Guru Nanak Sakhi । 802 साल के बाबा बूढ़न जी द्वारा दिया दूध सतगुरु ने क्यों नही लिया ?

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी की है जब बाबा बूढ़न शाह जी ने दूध का कटोरा सतगुरु के आगे किया था तो सतगुरु ने क्यों नहीं लिया था आईए बढ़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का ये प्रसंग सरवन करते  हैं ।

उत्तर भारत की सबसे प्रसिद्ध दरगाह साईं बाबा बूढ़न शाह जी की दरगाह श्री कीरतपुर साहिब की पवित्र नगरी में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है साईं बाबा बूढ़न शाह जी का पिशोकड़ बगदाद शहर से था साईं जी इस धरती पर रब की इबादत के एक बढ़िया स्थान की भाल करते हुए जम्मू कश्मीर कुल्लू, मनाली वाले रास्ते से होते हुए श्री कीरतपुर साहिब के जंगलों में एक ऊंची पहाड़ी पर आकर डेरा लगाया, इतिहासकारों के अनुसार जब साईं बाबा बूढ़न शाह जी की उम्र 671 साल की हो चुकी थी कुदरत की तरफ से उनको एक शेर और एक कुत्ता और तीन बकरियां प्राप्त हुई थी, इन बकरियां को शेर और कुत्ता जंगलों में चुरा के लेकर आते थे चौथी उदासी वक्त श्री गुरु नानक देव जी कुल्लू मनाली की यात्रा करते हुए साईं बाबा बूढ़न शाह जी के डेरे पर पधारे उस वक्त भाई मरदाना जी और भाई बालाजी भी साथ थे मेहमानबाजी वझो साई जी ने बकरियों की दूध की चीपी भरकर श्री गुरु नानक देव जी को भेट किया, दूध की चीपी देख कर गुरुजी साई को बोलने लगे साई जी दूध हमे परवान है पर हमने अभी नहीं शकना यह दूध हम शेवे जामे में शंकेगें, साई जी कहने लगे मेरी तो पहले ही इतनी उम्र हो चुकी है शेवे जामे तक ना ही यह सुध रहनी है तो ना ही यह दूध रहना है यह बात सुनकर गुरु जी कहने लगे साई जी शेवे जामे तक यह सुध बुध और दूध इसी तरह ही रहेंगे इतना वचन करके गुरु जी, भाई भाले और भाई मरदाने को साथ लेकर अगली यात्रा पर चल पड़े साई जी ने श्री गुरु नानक देव जी की इमानत दूध को अपने धूहने को यह कहकर दबा दिया कि यह इमानत धन निरंकार की है उसको संभाल कर रखा तो अपने शेवे जामे की उड़ीक करने लगे, समय बीतता गया शेवे पातशाह जी का समय आ गया श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अपने बड़े सुपुत्र बाबा गुरदिता जी को आदेश दिया कि तुम हिमालय पहाड़ के तराही खेत्र में एक नगर बसाओ तो वहा अगले जीवन में निवास स्थान बनाओ बाबा गुरदिता जी ने पिता जी को बेनती की किरपा करके आप उस विशेष स्थान का चोन करके दे इस तरह पिता और पुत्र पहाड़ संबंधी खेत्र की तलहटी में विचरण करने लगे इस में गुरु जी ने अपने सुपुत्र गुरदिता जी को बताया हम पहले जामे में जब श्री गुरु नानक देव जी के रूप में यहां उपचार के लिए विचरण कर रहे थे तो उन दिनों यहां एक साई बूढ़न शाह निवास करते थे जिनको इबादत करने की बहुत इच्छा थी इसलिए वो लंबी उम्र की इच्छा रखते थे हमने उनको कहा था कि उनकी तरफ से भेट किया गया दुध का कटोरा शेवे जामे में स्वीकार करेंगे जब तुम्हारे स्वासो की पूंजी खत्म होने वाली होगी, अब वो ही समय आ गया है हम बूढ़न शाह फ़कीर की तरफ से भेट करके हम दुध का कटोरा स्वीकार करना है गुरु जी ने एक पहाड़ संबंधी ग्राम में पीर बूढ़न शह को खोज लिया, पीर बूढ़न शह ने गुरु जी का हार्दिक स्वागत किया और कहने लगे कि यह तो ठीक है कि आप श्री गुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी हो वो ही सब तेजसअब है पर किरपा करके मेरे को शाही ठाठ बाठ से हटकर उसी रूप में दर्शन दे तो गुरु जी ने बाबा गुरदिता जी को आदेश दिया कि वो तुरंत श्री गुरु नानक देव जी का ध्यान धर के ईशान करके परत आए बाबा गुरदिता जी ने ऐसा ही किया जब परत के साई बूढ़न शाह के सन्मुख हुए तो साई बूढ़न शाह को श्री गुरु नानक देव जी का रूप दिखाई दिया तो वो उनके चरणों में गिर गए और दुध का कटोरा भेट करते हुए कहने लगे किरपा करके आप मेरे जन्म मरण का चक्र खत्म कर दे श्री गुरु नानक देव जी के रूप में बाबा गुरदिता जी ने कहा आपकी इच्छा पूरी हुई, शेवे पातशाह धन श्री हरगोबिंद साहिब जी के सपुत्र बाबा गुरदिता जी ने श्री गुरु नानक देव जी के रूप में अपनी रखी इमानात दुध की मांग की, साई बाबा बूढ़न शाह जी तो उस समय साई जी की उम्र इतनी हो चुकी थी कि उनकी पलको के वाल भी धरती के साथ लग रहे थे साईं जी ने धूहने में रखा दूध 121 साल बाद निकाला वो दुध जैसे कच्चा रखा था उसी तरह कच्चा निकला तो वो दूध बाबा गुरदिता जी ने श्री गुरु नानक देव जी के रूप में शक्या यह करामाती दूध शकने के बाद बाबा गुरदिता जी ने गांव जिंदवड़ी में एक विरदा ब्राह्मणी की मरी हुई गऊ नीम की छीटी के साथ सच्चे जल के छीटे मार के गऊ को जीवित कर दिया जब यह बात उनके पिता श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी को पता लगी तो वह बाबा गुरदिता जी के साथ नाराज हो गए तो बाबा गुरदिता जी को कहने लगे कि एक म्यान में दो तलवारे नहीं रह सकती आज मरी हुई गऊ आपने जीवित की है कल जब लोगों को इस बारे पता चलेगा जहां पर मरे हुए लोगों के ढेर लग जाएंगे आप किस किस को जीवित करोगे अब इस जीवित हुई गऊ के बदले या दुनिया आपको छोड़नी पड़ेगी और या फिर मुझे क्योंकि इस तरह करके आपने कुदरत के बनाए हुए नियम के साथ छेड़छाड़ की है इतनी बात सुनकर बाबा गुरदिता जी अपने पिताजी को कहने लगे पिताजी गलती मेरे से हुई है सजा भी मुझे मिलनी चाहिए पिताजी का आशीर्वाद लेकर बाबा गुरदिता जी साईं बाबा बूढ़न शाह जी के पास आ गए तो साईं जी को कहने लगे साईं जी मेरे को आपका स्थान चाहिए मैंने अपना शरीर त्याग देना है आप अपना डेरा अगली पहाड़ी पर लगा लो इतनी बात सुनकर साईं जी कहने लगे बाबाजी यह जगह भी तुम्हारी और यह शरीर भी आपका परंतु कल संगतों ने मुझे ढूंढते यहां आएंगे तो यहीं पर माथा टेक कर वापस चले जाना मेरे पास अगली पहाड़ी पर कौन आएगा यह बात सुनकर बाबा गुरदिता जी कहने लगे साईं जी मेरा कर सो तेरा तेरा कर सो मेरा भाव कि मेरे और तुम्हारे घर में कोई अंतर नहीं है जो संगत आया करेंगी उन्हों की जात्रा आपके दरबार पर माथा टेक कर ही सफल होगी इतना वचन मानकर साईं जी शेर कुत्ता तो बकरियां साथ लेकर अगली पहाड़ी पर चले गए उन्हों के स्थान पर बाबा गुरदिता जी ने 1638 इस्वी में वो ही नीम की छीटी सराने गाड़ कर आप ज्योति जोत समा गए इसी स्थान पर गुरुद्वारा बाबा गुरदिता जी बना हुआ है दूसरी तरफ साईं जी भी अंतिम समय 802 साल 13 दिन की लंबी उम्र भोग के ज्योति ज्योत समा गए बताया जाता है कि शेर कुत्ता और बकरियां भी वही समा गए थे जब यह खबर शेवे पातशाह धन श्री हरगोबिंद साहिब जी को पता लगी तब उन्होंने बाबा गुरदिता जी का अंतिम संस्कार किया जब साईं बाबा बूढ़न शाह जी भी ज्योति ज्योत समा गए तो उनका का भी पूरे मुस्लिम रीति रिवाजो के अनुसार अपने हथी दफनाया और चादर भेंट की यह दोनों ही स्थान कुल्लू मनाली रोड पर श्री कीरतपुर साहिब पर स्थित है आज भी सभी धर्मों के लोग बड़ी श्रद्धा के साथ इन दोनों स्थानों पर नतमस्तक होते है पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी बाबा गुरदिता जी के ज्योति ज्योत समाय तो 13 दिन के बाद समा गए थे जो स्थान आज पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी की दरगाह से जाना जाता है जहां पर आजकल मेले लगते हैं इस स्थान पर बनी पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी की मजार खुद श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने बनाई थी और खुद उस ऊपर चादर चढ़ाई थी फिर इस स्थान की महिमा दर्शाते हुए गुरु जी ने अपने मुखारविंद तो यह शबद कहे कि बाबा गुरदिता जी के स्थान पर आने वाली संगतों की हाजिरी कबूल नहीं होगी जब तक वो संगत पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी की दरगाह पर हाज़िरी नही लगाएगी पीर बाबा बूढ़न शाह जी ने यहीं पर 775 साल तपस्या की वहां पर दूर-दूर से संगत सिज्जते करने आती हैं संगतों का भारी इकट्ठ रोजाना ही मेले जैसे दिखाई देता है इस तरह बाबा गुरदिता जी के स्थान पर भी संगत शरदा और प्यार के साथ रोजाना नतमस्तक होती है यहीं पर यह वाक्य ही नहीं जब कि इस स्थान को वर है कि धन धन बाबा गुरदिता जी दीन दुनिया का टीका जी जो वर मांगा सो वर दिया, ये याद रहे कि पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी की मजार यादगार दरबार और बाबा गुरदिता जी के ज्योति ज्योत समाने के स्थान गुरुद्वारा साहिब में कोई फर्क नहीं कोई तेर मेर नहीं जबकि साझी वालता के उपदेश की जीती जागती मिसाल है इस बात का प्रतीक साई जी की तरफ से बाबा गुरदिता जी को कहे शब्द है साई बाबा बूढ़न शाह जी जगह भी तेरी और मैं भी तेरा यह ही कारण है कि जो भी शरदालो बाबा गुरदिता जी के स्थान पर आते है वो साईं बाबा बूढ़न शाह जी के स्थान यादगार दरबार जरूर आकर हाजिरी लगाते हैं लंगर के भी शानदार प्रबंध है संगत लंगर शक के बागो बाग निहाल और तृप्त होकर जाती है पीर साईं बाबा बूढ़न शाह जी की शख्सियत,तपस्या और गुरु घर के साथ-साझ यह अपने आप में एक मिसाल है जिसको विसारा नहीं जा सकता जब की सजता करने की जरूरत है श्री कीरतपुर साहिब तो आनंदपुर साहिब हाइडल चैनल नहर के किनारे बाबा गुरदिता जी के गुरूद्वारा साहिब तो पूरब की तरफ से पीर बाबा बूढ़न शाह जी की याद में दरगाह बनी हुई है इस दरगाह पर हर संग्रात, होले मोहाले और नवंबर महीने सलाना उस मौके बड़ी गिनती में दूर और नजदीक से संगत पहुंचती है कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन के साथ सुखना सुखन पर फोड़े,फिनसिया और मौके की बीमारियां तो छुटकारा मिल जाता है ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


Post a Comment

0 Comments