जैसे माता पिता जन्म से पहले से ही बच्चे की पल पल सम्भाल ओर सेवा करते हैं
बड़ा होने पर वही बच्चा माता पिता की पूरी सेवा करे तो भी वह सेवा का ऋण नहीं चुका सकता, इसी प्रकार सतगुरु पहले सेवक की पल पल सम्भाल करते हैं , शिक्षा दीक्षा देकर उसे जागृत करते हैं , बाद में सेवक कितनी भी सेवा करता है ,तब भी वह सतगुरु के उपकारों का ऋण इस जन्म में तो क्या कई जन्मों में भी नहीं चुका सकता ।
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