मनुष्य के कर्म चाहे अच्छे हो चाहे बुरे, उसे मन और माया के देश में जकड़े रखते हैं ।
कर्मों का यह श्रृंखला कभी टूटती नहीं और हर कर्म के साथ इसमें नई कडियाँ जुड़ती ही जाती है । इस प्रकार मनुष्य अपने ही द्वारा बनाए गए बंधनों से इस सुख-दु:ख के संसार में बंधा रहता है । कबीर साहिब कहते हैं:
"आपै बरै करम की रसनी, आपन गर कै फाँसा "।।
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