्वागत के लिए पंगलवांडी पहुंचे, बड़े स्वागत आदरमान के साथ राज दरबार में लिया कर बड़े सुंदर सिंहासन पर बिठाया साथ ही भाई कमलिया जी थे, उनको दूध पिलाया बहुत सारे सेवा में हाजिर खड़े थे बादशाह जहांगीर ने चरण परसे सभी ने माथा टेका आशीर्वाद प्राप्त किया तो कुछ समय आराम किया यह सत्कार देखकर राज मौलाना ने बाबाजी के आगे सवाल कर दिया कि उस खुदा के दरबार में हिंदू कुबूल होता है कि मुसलमान होता है के दोनों ही, तो बाबा जी ने उत्तर दिया कि खुदा ना तो हिंदू है ना ही वो मुसलमान है और ना ही वो जाहोदी है खुदा का कोई मजहब नहीं है उसकी ना जात है उसकी मजहब के साथ कोई साझ भी नहीं है उसने सभी को बराबर बनाया है पर जो शुभ अमल करता है उसकी रजा में प्रसन्न रहता है अपने हक पर साकर रहता है बस वही उस के दरबार में कबूल होता है यह बातें हो ही रही थी तो राज महलों में ये भाना व्रत गया कि बादशाह का पुत्र अभी सात,आठ वर्ष का ही था अचानक खेलते खेलते वह महलों से नीचे गिर कर बेहोश हो गया वैध बुलाएं गए और बहुत उपाव किए गए पर अंत बच्चा मर ही गया जब दरबार में बच्चे की खबर पहुंची रोना करलोना हो रहा था बच्चे की मां बेगम ने अपने मरे बच्चे को गोद अंदर ही पाया हुआ था और रो रही थी अब उधर बच्चे का पिता जहांगीर भी आ गया बच्चे की तरफ देखकर घबरा गया अभी एक यह ही पुत्र था, बड़ी रानी नूरजहां ने कहा कि यह तुम्हारे किए पापों का ही फल मिला है जो तो खुदा के फकीर साईं लोगों को भी तंग करता रहता है उस खुदा का भी कोई डर नहीं रखता तो झट ही जहांगीर को बाबाजी का ख्याल आ गया तो जल्द ही बच्चे की लाश उठाकर बाबा जी के चरणों में लिया कर रख दी हाथ जोड़कर अर्ज की कि मेरे खुदा मेरे पर मेहर करो ये क्या भाना व्रत गया है आप मेहरो के सागर कृपालु हो कृपा करो इस बच्चे को जीवनदान बक्शो तो बादशाह का करलोना सुनकर बाबा श्री चंद जी मेहरो के घर में आ गए अपने कर मंडल में से बच्चे की लाश ऊपर जल का शीटा मारा और कहा उठ बच्चा इतना सोते नहीं बच्चा उस समय ही उठ कर बैठ गया फिर बाबा जी के नाम पर नारे बज गए कि धन मेरे खुदा, आप जी ने मेरे बच्चे को जीवनदान बक्शया है धन हो धन हो धन हो तो जब बादशाह ने इधर उधर जरा को नजर फेरी तो उसी वेले ही बाबाजी वहा से आलौप हो गए थे बच्चे की मां बहुत खुशी में आ गई सभी लोगों ने आकर मुबारके दी रात को मंदिरों से लेकर सभी शहर में दीपमाला की रोशनी जग-मगा उठी और साथ ही आतिशबाजी भी चली ऐसे प्रतीत हो रहा है जैसे आज ही बादशाह के घर पुत्र ने जन्म लिया हो रानी ने बादशाह को अर्ज की कि महाराज बाबा जी ने हमारे ऊपर बड़ी मेहर की है जो हमारे बच्चे को दोबारा जीवनदान बक्शा है ऐसे उपकारी महात्मा कर्मों के साथ ही मिलते हैं ऐसे नहीं मिलते हमारे कर्म अच्छे ही होंगे पर हम हिंदुस्तान के बादशाह हैं हमने भगवान को लाहौर आने की खेचल भी दी पर आज हमने उनका सत्कार कुछ भी नहीं किया हम इस बात से बड़े मंदभागी ही रह गए हां हम सभी को उनके स्थान पर पहुंचकर कुछ तोफे भेट करके आशीर्वाद लेना चाहिए वो खुदा जैसी समर्था के भरपूर सागर हैं हमारा बच्चा महलों से गिरकर मर गया तो उन्होंने मुर्दे हुए बच्चे को फिर जीवनदान दे दिया वो अल्लाह पाक का नूर ही है यह सलाह करके राजा और रानी ने अच्छे तोहफे हीरे लाल मोती, जवाहरो के थाल भर लिए तो और अहंलकर दो,चार साथ लेकर बाबा जी के दर्शनों को चले गए,  काधरा भाग के जंगलों में से बाबा जी के धूने पर आ पहुंचे बड़े सत्कार के साथ सजदे किए भेटा भेट की और बाबा जी के चरणों में बैठ गए बाबा जी ने कहा कि हम जंगलों के वासी हैं हमें इन शाही नजरानया की कोई जरूरत नहीं है यह तुम वापस ले जाओ तो बादशाह ने कहा कि मैं आप जी के रहने के लिए सुंदर मकान बनवा देता हूं पर बाबा जी ने कहा कि हम एक जगह पर नहीं टिकते चलते फिरते है किसी बंधन में नहीं है चक्रवर्ती के तरह सब धरती की यात्रा करते हैं हमें किसी मकान की जरूरत नहीं है तो बादशाह ने सोचा कि यह तो बिल्कुल ही त्यागी साधु है जो किसी भी वस्तु की चाह नहीं करते अब मैं क्या करूं नजदीक बाबा जी के गाय घास चुग रही थी बाबा धर्मचंद जी भी थे तो जहांगीर बादशाह ने गाय की चुराद के लिए 700 विग्य जमीन का पट्टा बाबा धर्मचंद जी के नाम पर लिखवा दिया बाबा जी ने वो भी स्वीकार नहीं किया पर बादशाह में विनती की कि मेरे खुदा रूप भगवान जिओ मेरी कोई तो दिली ख्वाहिश पूरी होने दो तो बादशाह की विनती सुनकर और गुरु प्रेमियों के कहने पर कि महाराज आपको जरूरत तो नहीं पर शाह होरी यह जमीन बाबा धर्म चंद जी को दे रहे हैं आप जरूर स्वीकार करो तो यह शाह जी का भी मान रह सके आने वाली बात बाबा जी ने महसूस की और बादशाह निराश नहीं होने दिया और गाय के लिए जो जमीन 700 विग्ये दी थी उसकी मंजूरी दे दी फिर बादशाह और रानी बड़े खुश प्रसन्न हुए तो दरबारियों समेत बड़े सत्कार के साथ सजदे करके वापस लाहौर चले गए प्यारी साध संगत जी ये बात कहने से संकोच नहीं किया जा सकता कि श्री गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र होने के कारण आप जी भी शक्तियों के भंडार थे बल्कि गूंगे बोले को सुनन और बोलने का वर देना मुर्दों को जिंदा करना राजे रानियों के हंकार तोड़ने विचित्र कोतक बताने बेऔलाद को औलाद की बक्शीश करनी आस करके आए हर व्यक्ति की आस पूरी करनी आदि बेअंत करामाते बाबाजी में थी ।

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By Sant Vachan


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