संसार एक नाटक है और यहां पर हर कोई अपना अपना रोल अदा कर रहा है
कोई दुखी है तो कोई सुख में लेकिन संसार की सभी जीवात्माए पात्र और अधिकारी है, परमात्मा की अंश होने के कारण अयोग्य तो कोई है ही नही, लेकिन पात्र की भी तो समय-समय पर सफाई आवश्यक है, कुछ ने अपने पात्र को इतना गंदा कर लिया है कि अमृत भी डालोगे तो विष हो जायेगा ।
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