हमारी असली पहचान आत्मा है, यह शरीर हमें काल ने किराये पर दिया है और वह दिन रात हमारे हर कर्म पर निगरानी कर रहा है निगाह टिकाये हुऐ है,
किराये की रक्कम हम पहले ही काल को दे चुके हैं, उसने हमारे कर्मों की लायकी देखकर यह शरीर दिया है, जैसे हम किसी किराये के मकान में रहते हो और साथ में रोजमर्रा के लिये कुछ रोजगार भी करते हैं, समझदार व्यक्ति तो वह होता है जो रोजगार करते हुए भी कुछ पूंजी जमा करे ताकि कोई जमीन लेकर उस पर अपना निजी मकान बनाये, आज हम भी यहां काल के इस किराये के मकान में रह रहे हैं, हमें भी चाहिये कि रोज नियमित रुप से सुमिरन भजन करके अपने असली घर सचखंड के लिये नाम की पूंजी जमा करें ताकि वहां हम अपने घर में रहने के अधिकारी बन पायें "धाम अपने चलो भाई पराये देस क्यों रहना"
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