Sant Vachan Sakhi : जब भगत नामदेव जी के घर को आग लग गई तो क्या हुआ ?

 

साध संगत जी आज की साखी भगत नामदेव जी की है जब भगत नामदेव जी के घर को आग लग गई और भगत जी मालिक की बंदगी में लीन थे तो उसके बाद क्या-क्या कौतक हुए, आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।


पुडलकुर के पास चंद्र भगा नदी चलती है उस नदी के किनारे नामदेव जी जा बैठते तो ईश्वर भक्ति में जुड़ जाते अपने मालिक प्यारे परमात्मा को याद करते, 1 दिन लिव जोड़ी बैठे थे तो किसी ने जाकर कहा हे नामदेव जी तुम्हारे घर को आग लग गई है सारा घर सड़ गया है जल्दी चलो ! नामदेव जी ने उत्तर दिया, आग लग गई आग लगाई लगाने वाले ने, मेरा घर कैसे, यह तो उसका था उसने आप ही साड़ दिया, मैं क्या कहूं फिर भी ज़ोर देने पर भगत जी उठ कर आए तो आकर सड़ते खखों के घर को देखते रहे मन में ऐसा ख्याल आया कि लोगों ने जो घर की चीज़े बचा कर रखी थी उनको उठा उठा कर आग में फेंकने लग गए तो जुबान से कहीं जाने लगे, हे प्रभु यह जो चीजें लोगों ने बचाई हैं इनको को भी साथ ले जाएं  मैंने क्या करनी है ये घर नहीं रहा तो चीजें मैं कहां रख सकता हूं, भगत जी का यह कोतक देखकर लोग बहुत हैरान हुए और उन्हें रोकने का जतन करने लगे पर भगत जी ना रुके वह चीजों को फेकते गए भगत नामदेव जी को परमात्मा के पर्तख दर्शन हो रहे थे परमात्मा ने कहा हे नामदेव इस आग में भी तुझे मेरा स्वरूप ही दिख रहा है नामदेव जी ने कहा हे प्रभु यह आग भी आप की बनाई है आप ही साड़ रहे हो तो आप जी का ही सारा खेल है मेरा कुछ नहीं, सब कुछ आपका है इस तरह भगत भगवान के बीच बात होती रही भगत जी की चीजें सभी नहीं सडी थी कि आग अपने आप मट्ठी हो गई एकदम बुझ गई तो भगत जी एक रात एक वृक्ष नीचे सोएं सुबह हुई तो लोग देखकर हैरान हुए कि नामदेव जी का घर तो नया बना हुआ था तो रातों-रात ही घर बन गया ऐसी छन बनी कि जैसी किसी ने देखी ही नहीं थी बड़ी सफाई के साथ बना था और लकड़ियां बहुत ही प्रेम से तच तच कर लगाई थी सबसे अनोखी बात यह थी कि घर का सारा सामान नया आ गया था सड़े का कोई नामो निशान ना रहा लोगों ने जैसे आकर भगत नामदेव जी को पूछा उन्होंने अपने एक शब्द में यह सारी वार्ता बयान की है जिसका अर्थ है नामदेव जी की पड़ोसन पूछती हैं कि हे नामदेव जी बताओ तो सही तुमने किससे छन बनवाई है हमें कारीगर का पता बताओ तो तुम्हारे से दुगनी मजदूरी देंगे नामदेव जी उत्तर देते हैं हे बहन वो कारीगर नहीं, वह तो हर जगह समाया हुआ है मेरे तो प्राणों का आसरा है हां यह कह कर उस कारीगर की तरफ से मजदूरी पर काम कराए तो प्रेम मजदूरी है सारे परिवारों, रिश्तेदारों और मित्रों से अलग हो तो वह कारीगर मिलता है ऐसे यह कारीगर या भेड़ी को मैं बयान नहीं कर सकता वह हर जगह समाया है जिस तरह गूंगा पुरष किसी रस के स्वाद को नहीं बता सकता तो ऐसे ही मैं उसके गुणों को बयान नहीं कर सकता हे माता सुन ! उस कारीगर ने सारे जगत को 1 पधर ऊपर रखा है सागर ऊपर उसका राज है तारे, आकाश, धरती और वनस्पति उसके हुकुम में हैं जैसे रामचंद्र जी ने लंका पर चढ़ाई करके प्यारी सीता को पाया तो लंका रावण को मार कर भभिखण को दे दी ऐसे ही भगवान ने नामदेव जी के ऊपर कृपा की है हे लोगो यह सब प्रभु का ही खेल है उसने ऐसी खेल की है मैं क्या बताऊं जब नामदेव जी के मुख से यह शब्द सुने तो यह कोतक देख सारे लोग अस्लो भगत जी के चरणों में गिर गए और जान गए कि भगत जी और भगवान में अब कोई फर्क नहीं रह गया जो प्रभु की भक्ति शुद्ध हृदय के साथ करता है उसके कार्य रास होते हैं तो प्रभु उसकी आप देखभाल करता है हे श्रद्धालु जनों भगत जी ने लोगों को उपदेश दिया प्रभु बिठल का नाम जपो और उस पर भरोसा रखें वह तुम्हारे सारे कार्य रास करेगा राम नाम में ऐसी बरकते हैं भगत नामदेव जी संत ज्ञानेश्वर जी कि संत मंडली के साथ तीर्थों की यात्रा करने के लिए निकल गए पंजाब के तीर्थों की यात्रा करके भगत मंडली ने पीछे मुड़ना था इन्हों की सलाह हुई कि देश के रेतले हिस्से से वापस मुड़ा जाए ताकि इस इलाके के जीवो में भी हरनाम का प्रचार किया जाए चलती चलती संत मंडली बीकानेर में पहुंची राजपूताने में से होकर इन्होंने अजमेर को जाना था बीकानेर में केलावत जी स्थान ऊपर पहुंचे तो उनको प्यास लगी पर रेत के मारोथल में पानी कहीं पर नहीं था, सूरज के सेक से आसमान, वायुमंडल और धरती में बल का पठ बना हुआ था सारी संत मंडली प्यास से मरने लगी योग के बल के साथ ज्ञानेश्वर ने देखा कि दो क गज ऊपर कुआ तो है पर उसका पानी सूखा हुआ है उसने संत मंडली को कहा कि भगवान का आसरा लेकर थोड़ा रास्ता और चलो फिर शायद जल मिल जाए उन साधुओं ने हौसला किया भगवान का सिमरन करते हुए सूखे हुए कुएं के पास पहुंच गए कुआ खंडर हो चुका था सारा पूर कर बीच में घास बड़ा हुआ था ज्ञानेश्वर ने कहा प्रभु के प्यारेओ मैं बर्तन लेकर नीचे जाता हूं और पानी लेकर आता हूं संतो को पानी चाहिए था उन्होंने मजदूरी देते आराम नहीं किया ज्ञानेश्वर जी कर मंडल लेकर नीचे गए योग विद्या के बल के साथ धरती पर पहुंच गए तो पानी आदि पीकर संतो के लिए कर मंडल भर कर लाए सभी संतो ने पानी पी लिया जब नामदेव जी को पानी पीने के लिए कहा तो भगत जी ने उत्तर दिया मेरी रक्षा मेरा बिठल करता है जेकर उसको मेरी जरूरत है तो इस कुएं में से पानी ऊपर करेगा नहीं तो पानी नहीं पीना मरना कबूल है यह कहकर भगत जी कुएं के किनारे धरना मारकर बैठ गए बिठल का नाम जपना शुरू कर दिया कोई आधे घंटे के पीछे कुछ कड़क हुई, संतों ने कुएं में चात मारी कि मिट्टी का गड़ जो कुएं में बंधा हुआ था वह अपने आप टूट गया धीरे-धीरे सारी मिट्टी आलोप हो गई कुएं में से कुंगू जैसे पानी निकला और शीतल जल देखकर सभी ने खुशी मनाई और बहुत प्रसन्न होकर भगत नामदेव जी को आवाजे दी भगत नामदेव जी ने उनकी आवाजे सुनकर पूछा मेरे बिठल ने जल भेज दिया है मेरी बिनती सुन ली है भगत नामदेव जी उठे और कर मंडल वहाकर शीतल जल बाहर निकाला और पिया ऐसी शक्ति और भक्ति देखकर सारी संत मंडली भगत नामदेव जी के चरणों में गिर गई तो नामदेव जी आप ऐसे प्रभु जस करने लगे "मोहे लागती ताला बेली बछरे बिन गाय एकेली पानिया बिन मीन तल्फे ऐसे राम नामा बिन बाप्रो नामा जैसे गाय का बाशा शूटला थन चूखता माखन कूटला नाम देओ नारायण पाया गुरु पेटत अलख लिखाया जैसे बिखे हेत पर नारी ऐसे नामे प्रीत मुरारी जैसे तापते निर्मल कामा तैसे रामा नामा बिन बाप्रो नामा" भगत नामदेव जी संत ज्ञानेश्वर जी कि संत मंडली के साथ तीर्थों की यात्रा करते हुए श्री नामदेव जी मथुरा बिंद्रावन से हस्तिनापुर आ गए ।

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By Sant Vachan


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