Sant Vachan Sakhi : 4 भाइयों में से एक आलसी था, सबसे अमीर कैसे हो गया ?

 

साध संगत जी आज की साखी है कि जो मालिक की भक्ति में लगा होता है वह मालिक उसे किसी चीज की कमी नहीं आने देता, मालिक के भगत जो उस पर विश्वास रखते हैं उसके हुकम में रहते हैं उसकी बंदगी करते हैं मालिक उनके साथ क्या-क्या खेल करता है आइए आज के इस प्रसंग में सरवन करते हैं ।

एक परिवार में एक पिता के 4 पुत्र थे किरसाना कारोबार था उनके माता-पिता पूरे हो चुके थे शादीशुदा तो चारों ही थे लेकिन तीनों छोटे भाई तो दिन रात कारोबार करते रहते लेकिन बड़ा ऐश प्रसत कोई कारोबार नहीं करता था खर्च भी दूसरों से ज्यादा करता था इस लिए छोटे दुखी हो जाते थे सोचते थे कि इसको चौथा हिस्सा बांटकर देकर अलग कर देते हैं आप ही अपनी जरूरत के लिए करेगा ना करेगा तो भूखा ही मरेगा जब भूखा मरेगा तो आप ही करेगा कभी गीता की पोथी आगे रख लेता है कभी मंदिर जाकर बैठा ही रहता है तो सारा कारोबार हम ही करते रहते हैं खपते रहते हैं इस तरह सोचते थे उन्होंने अपने उस भाई को चौथा हिस्सा देकर अलग कर दिया उसका कारोबार धंधा वही कि गीता पढ़नी मंदिर जाना कथा सुननी धीरे धीरे घर की सारी पूंजी समाप्त हो रही थी आप ही ससुराल वालों ने वेचारी बेटी को एक भैंस जो दी हुई थी वो भी बेच दी टुंभ, छले सब बेच दिए पल्ले कुछ भी नहीं रहा, घरवाली ने कहना कि पति जी कुछ कारोबार भी कर लिया करो अब तो हम रोटी से भी आतुर हो रहे है तो उसने कहा कि भोलिए रब पर विश्वास कर वो आप ही देगा इसी तरह कुछ समय और बतीत हो गया तो पत्नी ने कहा कि अब मैंने कहां से पकाना है जो आप खाना है वही बच्चों को भी खवाना है तो यह कह कर की भलिए रब ऊपर विश्वास कर वो आप ही देगा यह कहकर घर से बाहर जंगल को निकल गया, पानी की भाल करता हुआ एक छपडी पर पहुंच गया पानी दूर था, हाथ नहीं पहुंचा बैठकर कीचड़ दूसरी तरफ करने लग गया तो क्या देखता है कि एक मटकी माया के साथ भरी हुई है उसने झट उस ऊपर मिटी डाल दी कि मैं रात को लेकर जाऊंगा कि सुबह का वक्त है सभी को पता चल जाएगा फिर सभी नगर में चर्चा होगी इस लिए घर आ गया, पत्नी को आकर बताया कि आज मैं पानी के किनारे माया के साथ भरी हुई मटकी देखकर आया हूं लेकर नही आया उस ऊपर मिटी डालकर ढक आया हूं तो पत्नी ने कहा कि तुम लेकर क्यों नहीं आए तो उसने उत्तर दिया कि वो प्रभु हमें आप ही देगा हमने लिया कर क्या करनी हैं उस वक्त उसकी पड़ोसी सुन रही थी उसने अपने पति को बताया कि मैंने यह बात पड़ोसी को करते सुना है हम आंख चुरा कर ले आते हैं तो दोनों ही जीव चले गए जब जाकर ढकन उठा कर देखा तो बीच में काला नाग फनियार बैठा था जब उसने फुंकारा मारा तो उन्होने डर के कारण मटकी ऊपर ढकन दे दिया तो कहा कि यह पड़ोसी ने हमे मारने का जतन ही किया होगा हमे ही सुनाया होगा कि यह

ढकन उठाएगे, साप लड़कर मर मुक जाएंगे लेकिन हम भी खड़े होकर उनको छपर से फेक देंगे हम तो बच गए है वो नही बच पाएंगे उन्होंने मटकी उठाई घर लिया कर रख ली कि रात को जब सभी सो जाएंगे तो इसे अंदर फेक देंगे यह काला खड़ापा नाग है यह उनको लड़ जाएगा तो वो सारे मर जाएंगे इनकी इस चालाकी खेलने का फल इनको ही मिल जाएगा तो उन्होने इस तरह किया वो तो माया ही थी जो नाग के रूप मे उन्हे दिखाई दे चुकी थी क्योंकि उनके कर्मो के अंदर नही थी जब वह पति पत्नी सुबह उठे उन्होने माया का ढेर देखा खुशियां का सूरज चढ़ गया गमिया, चिंता, हनेरे दूर हो गए, छपरो की जगह पर सुंदर मकान बन गए सो साध संगत जी यह है प्रभु ऊपर भरोसा रखने का शुभ फल उस पर भरोसा रखने की बात है प्रभु सहाई होगा सो सत्संगी जनों प्रभु की वडियाई अथाह है कथी नही जा सकती जो प्रभु भक्ती में लगा रहता है उसको किसी पदार्थ का घाटा नही रहता इस जीवन में प्रभु सिमरन ही सार वस्तु है सिमरन करो तो सच्चा आनंद मानो जो सतगुरु से प्राप्त होता है जो वक्त जिंदगी का प्रभु सिमरन से खाली निकल गया है वह किसी लेखे में नहीं आता, व्यर्थ है, पता नहीं है कि कब बुलावा आ जाना है मुसाफिर जब किसी लंबी मंजिल की तैयारी करता है तो कई तरह के समान राह के खर्च त्यार करता है अंत परलोक के सफर के पांधी बनना है तो उस पंध के सफर के लिए भी कुछ सोचना भी जरूरी है बहुत कंठनाईया है सख्तायिया है तपशा है कुछ प्रबंध करना पड़ेगा गुरुओ की बक्शिश चाहिए, नाम सिमरना चाहिए नाम साथी होवेगा तो हर जगह पर रक्षा होगी, जमदूतो से बचना है तपशो से बचना है अगनकुंड से बचना है नरक की खाही से बचकर निकलना है खंडे की तीखी धार जैसी वाट से गुजरना है दूतो से बचना है बहुत कंठनाईया है गिनकर बताई नही जा सकती, हर सख्ताई पर नाम ने ही रक्षा करनी है, नाम ही साथी बनेगा, नही तो जमा के हाथ बड़े सख्त और मजबूत है जिन हाथों में इसने आना है चित की आसा को मिटाना है चित की आसा एक देवड़ी है जो इस अंदर बज्ज जाता है आजाद नही हो सकता, चित ही संसारी भोगा की आसा रखता है जो आज तक पूरी नही हो रही है एक आसा चित में करोगे तो उस मे से ही सेखड़े आसा और बढ़ जाएगी इसलिए जेकर सुख चाहते हो तो आसा का त्याग करके प्रभु का सिमरन करना चाहिए यह जितनी भी इच्छा है सभी दुख रूप है सो साध संगत जी अपने मन से इच्छा, चाह, लोभ का त्याग करो जब तक इनका त्याग नही होवेगा तब तक मन इकागर नही होवेगा, रावण के पास क्या नहीं था सोने की लंका थी एक लाख पुत्र थे स्वा लाख नाती पौत्रा थे भाई सूरबीर थे सोने का तख्त था सोने का छत्रर सिर ऊपर झुल रहा था पांच हजार आदूदरी जैसी सुंदर मनमोहनिया स्त्रीयां थी किसी पदार्थ की कोई कमी नहीं थी इंद्र देवता राजा और अग्नि देवता पवन देवता नौकरों जैसे सेवादार थे पर एक सीता की चाह पैदा हुई तो सब कुछ तबाह कर लिया कोई पीछे उसका दीवा जलाने वाला नहीं रहा, भविष्यन वही रावण के हाथों से दुखी हुआ राम जी की शरण में आ गया क्योंकि वह भक्ति भाव वाला अद्वैत ईरखा भाव से रहित था सो साध संगत जी रहित होना पड़ता है सो हे सत्संगी जनों अपने मन को निरवैर करो जब तक यह मन दोषणो से रहित नही होता तब तक मन स्थिर नहीं हो सकता इस मन को बहुत विकार दबाई रखते हैं कोई पेश नहीं जाने देते सोच,समझ,अकल मसराना करी रखते है प्रभु की तरफ ध्यान नहीं लगने देते जबकि इनका त्याग ही मन की स्थिरता और एकाग्रता है मन को काबू में करने के लिए मन का सुधार ही करना पड़ता है जिस तरह कल का रोज चला गया है आज का आ गया है आज का भी चला जाएगा आगे और तैयार खड़ा है अंत समय नजदीक आ रहा है परमात्मा को प्राप्त करने का तू वक्त सोच, यह ही है जो बीतता जा रहा है जब बीत गया मुड़ हाथ नहीं आएगा सो साध संगत जी हमें समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए सेवा और सिमरन करके अपना जीवन सफल करना चाहिए, साध संगत जी यह है उस प्रभु पर भरोसा रखने का फल जो प्रभु पर भरोसा कर लेता है उसके सारे कार्य सफल होते रहते हैं ।

साध संगत जी इसी के साथ हम आपसे इजाजत लेते हैं आगे मिलेंगे एक नई साखी के साथ, अगर आपको ये साखी अच्छी लगी हो तो इसे और संगत के साथ शेयर जरुर कीजिए, ताकि यह संदेश गुरु के हर प्रेमी सत्संगी के पास पहुंच सकें और अगर आप साखियां, सत्संग और रूहानियत से जुड़ी बातें पढ़ना पसंद करते है तो आप नीचे E-Mail डालकर इस Website को Subscribe कर लीजिए, ताकि हर नई साखी की Notification आप तक पहुंच सके । 

By Sant Vachan


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