Sant Vachan Sakhi । जब राजा जनक ने सुंदर इस्त्रियां ऋषि सुखदेव के सामने भेजी तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी है कि परमात्मा अपने भक्तों
की कैसे परीक्षा लेता है क्या-क्या खेल रचता है आइए आज
के प्रसंग में इसे जानने की कोशिश करते हैं ।


"बारा बरे घरबास बस जमते ही सुख ली उदासी माया मे अतीत हुए मन हठ बुध न बंद खलासी" सुखदेव का शब्दी अर्थ है वैसे सुखदेव जी व्यास जी के पुत्र थे इनके जन्म की अनोखी कथा इस प्रकार है पार्वती और शिव जी महाराज जी का आपस में प्यार था, 1 दिन कैलाश पर्वत ऊपर अकेले बैठे थे पार्वती ने दोनों हाथ जोड़कर अर्ज की हे प्रभु जी आप जी की माया ऐसी है इस्त्री बहुत शेती बूढ़ी हो जाती है जब वह बूढ़ी हो जाए तो वह जीवन सुख आनंद प्राप्त नहीं कर सकती तुम्हारी और मेरी अटूट प्रीत है मुझे भैय है कि आप त्रिकाल एक समान रहने वाले हो पर मेरे पर जरूर बुढ़ापा आ जाएगा इस वास्ते मैं विनती करती हूं कि मुझे अमर कथा सुना कर अमर कर दो, मेरे ऊपर बड़ेपा असर ना करें सदा जवान रहा और आपके अंग संग रहा यह दासी की प्रार्थना है शिवजी महाराज अपनी मौज में प्रसन्न चित्त राज्य थे उन्होंने उत्तर दिया ऐसा ही होगा तो अमर कथा सुनाने लग पड़े शिवजी अमर कहानी सुनाते गए उस समय और तो कोई पास नहीं था सिर्फ तोता सबबी बैठा था वो कथा सुनता रहा शिवजी चाहते थे कि और कोई कथा ना सुने ताकि प्रभु की माया अथवा रचना में फर्क ना पड़े, मरना जमना कायम रहे पर तोता कथा सुनी गया थोड़ी कथा सुनकर पार्वती सो गई उसके सोने का शिवजी ने ख्याल नहीं किया पार्वती की जगह तोता हुगारा देता रहा जब कथा समाप्त हुई तो शिवजी हैरान थे कि पार्वती तो सोई हुई थी फिर हुगारा कौन देता रहा शिवजी ने देखा तो पता लगा कथा तो तोते ने सुन ली थी शिवजी तोते को मारने के लिए उठ खड़े हुए तोता उड़कर गंगा किनारे चला गया आगे-आगे तोता तो पीछे पीछे शिवजी महाराज थे तोता ना मरा तो उड़ता उड़ता ब्यास जी के आश्रम में आ गया ब्यास ऋषि की धर्म पत्नी रितु स्नान करके पवित्र थी अमर कथा सुनकर तोता अमर और त्रिकाल दर्शी हो चुका था उसने शिवजी की क्रोपी से बचने के लिए हवा का रूप धारण किया और ब्यास की पत्नी के गर्भ में वास कर लिया यह देखकर शिव जी ने आश्रम के आगे धरना मार लिया जब तोता बच्चे के रूप में बाहर आएगा तो उसको मार दूंगा पर तोता मात गर्भ में 12 साल अंदर ही भक्ति करता रहा 12 साल बीत गए ब्यास की पत्नी बहुत तंग हुई उसने अपने पति और परमात्मा के आगे विनती की तरला लिया कि उसके अंग सोखे कर दिए जाएं परमात्मा को दया आई सुखदेव भक्ति कर रहा था भक्ति करते हुए देखकर परमात्मा ने उसे कहा कि हे सुखदेव कि अब तू बाहर आ जा शिवजी तुम्हें मार नहीं सकता सुखदेव ने कहा हे प्रभु जी अगर मैं बाहर आ गया तो माया का परशावा पड़ेगा उस परशावे ने मुझे भजन नहीं करने देना शिवजी ने भी हठ नहीं छोड़ना उस समय परमात्मा ने तामाख्या की यह नहीं हो सकता कि तुम सदा गर्भ में रहो तुम्हारी माता तंग है तुम्हारे तक माया समाधि लगाने पर असर नहीं करेगी शिवजी भी चले जाएंगे एकदम बाहर आ जाओ ऐसे परमात्मा के हुक्म के अनुसार सुखदेव ने जन्म लिया तो जन्म लेते सार ही जंगल की तरफ चल पड़े जंगल में जाकर समाधि लगा ली वह कई साल तपस्या करते रहे पर किसी को गुरु धारण नहीं किया गुरु धारण किए बिना मुक्ति नहीं होती तो ना ही मन बस में रहता है कई साल तप करते हुए बीत गए सिर पर लंबी जटाएं हो गई तो शरीर भी बढ़ गया उसने अन, जल मुंह नहीं लगाया निर आहार रहा उसकी लंबी जटाओं में पंछियों ने आलना डाल लिया एक पंछियों का ऐसा जोड़ा आया जोकि अनुभव प्रकाश वाला था एक पंछी ने दूसरे को कहा हमें आलना नहीं पाना चाहिए था दूसरे ने कहा क्यों कि क्या विघ्न है पहले ने कहा यह ऋषि तपस्या ज़रूर करता है पर है निगुरा, निगुरा पुरुष के साथ रहना पाप होता है हो सकता है इस प्रभाव करके हम नर्क में चले जाएं बहुत भूल की है दूसरा बोला चलो फिर उड़ चलिए जहां रहना ठीक नहीं यू सलाह करके वह पंछी उड़ गए मुड़कर ना आए त्रिकालदर्शी सुखदेव को पता लग गया उसने समाधि खोल ली तो जंगल में से उठकर अपने धर्म पिता ब्यास जी के आश्रम में पहुंच गया सुखदेव ने कहा हे पिताजी पंछियों ने कहा है कि मैं निगूरा हां मुझे कोई गुरु बताओ जिसको मैं धारण करूं पुत्र की बात सुनकर ब्यास जी कुछ सोच में पड़े अंत उन्होंने अपनी राय यू प्रगट की हे पुत्र राजा जनक के बिना तेरा कोई और गुरु नहीं हो सकता उसको गुरु धारण कर ले उसके राज में पहुंच जा बाप का हुक्म सुनकर सुखदेव राजा जनक के दरबार में पहुंच गया जब राज महल में गया तो कोतक देखकर हैरान हो गया वो कोतक यह था कि राजा जनक राज महल में अनोखी दशा में खड़ा था उसका एक पैर तो कहाड़े में था तो दूसरा सुंदर स्त्री की नंगी छाती ऊपर रखा हुआ था यह कोतक था इसको सुखदेव ना समझा वह हैरान हुआ खड़ा रहा तो मन में ख्याल करता रहा यह राजा किस तरह मेरा गुरु बन सकता है उस समय एक और कोतक हुआ वो यह था कि राजदूत ने आकर स्नेहा दिया कि शहर में आग लग गई है बहुत ही भयानक आग है धीरे धीरे खबर आई कि शहर सड़ गया जो आग है वो मुख दरवाजे तक पहुंच रही है सुखदेव मुनि पाउडा में तुंबी और कापीन टांग आया था उसको ख्याल आया कि उसकी तुंबी और कापीन सड़ कर स्वा ना हो जाए वह दौड़ कर बाहर को जाने लगा तो राजा जनक ने उसको आवाज़ मारी वह खड़ा हो गया राजा जनक गुस्से से बोला वाह ओ ऋषि पुत्र 12 साल मां के पेट में भगति की 24 साल समाधि लगाई 36 साल बीतने के बाद भी मोह माया का त्याग नही हो सका, क्या करता रहा शहर सड़े की चिंता नहीं एक तुंबी कपीन की चिंता है तुझे कि यह चीजे ढूंढी नही जा सकती, जा दौड़ जा तेरे जैसे मोह माया के दासों को चेला नही बना सकता यह कहकर राजा जनक ने उसको अपने महलों से बार निकाल दिया महलों से बार होकर सुखदेव क्रोध और हंकार का शिकार हो गया, माया ने उस ऊपर काबू पा लिया, कम बोलता हुआ अपने बाप के पास पहुंचा उसको सारी वार्ता सुनाई तो ब्यास ने कहा हे सुखदेव यह सब झूठ है उसने तुम्हारी परीक्षा के लिए यह कोतक किया ना शहर को आग लगी और ना ही कोई सड़ा सिर्फ तेरी परीक्षा लेनी थी परीक्षा में पुत्र तुम रह गए सुखदेव ने हाथ जोड़कर कहा फिर पिताजी मैं क्या करूं अब तो मैं भी शर्मिंदा हूं ब्यास ने कहा बेटा यह तो ही माया का असर है एक बाप बच्चे को गुस्से होकर घर से बार निकाल देता है वह गुस्सा घड़ी पल ली होता है मुड़ जब गुस्सा उतरता है तो बाप बच्चे को घर बुला लेता है तो बच्चा घर आ जाता है बाप बच्चे का सधीवी त्याग नहीं होता इसी तरह गुरु चेले का संबंध है जाओ मुड़ उसके पास फिर जाओ सुखदेव ने कहा जाऊं कैसे, कोई राह बताओ  पुत्र कि यह बात सुनकर ब्यास ने कहा ऐसे कर राजे के महल के पास चला जा महल के पश्चिम तरफ़ जा खड़ा हो वहा एक चरोखा है उस चरोखें में से राजा जनक झूठे पतल फेंकेगा जो साधाओ को भोजन खवाते होंगे, चरोखे के नीचे खड़े को आप ही देख लेगा डरना नहीं, शर्म और किरहना नहीं करनी चरोखे नीचे खड़े रहना चाहें झूठ ऊपर गिरे ऐसा करने से ही तुम्हें गुरु दर्शन होंगे बाप से शिक्षा लेकर सुखदेव आश्रम से चल पड़ा वह बहुत तेजी से चलता हुआ राजा जनक के मेहलो में पहुंचा, बताएं चरोखे नीचे खड़ा हो गया उसने अपने आप का त्याग कर लिया ऐसे अनुभव किया जैसे उस में सोच ज्ञान या चेतनता नही थी वो एक पत्थर का अचेत बुत था जिस ऊपर राजा जनक झूठे पतल फेंकता गया जिस तरह सतगुरु रामदास जी ने अपनी बानी में भी फरमाया है "जात नजात देख मत भरमो सुख जनक पंगी लाए ध्यावे भो झूठन झूठ पई सिर ऊपर खिन मनुआ तिल ना डलावे भो" सतगुरु जी फरमाते हैं कि हे गुर सीखो उच्च और नीच जाति जा कुल का ख्याल छोड़ो यह तो एक भ्रम है असल में शरीर करके और आत्मा करके ऊंचे और नीचे एक ही सम्मान हैं भक्ति की दुनिया तो वैसे ही अनोखी है सुखदेव खड़ा रहा राजा जनक उस ऊपर झूठ फेंकते गए इस तरह 12 साल निकल गए 1 दिन राजा जनक को तरस आ ही गया उसने अपने पास बुलाया उसको स्नान कराया यहीं पर बात खत्म नही हुई राजे जनक ने और इम्तेहान लेना चाहा वो इम्तिहान यह कि सुखदेव ऊपर नारी की सुंदरता असर करती है या नहीं उसने तेल की थाली भरी अढोल सुखदेव के हाथ ऊपर रख दी अब थाली ऐसी थी कि जेकर उस ऊपर ध्यान ना रखा जाता तो वो उल्लर कर गिर जानी थी ध्यान रखना और चलते जाना हे ऋषि पुत्र यह थाली ना उलरे और ना डुले सारे शहर की परिक्रमा करके आओ देखना रास्ते में कोई ठेड़ा ना लगे हाथ ऊपर थाली चुक कर सुखदेव चल पड़ा रास्ते मे राग रंग हो रहे थे स्त्रियां सोने लिबास और हार शिगार करके मंगला चार कर रही थी कई जगह पर गीत गाए जा रहे थे और कहीं पर नाच हो रहा था ऋषि पुत्र को देखने के लिए भी अनेकों नारी आ गई उन्होंने देखा पर सुखदेव ने किसी तरफ नहीं देखा वह तेल की थाली में से अपना चेहरा देखता हुआ चला गया, महल पहुंच गया रता ना डुला राजा जनक बहुत प्रसन्न हुआ तो उसने सुखदेव को अपना चेला बना लिया सुखदेव ऐसा भगत हुआ कि जिस ऊपर माया ने रता भी असर ना किया वो जन्म से सिद्ध था मनुष्य को माया ही बांधती है ये माया असर ना करें तो जीव कहीं पर टिककर नहीं बैठता वह चलता फिरता रहता है ऐसा ही मुनि सुखदेव का हाल था वह लगातार ही चलता रहता ऐसा ब्रह्मज्ञानी हो गया था कि मिट्टी और सोने पुरुष और नारी में कोई भेद नहीं रहा संत मंडलियों के साथ विचरता रहता उसने काम, क्रोध, हंकार, लालच और मोह आदि को मार लिया था एक बार कहते हैं प्रभु ने उसकी परीक्षा लेनी चाही संत मंडली के साथ विचरता हुआ गंगा के किनारे पहुंचा आगे स्त्रियां स्नान कर रही थी इसने ख्याल नहीं किया आप एक तरफ स्नान करने लग गया स्नान करके चलने लगा तो एक अति सुंदर और जवान स्त्री नग्न अवस्था में नाच करती हुई आई उनके आगे होकर नाचने लग गई ऐसे हाव भाव दिखाएं जो मन मोहने थे पर सुखदेव के मन और नेत्रों ऊपर कोई असर नहीं हुआ वो अडोल रहे और आगे चले गए ध्यान ही नहीं किया इस तरह वो स्त्री शर्मिंदी हो गई उसके बाद परमात्मा ने सुखदेव मुनि की कोई भी परीक्षा नहीं ली ।

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By Sant Vachan


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