कौन कहता है कि किस्मत लिखी होती है मेरा मुर्शिद तो कहता है कि भाग्य की पुरानी धारणा कहती है कि लिखा हुआ है और तुम्हारा भाग्य किसी और ने लिखा है
तुमने नही, लेकिन मैं तुमसे कहता चाहता हूं कि भाग्य लिखा हुआ नही है रोज़ रोज़ लिखना पड़ता है और किसी और के द्वारा नही, तुम्हारे ही हाथों से लिखा जाता है ये हो सकता है कि इतनी अचेतन अवस्था में लिख जाते हो, लिख जाते हो तभी पता चलता है, तुम अपने को रंगे हाथ नही पकड़ पाते, तुम्हारे होश की कमी है लेकिन कोई और तुम्हारा भाग्य नही लिखता है अगर कोइ और तुम्हारा भाग्य लिखता है तो सब धर्म व्यर्थ, फिर तुम क्या करोगे फिर तो तुम असहाय मशली की तरह हो, फेंक दिया मरुस्थल में तो मरुस्थल में तड़फोगे, किसी ने डाल दिया जल के सरोवर में तो ठीक, फिर तो तुम दूसरों के हाथ का खिलौना हो, कठपुतली हो, फिर तो तुम मुक्त होना भी चाहो तो कैसे हो सकोगे ।
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