Guru Nanak Sakhi । सतगुरु नानक का दिया हुआ पत्थर जब सुनार ने परखा, तो क्या हुआ !

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी और भाई मरदाना जी की है जब सतगुरु नानक ने भाई मरदाना जी को एक सुनार के पास भेजा तो क्या हुआ, आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग सरवन करते हैं ।

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु नानक देव जी महाराज जी के समय की है जब सतगुरु नानक भाई मरदाना जी के साथ एक वृक्ष के नीचे बैठे करतार के कीर्तन में लीन थे तब भाई मरदाना जी ने सतगुरु नानक से पूछा की गुरुजी आप जी कहते हो कि ईश्वर कण कण में है हर जगह मौजूद है तो अगर वह हर जगह मौजूद है तो फिर हमें दिखाई क्यों नहीं देता तो सतगुरु ने जवाब देते हुए कहा की हे मरदाना अगर हमें किसी दूर की वस्तु को देखना हो तो पूरा ध्यान उस पर केंद्रित करना पड़ता है तब जाकर वह वस्तु हमें दिखाई पड़ती है और अच्छे से दिखाई पड़ती है इसलिए ईश्वर के दर्शन करने के लिए भी ध्यान को केंद्रित करना होगा यह जो हमारा ध्यान जगह-जगह भटका हुआ है इसको एक जगह लाना होगा फिर जाकर उसके दर्शन होंगे तो यह सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि गुरु जी मैंने बहुत कोशिश की है लेकिन बात नहीं बनती मैं ध्यान को केंद्रित करने की कोशिश करता हूं लेकिन नहीं हो पाता, आप तो गुरु हो गुरु के भी गुरु हो आप ही मुझे आशीर्वाद दें जिससे कि मेरी बात बन जाए और मुझे उस ईश्वर के दर्शन हो तो सतगुरु भाई मरदाना जी को कहने लगे की हे भाई मरदाना तूने ऐसे लोग देखे हैं जो तरबूज को देखकर और सुंगकर ही बता देते हैं कि यह अंदर से मीठा और लाल होगा या फिर नहीं, मर्दाना तुम भी बहुत होशियार हो ध्यान को केंद्रित करने की कोशिश करो तुम्हें भी ईश्वर का एहसास जरूर होगा तो ये सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि गुरु जी आप तो जानते हो कि मैं दिन-रात कीर्तन करता हूं आप जी के साथ उस करतार के गुण गाता हूं लेकिन फिर भी मुझे ईश्वर का एहसास नहीं हो रहा उसका अनुभव नहीं हो रहा तो यह सुनकर गुरु जी बोले की हे भाई मरदाना तुम जब रबाब बजाते हो तो जिस शब्द का गायन होता है उसी के हिसाब से तुम धुन निकालते हो और अगर कोई और भी रबाब बजा रहा हो तो वह कौन सी सरगम बजा रहा है तुम यह भी बता देते हो तुम्हें पता है कि तुम यह कैसे कर लेते हो तो यह सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि सतगुरु इसमें कौन सी बड़ी बात है यह तो मेरा अनुभव है जिसकी वजह से मैं यह बता पाता हूं तो सद्गुरु कहने लगे कि मर्दाना तुम ठीक कहते हो कि तुम्हें अनुभव है रबाब की कौन सी तार बजाने से कौन सा संगीत निकलेगा इसका तुम्हे अनुभव है लेकिन जो तुम्हारे गले से सरगम निकलती है उसका क्या ! गले में तो कोई तार नहीं है फिर तुम ही क्यों सही सरगम गा पाते हो तो सतगुरु कहने लगे कि मर्दाना यह तुम इसलिए कर पाते हो क्योंकि तुम्हें अनुभव है इसी तरह जब तुम सच्चे मन से, दिल से उस ईश्वर का नाम लोगे तो ईश्वर का नाम तुम्हारी चेतन में बैठ जाएगा तो यह सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि गुरु जी संगीत तो मेरे चेतन में आ चुका है लेकिन ईश्वर नहीं ! ईश्वर कैसे मेरे चेतन में आएगा तो यह सुनकर सतगुरु कहने लगे कि मर्दाना अब रात बहुत हो चुकी है अब तुम सो जाओ इसका जवाब तुम्हें कल मिलेगा तो जब सुबह हुई तो सतगुरु ने एक पत्थर भाई मर्दाना को दिया और भाई मर्दाना को कहा कि जाओ इसे लेकर जाओ और पास के गांव में से इसे देकर कुछ भोजन ले आओ तो पास ही एक सुनार की दुकान थी जिसका नाम सालस राय था उसका नौकर उसे कहता है कि सेठ साहब मैं इतने सालों से आपके साथ काम कर रहा हूं आप ये कैसे जान लेते हो कि कौन सा पत्थर कीमती है और कौन सा नहीं आप उसे देखकर ही उसकी कीमत का अंदाजा कैसे लगा लेते हो मैं भी आपके साथ ही काम करता हूं मुझसे तो यह नहीं हो पाता लेकिन आप उसी वक्त उसको देख कर उसकी कीमत बता देते हो क्या मैं भी ऐसा कर सकता हूं तो सालस राय ने कहा कि इसमें कौन सी बड़ी बात है यह चीजें तो अनुभव के साथ आती है अगर तुम भी ये सब सीखना चाहते हो तो सबसे पहले काम पर ध्यान केंद्रित करो यहां जो जेवर है उनको ध्यान से देखो धीरे धीरे तुम्हें भी यह सब आने लग जाएगा तू इतनी देर में दूसरा नौकर आया और कहने लगा कि मालिक बाहर कोई परदेसी आया है और वह आपसे मिलना चाहता है तो सालस राय, उस नौकर को लेकर भाई मरदाना जी से मिलने गए और सालस राय ने भाई मरदाना जी से कहा कि मेरे लिए क्या हुक्म है आप क्या खरीदना चाहते हैं तो भाई मरदाना जी ने कहा कि मैं यहां पर कुछ खरीदने नहीं आया मैं तो इसे देकर कुछ पैसे लेने आया हूं जिससे कि अपने लिए और अपने गुरु के लिए भोजन खरीद सकूं तो यह सुनकर सालस राय ने कहा कि कृपया मुझे दिखाएं कि आप क्या बेचना चाहते हैं तो जैसे ही भाई मरदाना जी ने मुट्ठी खोली और वह पत्थर सालास राय को दिखाया तो सालास राय हैरान रह गया और उसने एक सौ रुपए भाई मरदाना जी को दिए और कहा कि आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आप यह एक ₹100 रख लीजिए और अपना यह कीमती पत्थर भी साथ ले जाइए तो यह सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि मैं यह कैसे लेकर जा सकता हूं आपने ₹100 इसकी कीमत मुझे दी है तो सालस राय ने कहा कि नहीं नहीं मैंने इसकी कीमत आपको नहीं दी, मैंने तो बलिक इसे देखने की कीमत आपको दी है कितना कीमती पत्थर आपने मुझे दिखाया है जिसका कोई मोल नहीं है और सालस राय कहने लगा कि मेरे गुरु जी ने मुझे कहा था कि जब भी कोई कीमती चीज देखो तो उसे देखने का भी मोल दिखाने वाले को देना चाहिए तो कृपया आप यह एक ₹100 रख लीजिए तो उसी समय नौकर ने कहा कि सेठ साहब मैं भी देखना चाहता हूं कि यह कीमती चीज क्या है तो उसे देखते ही नौकर भी कहने लगा कि मैंने आज तक इतना बेशकीमती पत्थर नहीं देखा, सच में ये बहुत कीमती है इसका कोई मोल नहीं है मैंने ऐसा जेवर कभी नहीं देखा तो ये सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे ओ भले लोगों जब मेरे गुरु जी ने मुझे यह पत्थर दिया था तब मुझे ऐसा लग रहा था कि इस पत्थर को मैं किसी अमीर को दे दूंगा और उसका बच्चा इससे खेल लेगा और हमारी दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो जाएगा तो इसलिए सबसे पहले मैं सब्जी वाले के पास गया मैंने उसको यह पत्थर दिखाया और उसने देखते सार ही कहा कि मैं इस पत्थर का क्या करूंगा, चल ठीक है यह पत्थर मुझे दे दे मेरे बच्चे इसके साथ खेल लेंगे लेकिन मैं तुझे इस पत्थर के बदले सिर्फ एक मूली दे सकता हूं और कुछ ज्यादा नहीं और उसके बाद भाई मरदाना जी कहने लगे कि मैं मिठाई वाले के पास गया और उसको यह पत्थर दिखाया और उसने कहा कि मैं इसके बदले में कुछ मिठाईयां तुम्हें दे सकता हूं लेकिन ज्यादा नहीं, अगर लेनी हो तो ठीक नहीं तो कृपया यहां से जाएं तो भाई मरदाना जी कहने लगे कि फिर मैं कपड़े वाले के पास गया तो कपड़े वाले ने कहा कि मैं इस पत्थर का क्या करूंगा लेकिन ठीक है मेरे बच्चे इसके साथ खेल लेंगे लेकिन मैं तुम्हें इसके बदले सिर्फ एक कपड़े का टुकड़ा दे सकता हूं तो यह सुनकर भाई मरदाना जी कहने लगे कि मैं कपड़े के टुकड़े का क्या करूंगा मुझे तो पैसे चाहिए तो कपड़े वाले ने कहा कि पैसे मैं नहीं दे सकता अगर कपड़े का टुकड़ा लेना हो तो ठीक नहीं तो यहां से जाइए तो उसके बाद भाई मरदाना जी कहने लगे कि मैं आपके पास आया और आपने इस पत्थर को देखने के ही मुझे ₹100 दे दिए लेकिन मुझे तो सिर्फ भोजन चाहिए था और भोजन जितने पैसे चाहिए थे तो सालस राय ने कहा कि मैं आपके लिए भोजन का भी इंतजाम करवा देता हूं और कृपया यह एक ₹100 भी रख लीजिए तो उसके बाद भाई मरदाना जी जब सतगुरु के पास गए तो वह पत्थर और 1 सो रुपए सतगुरु के आगे रखे और भाई मरदाना जी सतगुरु नानक से कहने लगे कि गुरु जी जिसको मैंने एक साधारण पत्थर समझा था यह तो एक कीमती पत्थर निकला एक बड़े सुनार ने मुझे इसके देखने के ही एक ₹100 दे दिए हैं और यह भी कहा कि यह तो बेशकीमती है इसका कोई मोल नहीं इसकी कीमत नहीं लगाई जा सकती तो ये सुनकर गुरुजी बोले कि हे मर्दाना यह तो देखने की दृष्टि पर निर्भर करता है जिसके पास देखने की दृष्टि ही नहीं वह इसकी क्या कीमत लगाएगा और सतगुरु कहने लगे की हे भाई मर्दाना अब तुम ही देख लो जिसके पास देखने की दृष्टि थी उसने इसको देखने के ही एक ₹100 दे दिए और जिसके पास देखने की दृष्टि ही नहीं थी उन्होने कपड़े सब्जी और मिठाई देने से भी इनकार कर दिया इसी तरह जब तुम ईश्वर को देखने की दृष्टि पा लोगे तो तुम्हें भी ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे ।

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By Sant Vachan


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